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बेंगलुरु14 मिनट पहले
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ग्रीव्स इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की सब्सिडियरी कंपनी MLR ऑटो लिमिटेड के CEO निर्मल एनआर का कहना है कि भारत में EV अडॉप्शन में अभी 5-7 साल और उससे ज्यादा समय भी लग सकता है।
वहीं उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकारी नीतियों ने इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि इसकी गति स्थिर रही है, इसमें तेज विकास की असीमित संभावनाएं हैं।
निर्मल NR ने इस साल की शुरुआत में हुए ऑटो एक्सपो में दिखाए थ्री व्हीलर प्रोडक्ट से लेकर कंपनी की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी और इलेक्ट्रिफिकेशन को लेकर बात की। पढ़िए उनका पूरा इंटरव्यू…
1. ऑटो एक्सपो में जो प्रोडक्ट शोकेस किए थे, उनका अभी क्या स्टेटस है?
ऑटो एक्सपो में हमने तीन थ्री-व्हीलर्स, ELC (इलेक्ट्रिक कार्गो), ELP (इलेक्ट्रिक पैसेंजर्स) और हमारा अपना डिजाइन किया हुआ कॉन्सेप्ट व्हीकल सामने रखा था। कॉन्सेप्ट व्हीकल को उपलब्ध होने में काफी समय लगेगा। एल्ट्रा कार्गो फेसलिफ्ट अगले वित्त वर्ष में आएगा। इसके अलावा एल्ट्रा के पैसेंजर व्हीकल को भी अगले महीने लॉन्च किया जाएगा।
हाल में लॉन्च किए गए एल्ट्रा कार्गो ऑटो की प्रोडक्शन स्टेज में डिमांड बेहद मजबूत रही है। हमारे डीलर्स को प्रेजेंट किए जाने के बाद इसका बी2बी ट्रायल चल रहा है। अमेजन, बिगबास्केट और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों के डिलीवरी पार्टनर ये ट्रायल कर रहे हैं। हमें लगभग 1000 प्री-ऑर्डर मिले हैं। इस व्हीकल की रिटेल प्राइस 3.7 लाख रुपए से शुरू है।
2. ग्रीव्स की मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी कहां-कहां है और इसकी क्या कैपेसिटी है?
हमारी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी हैदराबाद में है और 25 एकड़ में फैली हुई है। पहले यह MLR ऑटो का हिस्सा था, जो हमारे अधिग्रहण के बाद ग्रीव्ज इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का हिस्सा बन चुका है। यह फैसिलिटी हमारे प्राइमरी प्लांट के तौर पर काम करती है। इसके अलावा, हमारे पास ग्रेटर नोएडा में L3 फैसिलिटी है, जो L3 वाहनों के प्रॉडक्शन के लिए समर्पित है।
कुल मिलाकर हम थ्री व्हीलर निर्माण के लिए दो फैक्ट्री ऑपरेट करते हैं। हैदराबाद की L5 फैसिलिटी में, इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ डीजल और CNG व्हीकल्स की भी मैन्युफैक्चरिंग की जाती है। इसकी वर्तमान क्षमता दो शिफ्टों में प्रति माह लगभग 1500 वाहनों के उत्पादन की है। हालांकि, बेहद कम निवेश के साथ कैपेसिटी प्रति माह 2000 वाहनों से अधिक की हो सकती है।
3. ऐसा लगता है कि टू और फोर व्हीलर के मुकाबले थ्री-व्हीलर की जागरूकता थोड़ी कम है। आप इसे कैसे देखते हैं?
