PTSD Risk | हरदा की घटना के पीड़ितों में हो सकता हैं पीटीएसडी का खतरा, जानिए इससे कैसे निजात पाना संभव

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पीटीएसडी का खतरा ( सोशल मीडिया)

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 नवभारत डिजिटल टीम: मध्यप्रदेश के हरदा (Harda Incident) में हुई घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था वहीं पर अब तक इस घटना के पीड़ितों का दर्द और मौत का सिलसिला थमा नहीं है। ऐसे में हरदा हादसे (Harda Incident) में पीड़ितो के अलावा स्थानीय लोगों को भी गहरा झटका लगा है जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। इस प्रकार की घटना होने पर मानसिक विकारों यानि कि पीटीएसडी (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) का खतरा बढ़ जाता है। जिसके लिए स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी है।

जानिए क्या होता हैं PTSD

यहां पर मानसिक विकारों में से एक इस पीटीएसडी (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) की बात की जाए तो यह किसी भयानक हादसे के आंखो देखी से उत्पन्न होती है। किसी शख्स ने कोई ऐसा हादसा देख लिया है जिससे उसे सदमा लगा हो। वह घटना के अनुभव को महसूस कर रहा हो उसके दिमाग में घटना चल रही हो। इस प्रकार घटना को लेकर आने वाले अनियंत्रित विचारों को इस समस्या कहा जाता है। पीटीएसडी के चपेट में आने वाले पीड़ितों को यह समस्या कई वर्षों तक रहती है और वो किसी प्रकार के कोई काम काज नहीं कर पाता।

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इसके लक्षण क्या है 

पीटीएसडी के खतरों की बात की जाए इस समस्या के लक्षण वहीं घटना से प्रेरित होते हैं…

1- घटना की याद दिलाने वाली बातों को सोचना, भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाना, घटना वाली जगह को देखने, लोगों से बात करने पर यादें ताजा होना।

2- भावनाओं और विचारों को लेकर पूरी तरह नकारात्मक हो जाना, गुस्सा, डर, चुप रहने के भाव का आना।

3- अवसाद और चिंता जैसे विकारों का खतरा बढ़ता हैं।

कैसे करें बचाव

इस पीटीएसडी की समस्या होने पर पीड़ित के पास करीबियों और रिश्तेदारों का होना जरूरी है। किसी अपने का साथ मिलने पर इस बीमारी का मरीज जल्दी रिकवर हो जाता है।  रिश्तेदारों और साथियों का साथ मिलने से तनाव की समस्या कम होती है और पीटीएसडी का खतरा कम होने लगता है। यहां पर हादसे का सामना करने वाले लोगों को खुद का ख्याल रखना जरूरी ताकि इस समस्या से निपटा जा सकें।

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