11 घंटे पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय
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रामानंद सागर की रामायण में लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले एक्टर सुनील लहरी ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर क्या रिएक्शन दिया है। आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा।
‘रामायण’ करने के दौरान रामलला जब त्रिपाल के नीचे विराजमान थे, तब मन में क्या भाव आता था?
ये देख और सोचकर बड़ी तकलीफ होती थी। हमारे हिंदू प्रधान देश में ही रामलला के साथ इस तरह से ट्रीटमेंट हो रहा है। मतलब ऐसा लगता था कि घर के मुखिया का अपने ही घर में निरादर हो रहा है। उस समय मैं अयोध्या गया था। मैंने देखा है। मुझे अच्छा नहीं लगा। लेकिन क्या है कि कुछ चीजों में आप बेबस होते हैं। आप सिर्फ आवाज ही उठा सकते हैं। उस समय आवाज उठाई गई थी। लेकिन आज जिस हिसाब से पूरे देश का माहौल बना है, आवाज उठी है, इसकी तारीफ करनी चाहिए।

मुझे लगता है कि उस समय मीडिया इतना स्ट्रांग नहीं था। एक-दूसरे का कांट्रेक्ट नहीं हो पाता था। अपने इंडिविजुअल रहते थे। आज मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए जन-जन तक बात पहुंच जाती है, उस समय वह माहौल नहीं उठ पाया, जिस तरह से उठने चाहिए थे।
अच्छा, उस समय ‘रामायण’ की यादगार बात क्या रही?
बहुत सारी यादगार बातें रही हैं। हमने जिन परिस्थितियों में काम किया है, वो परिस्थितियां ही अपने आप में बहुत बड़ी यादगार हैं। उस समय हमारे पास सहूलियत नहीं थी, उसमें भी सबने काम किया। हमारे मुकुट, बेल्ट, धनुष-बाण आदि सारी चीजें रियलिटी के काफी करीब था। लोगों को शायद यह नहीं पता है। उन्हें लगता है कि यह फिल्मी होगा। लेकिन सागर साहब रियल के मामले में बहुत क्लीयर थे। लोगों को शायद यह पता नहीं होगा कि केवट का एक सीन था। इसे राजकोटला में शूट कर रहे थे, तब वहां का टेम्परेचर 50 डिग्री था। हम सीन में वनवासी का वस्त्र पहने थे, सो खड़ाऊं भी पहन सकते थे।
रामजी का खड़ाऊं लेकर भरत जी आए थे। लेकिन सागर साहब हम लोगों के चेहरे पर वह एक्सप्रेशन देखने चाहते थे, जो सीन की रिक्वायरमेंट थी। उस सीन में हम लोग गर्म रेत पर नंगे पांव चले हैं, जिससे पांव में फफोले पड़ गए थे।

मैंने सागर साहब से रिक्वेस्ट भी किया था कि हमें खड़ाऊं पहनने दिया जाए, लेकिन उन्होंने कहा था कि खड़ाऊं पहना दूंगा तो तुम्हारे चेहरे पर वह एक्सप्रेशन नहीं आएगा। इस हद तक उन्होंने रियल काम करवाया था। मुझे याद है, उसी दौरान का एक सीन था, जब केवट हमें पानी में एक जगह छोड़ देते हैं। वह सीन एकदम रियल था। उस सीन को भी वो रियल में फिल्माना चाहते थे। इसके लिए सागर साहब ने मुझसे दो दिन तक प्रैक्टिस करवाया था। मैं ही नहीं, बल्कि टेक्निशियन आदि ने बड़ी मेहनत और लगन से काम किया था।

इस तरह का एक वाकया और साझा कीजिएगा?
यह बात दोहरा रहा हूं, पर बड़ी दिलचस्प है। उन दिनों एक फिल्म भी कर रहा था, जिसकी शूटिंग के लिए मुंबई आना था। उस फिल्म में हेलीकॉप्टर, स्पीड बोट, घोड़े, फाइटर आदि चीजें इस्तेमाल होनी थी। सब कुछ देखते हुए मुझसे बोला गया था कि समय पर पहुंच जाना, क्योंकि इसके लिए मढ़आईलैंड में ज्यादा देर तक शूट करने की परमीशन नहीं है। मैंने इसके लिए सागर साहब से कहा था कि मुझे उस दिन ऑफ दे दो या फिर सात-आठ बजे तक छोड़ देना। उन्होंने कहा था कि तुम जल्दी आ जाओ, जल्दी छोड़ दूंगा।

इस चक्कर में मुंबई से सुबह चार बजे उठकर सुबह 8 बजे उमरगांव में उनके सामने खड़ा हो गया। उनसे कहा कि मैं आ गया हूं। उन्होंने कहा कि फ्रेश होकर तैयार हो जाओ। मैं तैयार हो गया। लेकिन अनफॉर्च्युनिटली, सीन उस हिसाब से नहीं बन पाया, जिस हिसाब से सागर साहब चाहते थे। उस सीन को लिखते-लिखते पूरा दिन बीत गया। उस शूटिंग से मुझे सात-आठ बजे छोड़ना था, वह शूटिंग ही करीब साढ़े आठ-नौ बजे शुरू हुई। मैं टेंशन में था और गुस्सा में भी था। टेंशन में था कि कब यहां का काम खत्म करके मुंबई पहुंचूंगा, कब आराम करके फिल्म के सेट पर पहुंच पाऊंगा।

