The next spectrum auction will be held on May 20. | अगली स्पेक्ट्रम नीलामी 20 मई से: 96 हजार करोड़ का बेस प्राइस होगा, पिछली बार जियो ने 5G पर 88,078 करोड़ खर्च किए थे

नई दिल्ली3 घंटे पहले

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भारत की अगली स्पेक्ट्रम नीलामी 20 मई को शुरू होगी। डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम ने 8 मार्च को इसे लेकर नोटिस इनवाइटिंग डॉक्यूमेंट (NIA) जारी किया है। DoT को इस बार नीलामी में टेलिकॉम ऑपरेटरों से ज्यादा अच्छे रिस्पॉन्स की उम्मीद नहीं है।

ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल ही कंपनियों ने काफी सारा स्पेक्ट्रम खरीदा था। कंपनियों का फोकस उन स्पेक्ट्रम के टॉपअप पर होगा जो उनके ऑपरेशन में हैं और एक्सपायर होने जा रहे हैं। टेलिकॉम डिपार्टमेंट को नीलामी से करीब 10,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।

96.31 हजार करोड़ के बेस प्राइस पर होगी नीलामी
800, 900, 1,800, 2,100, 2,300, 2,500, 3,300 MHz और 26 GHz बैंड में सभी उपलब्ध स्पेक्ट्रम को 96,317.65 करोड़ रुपए के बेस प्राइस पर नीलामी में रखा जाएगा।

इस नीलामी में दिवालियेपन से गुजर रही कुछ कंपनियों के पास मौजूद स्पेक्ट्रम के अलावा 2024 में अवधि पूरी होने पर एक्सपायर होने वाले स्पेक्ट्रम को भी रखा जाएगा।

वोडाफोन और एयरटेल को लाइसेंस रिन्यू करना होगा
भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया 1,800 MHz और 900 MHz के 4G बैंड में समाप्त होने वाले पुराने लाइसेंस को रिन्यू करेंगे।

ब्रोकरेज जेफरीज के अनुसार, एयरटेल को लगभग 4,200 करोड़ रुपए और वोडाफोन आइडिया को लगभग 1,950 करोड़ रुपए की एयरवेव्स को रिन्यू करना होगा, जबकि मार्केट लीडर रिलायंस जियो को इस साल कोई भी स्पेक्ट्रम रिन्यूअल नहीं करना होगा।

पिछली बार जियो ने 5G पर 88,078 करोड़ खर्च किए थे
2022 की स्पेक्ट्रम नीलामी में, सरकार ने 20 साल की वैलिडिटी के साथ 72,097.85 MHz स्पेक्ट्रम ऑफर किया गया था।

रिलायंस जियो ने 5G स्पेक्ट्रम पर 88,078 करोड़ रुपए खर्च किए थे। इसके बाद एयरटेल ने 43,084 करोड़ रुपए और वोडाफोन आइडिया ने 18,799 करोड़ रुपए खर्च किए थे।

स्पेक्ट्रम क्या है और यह कैसे काम करता है?
एयरवेव्स इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के भीतर रेडियो फ्रीक्वेंसी हैं जो टेलिकॉम सहित कई सर्विसेज के लिए वायरलेस तरीके से सूचना ले जा सकती हैं।

सरकार इन एयरवेव्स का मैनेजमेंट और आवंटन करती है। स्पेक्ट्रम को लो फ्रीक्वेंसी से लेकर हाई फ्रीक्वेंसी तक के बैंड में डिवाइड किया जा सकता है।

हाई-फ्रीक्वेंसी वेव ज्यादा डेटा ले जाती हैं और लो-फ्रीक्वेंसी वेव की तुलना में तेज होती हैं, लेकिन इन्हें आसानी से ब्लॉक या ऑब्सट्रक्ट किया जा सकता है। लोअर-फ्रीक्वेंसी वेव वाइडर कवरेज प्रदान कर सकती हैं।

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