शायद थ्री-व्हीलर के संबंध में जागरूकता के स्तर को लेकर थोड़ी गलतफहमी है। इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में थ्री-व्हीलर व्हीकल्स की सामूहिक बिक्री प्रति माह लगभग 1 लाख यूनिट की है, जिसमें L3 और L5 दोनों कैटेगरी शामिल हैं। इनमें से लगभग 50,000 इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स हैं, जो बाजार में अपनी मजबूत मौजूदगी का संकेत देती है।
कॉमर्शियल पर्पज को देखते हुए इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स को तेजी से अपनाया जा रहा है। अधिक इस्तेमाल करने वालों के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के फायदे ज्यादा स्पष्ट हैं। टू-व्हीलर वाहनों को जहां निजी इस्तेमाल के लिए यूज किया जाता है, वहीं कार्गो और पैसेंजर के मामले में थ्री-व्हीलर वाहनों का कॉमर्शियल यूज काफी ज्यादा है।
4. EV में, सबसे बड़ी चुनौती चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की है। इस दिशा में आपकी कंपनी क्या कर रही है?
हम L3 और L5 दोनों कैटेगरी के व्हीकल बनाते हैं, उनमें स्पेशल चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कोई जरूरत नहीं है। घरों में पाए जाने वाले रेगुलर 16-एम्पियर (आईएस आईटी 15 या 16) प्लग इन व्हीकल्स को चार्ज करने के लिए पर्याप्त हैं। प्रत्येक वाहन में अपने चार्जर लगे हुए हैं, जो 16-एम्पियर प्लग के साथ किसी भी स्थान पर चार्ज करने की सुविधा देता है।
हमने व्हीकल की रेंज बढ़ाने के लिए बैटरी का साइज भी बढ़ाया है, जिससे यूजर को बार-बार इसे चार्ज करने की जरूरत नहीं होगी। यानी उन्हें एक दिन के लिए केवल एक बार चार्ज करना होगा। इसके अलावा, हमने दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में कई चार्जिंग सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ पार्टनरशिप की है। ये पार्टनरशिप यूजर्स को तय स्थानों पर अपने व्हीकल्स को चार्ज करने में मदद करती है।
ग्लोबल लेवल पर 80% से 90% तक EV रात में घर पर ही चार्ज किए जाते हैं। हालांकि, फास्ट-चार्जिंग ऑप्शन मौजूद हैं जो किसी व्हीकल को आधे घंटे में पूरी तरह से चार्ज कर देते हैं, लेकिन इसके लिए चार्जिंग के स्पेशल चार्जिंग इंफ्रा की जरूरत होती है। वर्तमान में, हमारी रणनीति उन थ्री-व्हीलर ग्राहकों को प्राथमिकता देने की है जो कीमतों को लेकर काफी सेंसेटिव होते हैं।
5. रिसर्च और डेवलपमेंट को लेकर ग्रीव्स कैसे काम कर रही है?
ग्रीव्स कॉटन लिमिटेड की 164 साल की विरासत है। ये इंजन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के रूप में मशहूर है। हमारे ऑपरेशन के केंद्र में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जोर दिया गया है, जो हमारे इंजीनियरिंग प्रयासों की बुनियाद है। बेंगलुरु में स्थित हमारे रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर में लगभग 400 इंजीनियरों की एक टीम है जो व्हीकल डेवलपमेंट के विभिन्न पहलुओं पर लगातार काम करती है।
इंजीनियरों के अलावा, हमारे वर्कफोर्स में सोर्सिंग, आफ्टर सेल्स सर्विस और कई अन्य पहलुओं से जुड़े व्यक्ति शामिल हैं। हमारा मकसद ऐसे नए व्हीकल्स को लॉन्च करना है, जो न केवल आकर्षक हों बल्कि प्रतिस्पर्धी कीमत पर भी उपलब्ध हों। हाल ही में, हमने बेंगलुरू में एक टेस्टिंग फैसिलिटी की स्थापना की है।
6. प्रोडक्ट फाइनेंसिंग को लेकर कंपनी के क्या प्लान हैं?
