Navy And Air Force Were Shocked By The Announcement Of Agneepath Scheme Agniveer Former Army Chief MM Naravane Made Big Revelations In His Memoirs

Former Army Chief On Agneepath Scheme: पूर्व सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को लेकर बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने अपने संस्मरण ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में खुलासा किया है कि थल सेना, नौसेना और वायुसेना में अग्निवीरों की कम अवधि के लिए भर्ती की ये योजना सशस्त्र बलों के लिए चौंकाने वाली थी. 

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व सेना प्रमुख ने 2020 की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘टुअर ऑफ ड्यूटी’ योजना का प्रस्ताव दिया था. इस प्रस्ताव के तहत अधिकारियों के लिए शॉर्ट सर्विस कमिशन की तरह सीमित संख्या में जवानों को कम अवधि के लिए भर्ती किया जा सकता है. हालांकि, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) बाद में एक अलग योजना लेकर आया, जिसे अग्निपथ के नाम से जाना जाता है.

75 फीसदी अग्निवीरों को सेवा विस्तार देने का था विचार 

एमएम नवरणे  31 दिसंबर, 2019 से 30 अप्रैल, 2022 तक 28वें सेना प्रमुख के तौर पर कार्यरत रहे थे. उन्होंने अग्निपथ योजना के जन्म पर विस्तार से बताते हुए कहा कि भर्ती किए जाने वाले 75 फीसदी अग्निवीरों को बरकरार रखना सेना का प्रारंभिक विचार था.

इसके उलट जून 2022 में केंद्र सरकार ने तीनों सैन्य बलों में आयु प्रोफाइल में कमी लाने के उद्देश्य से कर्मियों की शॉर्ट टर्म भर्ती के लिए अग्निपथ भर्ती योजना शुरू की. इसमें साढ़े 17 साल से 21 साल के आयु वर्ग के युवाओं को चार साल के लिए भर्ती किए जाने का प्रावधान है, जिसमें से 25 प्रतिशत को 15 और वर्षों तक सेवा विस्तार देना का प्रावधान है.

‘पहले साल महज 20 हजार वेतन…’  

पूर्व सेना प्रमुख ने संस्मरण ‘फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी’ में ये भी कहा है कि अग्निपथ योजना में पहले साल शामिल होने वाले अग्निवीरों के लिए शुरुआती वेतन महज 20 हजार रुपये प्रति माह रखा गया था. यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं थी. उन्होंने कहा कि यहां एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे थे, जिससे उम्मीद की जाती है कि वो देश के लिए अपनी जान दे देगा. नरवणे ने कहा कि एक सैनिक की दिहाड़ी मजदूर से तुलना नहीं की जा सकती है? हमारी ठोस सिफारिशों के बाद इसे बढ़ाकर 30 हजार प्रति माह किया गया.

केवल थल सेना में लागू करने के लिए दिया था प्रस्ताव

उन्होंने ये भी कहा कि योजना के नए रूप में आने से नौसेना और वायुसेना अचानक चौंक गए थे. उन्होंने कहा था कि इस योजना को मैंने केवल थल सेना में लागू करने के लिए पीएम को बताया था, जो सैनिक स्तर पर शॉर्ट सर्विस विकल्प के तर्ज पर थी और अधिकारियों के स्तर पर शॉर्ट सर्विस कमिशन के रूप में प्रचलित थी.

उन्होंने कहा कि पीएम से मुलाकात के कुछ महीनों में इस पर कुछ नहीं हुआ, क्योंकि कोविड-19 महामारी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा हुआ था. इसी दौरान पूर्वी लद्दाख के गलवान में चीन के साथ झड़प भी हुई. हालांकि, पीएमओ इस प्रस्ताव को बड़े दायरे में तीनों सैन्य बलों में लागू करने पर विचार कर रहा था. 

उन्होंने कहा कि त्रि-सेवा का मामला बनने के बाद इसकी पूरी जिम्मेदारी सीडीएस जनरल बिपिन रावत पर आ गई थी. उन्होंने कहा कि उन्हें नौसेना और वायुसेना के प्रमुखों को यह समझाने में कुछ समय लगा कि ये प्रस्ताव केवल सेना केंद्रित था और उन्हें इस योजना का हिस्सा बनने के तथ्य के साथ सामंजस्य बिठाने में कुछ समय लगा.

25 फीसदी को ही सेवा विस्तार देने का हुआ फैसला

एमएम नरवणे ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि अग्निपथ योजना का पहला मुद्दा इसमें लोगों को बनाए रखने का था. सेना ने महसूस किया कि इसे 75 फीसदी और 25 फीसदी के तौर पर होना चाहिए. सैन्य मामलों के विभाग ने इसे 50-50 फीसदी करने और 5 वर्ष की अवधि करने का विचार रखा. इसी प्रस्ताव को सीडीएस बिपिन रावत ने नवंबर, 2020 में पीएम, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री समेत अन्य सेवा प्रमुखों और पैनल के सामने रखा था.

उन्होंने कहा कि इसी बैठक में पहली बार अग्निपथ और अग्निवीर शब्दों का पहली बार इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने कहा कि बड़ी चर्चा के बाद इस पर फैसला लिया गया और इसे 25 फीसदी को सेवा विस्तार और 75 फीसदी को वापस सिविल सोसाइटी में भेजने का प्रस्ताव आया. पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि वायुसेना के लिए ये समस्या ज्यादा बड़ी थी, जिसके लिए भर्ती किए गए अग्निवीरों को जरूरी तकनीकी कौशल तीन साल में सिखाना पर्याप्त नहीं था.

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