निर्देशक श्रीराम राघवन उन चुनिंदा हिंदी फिल्म निर्देशकों में हैं जिनकी फिल्मों को दर्शक सिर्फ उनके नाम से देखने जाते हैं। फिल्म में कौन हीरो है, कौन हीरोइन है, विलेन है कि नहीं है, ये सब दर्शक उसके बाद सोचते हैं। श्रीराम की नई फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ सिनेमाघरों मे रिलीज हो चुकी है। बिना इसके नतीजों का इंतजार किए वह अपनी अगली फिल्म ‘इक्कीस’ की शूटिंग शुरू कर चुके हैं। उनके खास प्रशंसकों में से भी कम को ही पता होगा कि फिल्म निर्देशक बनने से पहले श्रीराम फिल्म पत्रकार भी रह चुके हैं और इस दौरान राजेश खन्ना का इंटरव्यू एक फिल्म के सेट पर करने का मौका जिस वजह से उन्होंने गंवाया, वह बहुत ही दिलचस्प भी है और प्रेरक भी।
हकलाने की गंभीर परेशानी
विज्ञापन से मिली पहली नौकरी
स्टारडस्ट में नौकरी मिलने का किस्सा भी बहुत दिलचस्प है। श्रीराम बताते हैं, ‘मैं पुणे से मुंबई आ रहा था सेंट जेवियर्स स्कूल कैंपस में चलने वाले पत्रकारिता कोर्स के लिए एडमिशन फॉर्म खरीदने। रास्ते में ही अखबार में मुझे स्टारडस्ट का विज्ञापन दिखा और मैं सीधे स्टारडस्ट के दफ्तर पहुंच गया। उस नौकरी के दौरान मैंने काफी कुछ सीखा। कई कलाकारों और तकनीशियनों के इंटरव्यू भी किए लेकिन स्टारडस्ट की मांग गॉसिप की थी और वही मुझसे हो नहीं पाता था। मै तथ्यों पर आधारित खबरें तो लिख सकता था लेकिन गॉसिप मेरे जेहन में नहीं घुसा कभी।’
राजेश खन्ना के सामने छूटे पसीने
और, स्टारडस्ट में नौकरी के दौरान ही श्रीराम राघवन को अभिनेता राजेश खन्ना का इंटरव्यू करने का भी शानदार मौका मिला। उनको राजेश खन्ना की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान सेट पर जाने का संयोग बना। उन दिनों फिल्मी सितारों के इंटरव्यू करने फिल्म पत्रकार उनकी फिल्मों की शूटिंग पर यूं ही पहुंच जाते थे। निर्माता, निर्देशक उन्हें रोकते नहीं थे और सितारों को अपनी मुट्ठी में रखने वाली पीआर एजेंसियां भी तब तक सक्रिय नहीं हुई थीं। श्रीराम के मुताबिक ‘उस दिन तीन चार बार ब्रेक के दौरान मैंने राजेश खन्ना की तरफ बढ़ने की कोशिश की और हर बार मुझे अपनी हकलाहट को लेकर पसीना आ जाता था। आखिरकार मैंने पूरी यूनिट के सामने उपहास का पात्र बनने की बजाय ये इंटरव्यू उस दिन नहीं ही किया। बाद में, मैं राजेश खन्ना से उनके घर जाकर मिला और तब जाकर ये इंटरव्यू हो पाया। इसके बाद से ही मैंने अपना नाम बार बार दोहराना शुरू किया और इस क्रम में धीरे धीरे मेरा हकलाना दूर होता गया।’
संयोग से मिला दाखिला