थ्री-व्हीलर के क्षेत्र में फाइनेंसिंग बेहद अहम है, क्योंकि करीब 95% वाहनों की फाइनेंसिंग होती है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि सबसे निचले पायदान पर मौजूद ग्राहकों के पास डाउन पेमेंट के लिए पर्याप्त पूंजी की कमी होती है। इसके अलावा, कई खरीदार क्रेडिट के मामले में नए हो सकते हैं और उनका कोई सिबिल स्कोर नहीं होता है।
इसलिए फाइनेंसिंग के महत्व को पहचानते हुए, हमने पिछले साल देश भर में 40 से अधिक फाइनेंसिंग कंपनियों के साथ पार्टनरशिप की है। इनमें मणप्पुरम, IDFC, महिंद्रा फाइनेंस और अन्य नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (NBFC) के साथ बाइक बाजार टर्नो, इकोफी और विद्युत जैसी नए जमाने की फाइनेंसिंग कंपनियां शामिल हैं।
7. इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिए गवर्नमेंट पॉलिसीज में क्या कुछ बदलाव होने चाहिए?
निश्चित रूप से। मेरा मानना है कि मौजूदा नीतियों ने इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि इसकी गति स्थिर रही है, इसमें तेज विकास की असीमित संभावनाएं हैं। पॉलिसी में बार-बार बदलाव नहीं होना चाहिए। लंबे समय तक एक जैसी पॉलिसी रहने से बेहतर प्लानिंग में मदद मिलती है।
8. मौजूदा स्थिति में भारतीय बाजार के मुकाबले ग्लोबल मार्केट को कैसे देखते हैं?
ग्लोबल लेवल पर भारत थ्री-व्हीलर व्हीकल्स का सबसे बड़ा मार्केट है और इस कैटेगरी में अग्रणी एक्सपोर्टर भी है। अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एक्सपोर्ट किए जाने वाले अधिकांश थ्री-व्हीलर व्हीकल भारत से आते हैं। ग्लोबल थ्री-व्हीलर मार्केट में भारत की मजबूत स्थिति के बावजूद अभी भी व्यापक रूप से इलेक्ट्रिफिकेशन नहीं हुआ है।
देश के भीतर 50% से अधिक इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर व्हीकल चल रहे हैं। हालांकि, यह ट्रेंड भारत के बाहर नहीं है, लेकिन विशेष रूप से बड़े बाजारों में विकास की अपार संभावनाएं हैं। संभावनाएं न केवल अफ्रीका में बल्कि यूरोप और मध्य-पूर्व में भी मौजूद हैं। इन बाजारों को समझने के साथ हमारी कोशिश अपनी मजबूत मौजूदगी को स्थापित करते हुए टिकाऊ प्रभाव डालने की है।
9. भारत को इलेक्ट्रिफिकेशन में कितने साल लग सकते हैं?
इलेक्ट्रिफिकेशन हर एक जरूरत का समाधान नहीं हो सकता है। कई ऐप्लिकेशंस विशेष रूप से ऊंचाई पर भारी लोड को ले जाने के लिए अभी भी डीजल या CNG को ज्यादा प्रैक्टिकल माना जाता है। B2B कार्गो मार्केट में इलेक्ट्रिफिकेशन की शुरुआत अच्छी रही है, जिसमें पैसेंजर सेक्टर का अडोप्टेशन काफी तेजी से रहा है। हालांकि, पूरी तरह से इलेक्ट्रिफिकेशन में अभी भी 5-7 साल लगने की उम्मीद है।
इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की ऑपरेशनल इकोनॉमिक्स इसे अट्रैक्टिव ऑप्शन बनाती हैं। बैटरी केमिस्ट्री और चार्जिंग विधियों में बदलाव के साथ तकनीकी में अपेक्षित बदलाव इलेक्ट्रिक वाहनों का अट्रैक्शन और बढ़ा सकते हैं। विशेषकर शहरी क्षेत्रों में बैटरी स्वैपिंग भी एक संभावित समाधान है, जो वाहन की लागत को कम कर सकता है और इसे अपनाए जाने की दर में तेजी ला सकता है।