फिलहाल, रात के साढ़े बारह बज गए, तब उस बात को लेकर मैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गया था। मैं कहने लगा कि मैं नहीं कर पाऊंगा, मुझसे नहीं होगा, मुझे जाने दीजिए। उस समय मेरा जो एक्सप्रेशन था, उसे देखकर सागर साहब ने कहा कि मुझे इसी एक्सप्रेशन में तुम्हारा शार्ट चाहिए। उसी एक्सप्रेशन में उन्होंने शार्ट लिया। वह जनक के सामने परशुराम और लक्ष्मण के भड़कने वाले संवाद का सीन था। वह सीन वन टेक में हो गया। मैं तकरीबन दो बजे रात को वहां से निकला।

रास्ते में गाड़ी चलाकर आते समय मनोर नामक जगह के पास मुझे नींद आ गई। मेरी आंख खुली, तब आसपास देखा कि कहीं ऊबड़-खाबड़ जगह पर आ गया हूं। दूर रास्ते पर लाइटे जल रही हैं। मैंने पाया कि गाड़ी खेतों में उतर गई है। समझिए इतनी भयंकर नींद लग गई कि पता ही नहीं चला कब गाड़ी खेत में उतर गई। किसी तरह रोड पर गाड़ी लाया। मनोर में एक रेस्टोरेंट पर गाड़ी खड़ी करके एक घंटा सोया। उसके बाद घर न आकर, रेस्टोरेंट में फ्रेश होकर डायरेक्ट मढ़आईलैंड सेट पर चला गया। यह मेरी जिंदगी का कभी नहीं भूलने वाला किस्सा है। यह रामजी ही कृपा थी कि मुझे कुछ नहीं हुआ।

वर्क फ्रंट पर क्या कर रहे हैं?
भगवान की दया से सारी रिक्वायरमेंट पूरी हो जा रही हैं। आज सम्मान को बरकरार रखना ही महत्वपूर्ण है। मैं ओटीटी के लिए एक थ्रिलर फिल्म कर रहा हूं। इसमें तीन मेन कैरेक्टर में से एक कैरेक्टर मेरा है। यह हस्बैंड-वाइफ और एक स्ट्रेंजर की कहानी है। वह स्ट्रेंजर मैं हूं। अपने आप में यह अनूठी कहानी है। यह ट्रावेल थ्रिलर फिल्म है। सब्जेक्ट अच्छा लगा, क्योंकि कुछ स्ट्रांग करने के लिए था। दूसरी फिल्म रियल स्टोरी के ऊपर बेस्ड है।
सन् 1974-1975 की बात है, एक बैंक रॉबरी हुई थी। उसके ऊपर बेस्ड है। यह यंगस्टर बच्चों हैं। इसमें 14-15 साल के एक लड़के के पिता का रोल कर रहा हूं। मैंने जितना काम किया है, उससे हटकर है। मुझे उम्मीद है कि लोग पसंद करेंगे। भगवान का आशीर्वाद रहा है कि मैंने अपने किसी काम को रिपीट नहीं किया।

किसी और क्षेत्र में भी कुछ कर रहे हैं?
मैं मल्टी टास्किंग हूं। मेरा एक एडवरटाइजिंग का भी काम है। एड् की मार्केटिंग भी करता हूं। मैं किसान भी हूं। मतलब मेरे पास एग्रीकल्चर लैंड है। उसे डेवलप कर रहा हूं। कुछ जगह यहां भी है और मेरे होमटाउन भोपाल के पास में भी है, जहां पर गेहूं और सोयाबीन की खेती होती है। हालांकि कई बार इसे नॉन एग्रीकल्चर के ऑफर मेरे पास आए, पर उसे मना कर दिया। मुझे आर्गनिक खेती करना और अपनी खेती से उगाया अनाज खाने का अलग मजा आता है। मैं हर आदमी को नहीं खिला सकता हूं, पर मेरे द्वारा उगाया गया ऑर्गेनिक खेती का अनाज कुछ लोग तो खा सकते हैं।

यह मेरी कोशिश रहती है। मुंबई के पास मेरी जो खेती है, उसमें काजू, आम, केले, पपीते आदि की खेती डेवलप कर रहा हूं। इसके अलावा इंडिविजुअल प्रोडक्शन भी कर रहा हूं, जिसे पहले भी कर चुका हूं। अभी सागर साहब से साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट कर रहा हूं। यह राम और वैष्णो देवी की कहानी है। यह सीरीज है, जिसमें से कुछ हिस्सा कट करके फिल्म बनाकर रिलीज करेंगे। उसे डेवलप कर रहा हूं। पहले इसे राम जन्मभूमि की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर रिलीज करने वाले थे, पर अभी काफी काम बाकी है। इसे शायद नव दुर्गा के अवसर पर रिलीज का प्लान करेंगे। यह चार युगों की कहानी है।