Pankaj Udhas also had a special connection with Bihar, he used to come here every year for his friend. – News18 हिंदी

गुलशन कश्यप/जमुई: अपनी गजलों से सबके दिलों पर राज करने वाले मशहूर गजल गायक पंकज उधास नहीं रहे. लंबी बीमारी के बाद 73 साल की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने सोमवार को आखिरी सांसें लीं. पंकज उधास के लाखों चाहने वाले हैं. दुनियाभर के संगीतप्रेमी उन्हें पसंद करते हैं. बिहार से भी पंकज उधास का खास जुड़ाव रहा है. वे नियमित रूप से बिहार आते थे. उनकी गजलों को सुनने के लिए संगीतप्रेमी रात-रातभर जगते. सर्दी की रातों में भी पंकज उधास को सुनने बड़ी संख्या में भीड़ जुटा करती थी. पंकज उधास का बिहार आना-जाना सालों तक जारी रहा. यही वजह है कि आज जब उनकी मृत्यु का समाचार लोगों को मिला, तो बिहार के संगीतप्रेमियों के बीच मायूसी छा गई.

दरअसल, बिहार के जमुई जिला में हर साल गिद्धौर महोत्सव मनाया जाता है. नब्बे के दशक के समाप्त होने के कुछ साल बाद ही यहां गिद्धौर महोत्सव की शुरुआत हो गई थी. उस  वक्त केंद्र सरकार के विदेश राज्य मंत्री रहे दिग्विजय सिंह के द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी. दिग्विजय सिंह जमुई जिला के गिद्धौर के ही रहने वाले थे. उन्होंने जब इसकी शुरुआत की तो उस दौर में जगजीत सिंह और पंकज उदास के बगैर यह महोत्सव सुना हुआ करता था. पंकज उदास और जगजीत सिंह के बारे में एक किस्सा यह भी है कि दिग्विजय सिंह के साथ इनकी दोस्ती थी और यही कारण था कि गिद्धौर महोत्सव से इनका खास लगाव था. आज दिग्विजय सिंह, जगजीत सिंह और पंकज उधास तीनों हीं इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन आज भी इन तीनों की दोस्ती की कहानियां यहां लोग सुनाते हैं.

ठंड में सारी रात बैठे रह गए थे लोग, कुछ ऐसी थी दीवानगी
गिद्धौर महोत्सव की शुरुआत के बाद से ही यहां गजल की महफिलें सजती रही हैं. बॉलीवुड के बड़े बड़े कलाकार यहां आकर लोगों के बीच अपनी गायकी पेश कर चुके हैं. उस दौर में पंकज उधास के गाने ना कजरे की धार….. थोड़ी थोड़ी पिया करो….. चांदी जैसा रंग है तेरा….. के लोग इतने दीवाने थे कि एक बार जब पंकज उदास अपनी प्रस्तुति दे रहे थे तो उस वक्त ठंड का मौसम था. शाम को हल्की ठंड होती थी, लेकिन रात होते-होते ठंड का सितम बढ़ जाता था. लेकिन, लोग उनकी गायकी में इतने डूब गए गए थे कि पूरी रात लोग उनके गाने सुनने के लिए बैठे रह गए थे. साल 2010 में दिग्विजय सिंह का निधन हो गया और उसके बाद ऐसी महफिल कभी नहीं सजी. हालांकि अभी भी गिद्धौर महोत्सव का आयोजन कला संस्कृति विभाग के द्वारा किया जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि अब वैसी महफिल नहीं लगती है, जैसी पंकज उदास और जगजीत सिंह के दौर में लगा करती थी.

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