Makar Sankranti 2024 Jabalpur Tilwara Ghat Connection With Shani Dev Surya Puja Sankranti Khichadi

Makar Sankranti 2024: सूर्य भगवान के उत्तरायण होने का पर्व मकर या तिल संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा.क्या आप जानते है कि तिल संक्रांति और खिचड़ी परंपरा कहां से प्रारंभ हुई थी ? आइए विस्तार से जानें

यहां से आरंभ हुआ तिल संक्रांति

जबलपुर के जाने-माने इतिहासकार डॉ आनंद राणा दावा करते है कि शनि देव ने सबसे पहले जबलपुर में नर्मदा किनारे अपने पिता सूर्यदेव को पहली बार उत्तरायण पर्व पर तिल अर्पित किया था तब से तिल संक्रांति के पर्व आरम्भ हुआ था. इसके बाद से जबलपुर के इस घाट का नाम तिलवारा घाट पड़ गया. यहां हर साल मकर संक्रांति का मेला लगता है.

तिलवारा घाट का मकर संक्रांति से नाता

इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत के उपाध्यक्ष और जबलपुर के श्रीजानकीरमण महाविद्यालय के प्रोफेसर डॉ आनंद राणा बताते है कि ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्यों से यह दावा पुख्ता होता है कि मकर संक्रांति का पर्व सबसे पहले प्राचीन नगर जबालिपुरम या आज के जबलपुर से शुरू हुआ था.उनके अनुसार मकर सक्रांति के दिन मां नर्मदा के किनारे बसे प्राचीन नगर जबलपुर स्थित तिलवारा घाट में शनि देव ने अपने पिता सूर्य की पूजा कर काले तिल अर्पित किए थे. इसी के साथ यहां तिल संक्रांति का उत्सव मनाया जाने लगा था.

मकर संक्रांति पर तिल का महत्व

डॉ राणा ने कहा कि तिलवारा का शाब्दिक अर्थ है तिल को वारना अर्थात तिल अर्पित करना. इसी वजह से मकर संक्रांति के दिन तिल का दान और उसका सेवन करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और उनका कुप्रभाव कम होता है.इससे सूर्य देवता का आशीर्वाद भी मिलता है.

क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति ?

इतिहासकार डॉ राणा कहते है कि पौराणिक संदर्भ के परिप्रेक्ष्य में एक कथा है इसके अनुसार सूर्य देव की दो पत्नियां थीं, छाया देवी और संज्ञा देवी.शनि देव छाया के पुत्र थे, जबकि यमराज संज्ञा के पुत्र थे.सूर्य देव ने छाया को संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए देखा और क्रोधित होकर छाया देवी और शनि को अपने से अलग कर दिया. परिणामस्वरूप क्रोधित होकर छाया और शनि ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया.

काले तिल से सूर्य की पूजा क्यों होती है ?

अपने पिता के शाप के शमन के लिए यमराज ने कठोर तप किया और सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्त किया लेकिन सूर्य देव ने कुपित होकर शनि देव के घर कुंभ को जला दिया. इससे छाया और शनि देव को कष्ट भोगना पड़ा.यमराज ने अपने पिता सूर्य देव से आग्रह किया कि छाया और शनि देव को शाप मुक्त कर दें. सूर्य देव सहमत हुए और वे शनि देव के घर कुंभ गए परंतु वहां पर सब कुछ जला हुआ था.केवल शनि देव के पास काले तिल ही शेष थे इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की और उनको प्रसन्न किया.

सूर्य देव ने शनि देव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा,उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे.शनि देव ने यह वचन दिया कि जो भी मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करेगा,वह उसे कभी कष्ट नहीं पहुंचाएंगे.इसलिए मकर संक्रांति के दिन तिल संक्रांति का विशेष महत्व है.

तिलवाटा घाट पर नर्मदा पूजा का महत्व

डॉ राणा बताते है कि तिलवारा घाट में पुरातन काल से मड़ई आरंभ हुई थी लेकिन जब कलचुरि काल में युवराज देव प्रथम (सन् 915 से सन् 945) में बड़ा प्रतापी राजा हुआ तब उसका विवाह दक्षिण के राजा अवनि वर्मा की बेटी नोहला देवी से हुआ जो भगवान् शिव की उपासक थीं और नर्मदा शिव पुत्री हैं. नोहला देवी ने मड़ई को मेला का स्वरुप प्रदान किया. प्रचलित है कि नर्मदा तट पर सूर्य को तिल अर्पण करने से मां नर्मदा के वाहन मकर के कष्टों का निवारण होता है. मां नर्मदा प्रसन्न होकर भक्तों को सुख समृद्धि देती है. इसी मान्यता के कारण मकर संक्रांति पर तिलवारा घाट में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. डॉ राणा के अनुसार नोहला देवी ने ही तिलवारा घाट का जीर्णोद्धार कराया, जहां विधिवत मकर संक्रांति पर पूजा आरंभ हुई थी.

कैसे शुरू हुई खिचड़ी की परंपरा ?

दूसरी परंपरा मकर संक्रांति पर खिचड़ी की है. जो त्रिपुरी (जबलपुर) से प्रारंभ हुई. डॉ राणा इसकी भी एक कथा बताते है कि महादेव के सुपुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. तारकासुर के तीन पुत्रों ने तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने बदला लेने के लिए ब्रह्मा की तपस्या की और वरदान मांगा कि तीन अभेद्य नगरी स्वर्णकार, रजत पुरी, और लोहपुरी जो आकाश में उड़ती रहें.एक हजार वर्ष बाद एक सीध में आएं तभी उनका विनाश होगा. ब्रह्मा ने तथास्तु तो कह दिया,फिर क्या था? इन तीनों का तीनों लोकों में तांडव शुरू हुआ.

यह तीनों पूरी मूल रूप से स्थायी नहीं रहती थीं परंतु काल गणना के अनुसार हजार वर्ष बाद त्रिपुरी में ही एक सीध में आना होता था. यह तथ्य मयदानव और विश्वकर्मा ने सभी देवताओं को बताया. सभी देवी – देवताओं ने महादेव से इनके विनाश के लिए आव्हान किया, तब इस सृष्टि का सबसे अनूठा युद्ध हुआ. महादेव के लिए एक रथ तैयार हुआ जिसमें सूर्य और चंद्रमा के पहिया बने,अश्व के रूप में इंद्र, यम, कुबेर वरुण, लोकपाल बने.धनुष पिनाक के साथ हिमालय और सुमेरु पर्वत डोर के रूप में वासुकी और शेषनाग,बाण में भगवान विष्णु और नोंक में अग्नि आए.इसके बाद महादेव ने श्री गणेश का आह्वान किया और पाशुपत अस्त्र से तीनों पुरियों को एक सीध में आते ही एक ही बाण से विध्वंस कर दिया.

त्रिपुरी (जबलपुर) में शैव मत की स्थापना हुई. त्रिपुरेश्वर शिवलिंग की स्थापना हुई.युद्ध के उपरांत मकर संक्रांति पड़ी, खिचड़ी महादेव को प्रिय है. अतः मकर संक्रांति पर महादेव को सभी अन्नों को मिलाकर बनी खिचड़ी समर्पित की गई.यहीं से मकर संक्रांति पर खिचड़ी परंपरा आरंभ हुई.इस दिन महादेव को तिल भी चढ़ाई जाती है.वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस तिथि का विशेष महत्व है,क्योंकि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो सूर्य की किरणें नव उर्जा का संचार करती हैं जिसे संपूर्ण प्रकृति और मानस मंडल ग्रहण कर पल्लवित और पुष्पित होता है.

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