3 घंटे पहले
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‘माया दर्पण’ और ‘तरंग’ जैसी नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर कुमार साहनी नहीं रहे। वो कोलकाता के AMRI हॉस्पिटल में एडमिट थे और बुढ़ापे से संबंधित बिमारियों से जूझ रहे थे। 83 साल के साहनी को पैरेलल सिनेमा बनाने के लिए पहचाना जाता था।
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साहनी ने 1965 में फिल्म ‘द ग्लास पेन’ से डेब्यू किया था। यह उनकी ग्रेजुएट डिप्लोमा फिल्म थी।
एक्ट्रेस मीता वशिष्ठ ने उनके निधन की पुष्टि की। उन्होंने साहनी के साथ ‘वार वार वारी’, ‘घायल गाथा’ और ‘कस्बा’ जैसी फिल्मों में काम किया था। साहनी के बाद अब उनके परिवार में उनकी वाइफ और दो बेटियां हैं। साहनी ने ‘माया दर्पण’ (1972), ‘तरंग’ (1984), ‘घायल गाथा’ (1989) ‘कस्बा’ (1990) जैसी क्लासिक फिल्में बनाई थीं। निर्देशक के अलावा साहनी ने लेखक और शिक्षक के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई थी।
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एक्ट्रेस मीता वशिष्ठ ने साहनी के निधन की जानकारी देते हुए यह फोटो शेयर किया। उन्होंने साहनी के साथ 3 फिल्में की थीं।
फ्रेंच फिल्ममेकर रॉबर्ट ब्रेसन की मदद की थी
साहनी का जन्म 7 दिसंबर 1940 को लरकाना में हुआ था। बंटवारे के बाद वो परिवार के साथ मुंबई आ गए। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से ग्रेजुएशन किया। यहां वो फेम फिल्ममेकर ऋत्विक घटक के स्टूडेंट रहे। इसके बाद वो फ्रेंच गवर्नमेंट स्कॉलरशिप के तहत आगे की पढ़ाई पूरी करने फ्रांस चले गए। वहां उन्होंने फ्रेंच फिल्ममेकर रॉबर्ट ब्रेसन की उनकी फिल्म ‘यूने फेम डूस’ में मदद की।
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1972 में रिलीज हुई ‘माया दर्पण’ को पैरेलल सिनेमा के लिए मील का पत्थर माना जाता है।
‘माया दर्पण’ को माना जाता है क्लासिक कल्ट
देश लौटकर उन्होंने निर्मल वर्मा की कहानी पर फिल्म बनाना शुरू की। 1972 में उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘माया दर्पण’ रिलीज की। इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी का नेशनल अवॉर्ड और बेस्ट फिल्म क्रिटिक के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
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तरंग, साहनी की दूसरी फिल्म थी। इसके लिए उन्होंने 12 साल तक फंडिंग की थी।
12 साल तक की ‘तरंग’ के लिए फंडिंग
इसके बाद उन्होंने 12 साल तक अपनी अगली फिल्म के लिए फंडिंग की और 1984 में ‘तरंग’ बनाई। अमाेल पालेकर, स्मिता पाटिल, गिरीश कर्नाड, ओम पुरी और श्रीराम लागू जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म को भी नेशनल अवॉर्ड मिला। कुमार की आखिरी फिल्म 2004 में रिलीज हुई ‘एज द क्रो फ्लाइज’ थी।
अवॉर्ड्स
- नेशनल फिल्म अवॉर्ड (1972, 1984 और 1991)
- फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड- बेस्ट फिल्म (1972, 1990 और 1991)
- द इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ रोट्रेडम- FIPRESCI (1990)
- प्रिंस क्लॉज अवॉर्ड (1998)
साल 2004 में कुमार ने फिल्में बनाना छोड़ दिया और लिखना-पढ़ना शुरू किया। कुमार ने ‘द शॉक ऑफ डिजायर एंड अदर एसेज’ जैसी किताबें लिखीं है।