
जस्टिस संजय किशन कौल
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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय किशन कौल ने शुक्रवार को कहा कि ऐसे समय में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहिष्णुता का स्तर कम हो गया है, लोगों को एक-दूसरे की राय के प्रति सहिष्णुता रखनी चाहिए। कार्य दिवस पर कहा कि एक न्यायाधीश की निर्भीकता एक बहुत महत्वपूर्ण कारक है और बार का यह कर्तव्य है कि वह न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करें।
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में छह साल और 10 महीने से अधिक के कार्यकाल के बाद 25 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो रहे जस्टिस कौल उस ‘रस्मी पीठ’ का हिस्सा थे, जो उन्हें विदाई देने के लिए एकत्र हुई थी। सुप्रीम कोर्ट में 18 दिसंबर से एक जनवरी, 2024 तक शीतकालीन अवकाश रहेगा, ऐसे में जस्टिस कौल का आज अंतिम कार्यदिवस है।‘रस्मी पीठ’ का नेतृत्व कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस कौल के साथ अपने जुड़ाव को याद किया।
हम दोनों कॉलेज के छात्र थे
उन्होंने आगे कहा कि मेरा हमेशा मानना रहा है कि अदालतें न्याय के मंदिर हैं। इन्हें वादियों के लिए हमेशा खुला रहना चाहिए। वादी जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं तो वादी थके होते हैं। न्याय की अंतिम आस लेकर लोग सुप्रीम कोर्ट आतें हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 70 के दशक के मध्य के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, हम दोनों (न्यायमूर्ति कौल और मैं) एक साथ कॉलेज के छात्र थे और मुझे लगता है कि यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है कि हमने एक-दूसरे के साथ यहां भी पीठ साझा की, चाहे वह पुट्टास्वामी (निजता का अधिकार) मामला हो, या समलैंगिकों के विवाह का मामला, अथवा हाल ही में अनुच्छेद 370 से संबंधित मुकदमा।