सोनाली भाटी/जालौर: सिरोही जिले के आबूरोड तहसील के एक छोटे से गांव सियावा की रहने वाली एक आदिवासी महिला की पहल ने उसको व उसके साथ जुड़ी अन्य महिलाओं को देश-विदेश में पहचान दिलवाने का काम किया है. टीपू देवी गरासिया ने 24 साल पहले गांव की 10 महिलाओं के साथ महिला समूह बनाकर मिट्टी से मूर्ति बनाने व बेचने का काम शुरू किया था. गांव की मिट्टी से ही तैयार इन कलाकृतियों ने प्रदेश में ही नहीं देशभर में व विदेशों तक पहचान बनाई है. यहां अब करीब 45 आदिवासी महिलाएं वर्क फ्रॉम होम के जरिये काम कर घर का खर्च स्वयं चला रही हैं.
मूर्तिकला के इस काम का सालाना टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपए हैं. टीपू देवी ने बताया कि आदिवासी महिलाएं केंद्र से कच्चा माल ले जाकर घर पर मूर्तियां तैयार कर केंद्र पर लेकर आती हैं, जिसके बाद प्रशिक्षित महिला उसे पेंट कर तैयार करती हैं. कोरोना के बाद से वर्क फ्रॉम होम से ही काम करवाया जा रहा है. इससे महिलाओं को घर बैठे ही महीने की 7-8 हजार रुपए की आय होती है.
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राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम कर चुके हैं सम्मानित
टिपू देवी ने मार्च 2000 में 7 हजार रुपए निवेश कर 10 महिलाओं के साथ राजस्थान आदिवासी मिट्टी शिल्प फेडरेशन की स्थापना की थी. समूह ने मिट्टी से मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया था. टीपू देवी गरासिया व संस्था को 2006 में उत्कृष्ट काम के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने सम्मानित किया था. यहां तैयार होने वाली मूर्तियों की डिमांड विदेशों में भी है. अब तक इन मूर्तियों की चीन के शंघाई, इटली के मिलान, स्विट्जरलैंड, पेरिस और सिंगापुर में प्रदर्शनी लगाई जा चुकी है. मूर्तियों का व्यापार देश के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व फ्रांस आदि देशों तक फैला हुआ है.
सरकार से की ये अपील
टीपू देवी ने बताया कि रिटेल आउटलेट नहीं होने के कारण मूर्तियों का पूरा दाम नहीं मिल पाता है. करीब 13 साल पहले प्रशासन से शिल्प ग्राम प्रोजेक्ट के लिए भूमि आवंटन कर रिटेल आउटलेट तैयार करने का प्रयास किया था, लेकिन आज तक सरकार से स्वीकृति नहीं मिलने से प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका है. टीपू देवी ने बताया कि यदि इस प्रोजेक्ट को सरकार से सहयोग मिलता है, तो यहां तैयार मूर्तियों का पूरा दाम मिलने से आदिवासी महिलाओं की आय में बढ़ोत्तरी होगी, साथ ही बड़े स्तर पर यह काम होने से अधिक महिलाएं भी जुड़ सकेगी.
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FIRST PUBLISHED : March 13, 2024, 11:38 IST