Lord Shiva: नागों से भगवान शिव का एक विशेष लगाव है. अधिकतर चित्र एवं मूर्ति में आपने देखा होगा कि शिव जी के गले या कान में कभी भी सोने या हीरे के आभूषण नहीं मिलेंगे क्योंकि वो पर्यावरण के परम हितैषी हैं. वह सर्प को अपना कंठ हार (आभूषण) रखते हैं. शिव जी बड़े ही सरल वेश मे रहते है और प्रकृति के विरुद्ध कोई काम नहीं करतें. “Enviromnental friendly” रहने की सीख हमें भगवान शिव जी ने सबसे प्रथम बार समझाई थी.
जैसे की आप सब जानते हैं की वह सर्पों और अन्य पशुओं से कितना प्रेम करते हैं. शिव पुराण में भी इसका उल्लेख आया है. शिवपुराण कैलाश संहिता 17.44 के अनुसार, शिव की कृपादृष्टि पड़ते ही पशु भी पशुपति बन जाता है अर्थात शिव बन जाता है.
शिव ने वासुकी नाग को अपना कंठ हार आभूषण बनाया और जगत का विष दूर किया: –
यह प्रमाण लिंग पुराण में मिलता है – नरेन्द्रश्चैव यक्षेशा व्यपोहन्तु मलं मम ॥ अनन्तः कुलिकश्चैव वासुकिस्तक्षकस्तथा। कर्कोटको महापद्मः शङ्खपालो महाबलः ॥ शिवप्रणामसम्पन्नाःशिवदेहप्रभूषणाः। (श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे)
अर्थ: – शिव के प्रणाम में रत तथा शिव के शरीर के आभूषण स्वरूप अनन्त, कुलिक, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, महापद्म, शंखपाल और महाबल मेरे पाप को तथा स्थावर जंगम विष को दूर करें.
भगवान शिव ने वासुकी नाग का यज्ञोपवीत भी धारण किया हैं भगवान शिव ने: –
पद्म पुराण श्रृष्टि खंड अध्याय क्रमांक 39–42 के अनुसार, वासुकी नाग का यज्ञोपवीत धारण कसने से उनकी नाभि के मूल भाग मे व मुख ओर पछ सटे हए दिखायी देते हैं. लोग अच्छा दिखने के लिए कंठ में महंगे अभूषण धारण करते हैं. लेकिन शिव जी ने एक पशु (सर्प) को चुना अपना अभूषण जोकि समाज में निंदित और उपेक्षित है. सब लोग सर्प से डरते हैं और यही डर भगवान शिव जी दूर कर रहे हैं वासुकी को अपना कंठ हार बना कर. शिव जी अपने सभी भक्तों को यह सीख दे रहे है कि जब मैं हूं तो भय किस बात की, कोई भी पशु या पशु तुल्य व्यक्ति अपको कोई हानि नहीं पहुंचा सकता.
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