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शिक्षकों का मंच फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने आरक्षित पदों पर प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की नियुक्ति का विरोध किया है। फोरम के अध्यक्ष हंसराज सुमन का कहना है कि नियुक्ति के नए नियम प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस से केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों में भारत सरकार की आरक्षण नीति की अवेहलना की जा रही है। फोरम ने इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को पत्र लिखकर मांग की है कि जिन विश्वविद्यालयों के विभागों में आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों के पदों पर नियुक्ति होनी है, वहां नए नियम प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस ( पीओपी ) के माध्यम से प्रोफेसर न लगाए जाएं। इसके लिए सर्कुलर जारी करने की भी मांग की गई है।
आपको बता दें कि देश के कॉलेजों व विश्वविद्यालयों की पढ़ाई को स्किल से जोड़ने के लिए यूजीसी द्वारा प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस योजना लाई गई है। प्रोफेसर ऑफ पैक्टिस की भर्ती के जरिए शैक्षणिक संस्थानों में इंडस्ट्री और एक्सपर्ट्स को लाया जा रहा है। विभिन्न कंपनियों के सीईओ व एमडी भी इस भर्ती के लिए आवेदन कर रहे हैं। इस योजना के तहत बिना यूजीसी नेट या पीएचडी किए सीधा प्रोफेसर बना जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में उच्च शिक्षा को स्किल बेस्ट एजुकेशन से जोड़ने पर जोर दिया गया है। इसलिए यूजीसी पीओपी के जरिए उच्च शिक्षा में प्रैक्टिशनर, पॉलिसी मेकर्स, स्किल प्रोफेशनल्स की एंट्री कराकर इसका स्तर सुधारना चाहता है। विभिन्न क्षेत्रों के प्रोफेशनल्स और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाएंगे।
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जानें क्या हैं प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस ( पीओपी ) के नियम
जिन व्यक्तियों की अपने विशिष्ट पेशे में कम से कम 15 साल की सेवा या अनुभव के साथ विशेषज्ञता है, वे ‘प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस’ के लिए पात्र होंगे। ये शिक्षक नहीं होने चाहिए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशा-निर्देशों के अनुसार इंजीनियरिंग, विज्ञान, मीडिया, साहित्य, उद्यमिता, सामाजिक विज्ञान, ललित कला, सिविल सेवा और सशस्त्र बलों जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस श्रेणी के अंतर्गत नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। इसके लिए यूजीसी नेट या पीएचडी डिग्री की जरूरत नहीं है। नियुक्ति का आधार सिर्फ प्रोफेशनल अनुभव होगा।
पीओपी कॉन्ट्रेक्ट शुरू में एक वर्ष तक के लिए हो सकता है। किसी संस्थान में पीओपी की सेवा की अधिकतम अवधि तीन वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए और असाधारण मामलों में इसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। किसी भी सूरत में कुल सेवा अवधि चार वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।