Shiv Mandir in kota 1 inch shivling 1500 years old shiv mandir ann

राजस्थान के कोटा संभाग में एक से बढ़कर एक मंदिर भगवान शिव के हैं, यहां कहीं चम्बल की कराईयों में भगवान विराजमान है तो कहीं 525 शिवलिंग हैं जो दुनिया में कहीं नहीं है.

राजस्थान के कोटा संभाग में एक से बढ़कर एक मंदिर भगवान शिव के हैं, यहां कहीं चम्बल की कराईयों में भगवान विराजमान है तो कहीं 525 शिवलिंग हैं जो दुनिया में कहीं नहीं है.

एक इंच का 1500 साल पुराना शिवलिंग यहां स्थित है जो स्वयंभू है, मान्यता है कि भगवान शिव यहां अपने आप विराजे हैं. कोटा के पुराने शहर रेतवाली में स्थित नीलकंठ महादेव के दर्शन मात्र से ही सभी दुख दूर हो जाते हैं, यहां देश विदेश से भक्त आते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं.

एक इंच का 1500 साल पुराना शिवलिंग यहां स्थित है जो स्वयंभू है, मान्यता है कि भगवान शिव यहां अपने आप विराजे हैं. कोटा के पुराने शहर रेतवाली में स्थित नीलकंठ महादेव के दर्शन मात्र से ही सभी दुख दूर हो जाते हैं, यहां देश विदेश से भक्त आते हैं और भगवान के दर्शन करते हैं.

जो शिवलिंग पहले धरा के ऊपर दिखा करता था वह अब जमीन में जाता जा रहा है और महज एक इंच का रह गया है. उन्होंने कहा कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं, जो अपने आप स्थापित हुए हैं.

जो शिवलिंग पहले धरा के ऊपर दिखा करता था वह अब जमीन में जाता जा रहा है और महज एक इंच का रह गया है. उन्होंने कहा कि नीलकंठ महादेव यहां स्वयं भू हैं, जो अपने आप स्थापित हुए हैं.

इस मंदिर को 1500 वर्ष पुराना बताया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग की जड़े पाताल तक है. इसलिए इसे हार्डकेश्वर लिंगम कहा जाता है. इसके दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, दुखों का नाश होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है.

इस मंदिर को 1500 वर्ष पुराना बताया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग की जड़े पाताल तक है. इसलिए इसे हार्डकेश्वर लिंगम कहा जाता है. इसके दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, दुखों का नाश होता है और परिवार में सुख समृद्धि आती है.

शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा बहुत कम रह गया है, जबकी इसके ठीक सामने दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा है और उसके ठीक सामने काल भैरव विराजमान हैं, इन दोनो के मध्य एक साधु की समाधी है. यहां 1500 वर्ष पूर्व का शिलालेख लगा हुआ है.

शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा बहुत कम रह गया है, जबकी इसके ठीक सामने दक्षिणमुखी हनुमानजी की प्रतिमा है और उसके ठीक सामने काल भैरव विराजमान हैं, इन दोनो के मध्य एक साधु की समाधी है. यहां 1500 वर्ष पूर्व का शिलालेख लगा हुआ है.

यहां पर लिखे एक शिलालेख जिसकी भाषा समझ नहीं आती से पता चलता है कि 1500 वर्ष पूर्व एक साधु यहां तपस्या कर रहे थे, उस समय यहां जंगल हुआ करता था और तभी से इस स्थान का महत्व बढ़ता चला गया. उसी समय एक राजा यहां पर आए उनके साथ एक भील भी था, जिसने तीर चलाया जो साधु के लगा और साधु मोक्ष गति को प्राप्त हो गए, उसी समय स्वयंभू भगवान नीलकंठ यहां प्रकट हुए और तभी से यहां उनकी पूजा अर्चना निरंतर चली आ रही है.

यहां पर लिखे एक शिलालेख जिसकी भाषा समझ नहीं आती से पता चलता है कि 1500 वर्ष पूर्व एक साधु यहां तपस्या कर रहे थे, उस समय यहां जंगल हुआ करता था और तभी से इस स्थान का महत्व बढ़ता चला गया. उसी समय एक राजा यहां पर आए उनके साथ एक भील भी था, जिसने तीर चलाया जो साधु के लगा और साधु मोक्ष गति को प्राप्त हो गए, उसी समय स्वयंभू भगवान नीलकंठ यहां प्रकट हुए और तभी से यहां उनकी पूजा अर्चना निरंतर चली आ रही है.

Published at : 08 Mar 2024 02:07 PM (IST)

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