Ram Aayenge Ramlala received education from Maharshi Vashishtha in ashram know ram katha in hindi

Ram Aayenge: रामायण और रामचरित मानस हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ हैं. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रामचरित मानस की रचना गई है. रामचरित मानस में जहां रामजी के राज्यभिषेक तक का वर्णन मिलता है, तो वहीं रामायण में श्रीराम के महाप्रयाण (परलोक गमन) तक का वर्णन किया गया है.

भगवान राम को श्रीहरि के 7वें अवतार के रूप में पूजा जाता है. संसार से बुराई और बुरी ताकतों को खत्म करने के लिए त्रेतायुग के अंत में पृथ्वी पर रामलला का जन्म हुआ. रामजी शिष्टाचार, सदाचार, मूल्यों और नैतिकता के प्रतीक हैं. इसलिए इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया यानी पूर्ण या मर्यादित पुरुष.

राम आएंगे के सातवें भाग में हमने जाना कि रामलला के बाललीला का स्वरूप कितना निराला और कितना नटखट है. लेकिन उनकी समस्त बाल क्रीड़ाओं से अद्भुत लीलाएं भी जुड़ी होती थीं. राम की मंगलकारी कथा सुनना और राम के प्रताप को जानना हर्ष की बात की है. लेकिन राम चरित्र को सुनने हुए तृप्त नहीं होना चाहिए. इसके संबंध में तुलसीदाल जी लिखते हैं-

राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं।।
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ।।


Ram Aayenge: गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई, अलप काल बिद्या सब आई.. भाइयों संग रामलला ने गुरु से ली शिक्षा

अर्थ: रामजी के चरित्र को सुनने सुनते जो तृप्त हो जाते हैं यानी बस कर देते हैं, उन्होंने तो उसका विशेष रस जाना ही नहीं. जो जीवन्मुक्त महामुनि हैं, वो भी श्रीराम के गुण निरंतर सुनते रहते हैं.

भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥
बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा।।


Ram Aayenge: गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई, अलप काल बिद्या सब आई.. भाइयों संग रामलला ने गुरु से ली शिक्षा

अर्थ: संसार रूपी सागर को जो पार करना चाहता है, उसके लिए श्रीराम की कथा दृढ़ नौका की तरह है. श्रहरि के गुण समूह को विषयी लोगों के लिए कानों को सुख देने और मन को आंनदित करने वाले हैं.

श्रवनवंत अस को जग माहीं। जाहि न रघुपति चरित सोहाहीं॥
ते जड़ जीव निजात्मक घाती। जिन्हहि न रघुपति कथा सोहाती।।

अर्थ: संसार में कान वाला ऐसा कौन है, जिसे रघुनाथजी के चरित्र न सुहाते हों, जिन्हें रघुनाथजी की कथा नहीं सुहाती, वे मूर्ख जीव तो अपनी आत्मा की हत्या करने वाले हैं.

रामचरितमानस या रामकथा को सुनना अपार सुख पाने जैसा है. इसलिए कहा जाता है कि, ‘उपजइ राम चरन बिस्वासा। भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा’ यानी रामजी के चरणों में विश्वास उत्पन्न होता है और मुनष्य बिना परिश्रम के संसार रूपी समुद्र से तर जाता है.

राजमहल के आंगन से लेकर वन और सरयू तट के किनारे खेलते-खेलते रामलला कब बड़े हो गए माता कौशल्या और राजा दशरथ को इसका आभास भी न हुआ. कौशल्या माता को तो अभी भी अपने लाल को पालने में झुलाने से मन नही भरा था. प्रेम में मग्न कौशल्या जी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं, पुत्र के स्नेहवश में माता उनके बालचरित्रों का गान किया करतीं.

वहीं रामलला को गोद में उठाने के लिए पिता दशरथ भी उत्सुक रहते थे. लेकिन समय बीतता गया और रामलला समेत दशरथ के चारों पुत्र बड़े हुए. इस तरह समय आ गया उनकी शिक्षा का, जिसके लिए उन्हें महर्षि वशिष्ठ के आश्रम भेजा गया. राम आएंगे के आठवें भाग में जाएंगे रामलला की शिक्षा के बारे में-

भए कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।।


Ram Aayenge: गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई, अलप काल बिद्या सब आई.. भाइयों संग रामलला ने गुरु से ली शिक्षा

अर्थ: जैसे ही सब भाई कुमारावस्था के हुए वैसे ही गुरु, पिता और माता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया. रघुनाथजी अपने भाइयों के साथ गुरु के घर में विद्या पढ़ने गए और कुछ ही समय में उनको सब विद्याएं आ गईं.

 जाकी सहज स्वास श्रुति चारी। सो हरि पढ़ यह कौतुक भारी॥
बिद्या बिनय निपुन गुन सीला। खेलहिंखेल सकल नृपलीला।।


Ram Aayenge: गुरगृहँ गए पढ़न रघुराई, अलप काल बिद्या सब आई.. भाइयों संग रामलला ने गुरु से ली शिक्षा

अर्थ: चारों वेद जिनके स्वाभाविक श्वास हैं, उसे भगवान पढ़ें, यह बड़ा अचरज है. चारों भाई विद्या, विनय, गुण और शील में निपुण हैं और सब राजाओं की लीलाओं के ही खेल खेलते हैं.

महर्षि वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त करने के लिए राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों राम, भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण को उनके आश्रम भेजा. चारों भाई महाराज दशरथ के पुत्र थे, यदि पिता चाहते तो उनकी शिक्षा व्यवस्था राजमहल में ही करा सकते थे, लेकिन उन्हें आश्रम इसलिए भेजा गया क्योंकि वे अनुशासन में रहकर शिक्षा प्राप्त करें और शिक्षण के वास्तविक अर्थ को आत्मसात करें. इस तरह राजा दशरथ के चारों पुत्रों ने आश्रम में रहकर महर्षि वशिष्ठ से सामान्य शिष्यों की तरह  परिश्रम भी किया और पूर्णत: शिक्षा ग्रहण की.

(राम आएंगे के अगले भाग में जानेंगे जब विश्वामित्र ने राजा दशरथ में मांग ली देह और प्राण से अधिक प्यारी चीज, तो फिर क्या हुआ)

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