सूर्य को कैद करने के लिए इसरो के आदित्य एल1 सूट का उपयोग, जानें यह क्या है और ओवरहीटिंग में कैसे काम करता है

Aditya L1 SUIT: आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट ने SUIT के जरिए सूरज की कुछ फुल वेवलेंथ तस्वीरें 200 से 400 नैनोमीटर के बीच कैप्चर की हैं. इन तस्वीरों को इसरो की ओर से ट्विटर पर शेयर किया गया है जो 11 अलग-अलग रंगो में दिखाई दे रही हैं. ऐसा पहली बार है जब सूरज की फुल डिस्क तस्वीरें SUIT ने ली हैं. आज हम आपको ये बताने वाले हैं कि आखिर कैसे आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट ने ये फोटो खींची और इसमें कौन-सा कैमरा लगा है जो सूरज की फोटो को कैप्चर कर रहा है. आदित्य एल-1 स्पेसक्राफ्ट को इसरो ने 2 सितंबर को लॉन्च किया था और इसके SUIT पेलोड को 20 नवंबर को इसरो ने खोला था.

क्या है ये SUIT?

इसरो ने इस स्पेसक्राफ्ट में सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (Solar Ultraviolet Imaging Telescope- SUIT) लगा हुआ है जिसने सूरज के फोटोस्पेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें ली हैं. फोटोस्पेयर से मतलब सूरज की सतह से है जबकि क्रोमोस्फेयर का मतलब सतह और बाहरी वायुमंडल के बीच मौजजूद पतली परत. क्रोमोस्फेयर सूरज की सतह से 2000 किलोमीटर ऊपर तक होती है.

बता दें, इससे पहले 6 दिसंबर को सूरज की लाइट साइंस इमेज ली गई थी. ऐसा पहली बार हुआ है जब SUIT की मदद से फुल डिस्क इमेज कैप्चर हुई हैं. फुल डिस्क से मतलब सूरज का जो हिस्सा सामने है उसकी पूरी तस्वीर से है. ISRO के द्वारा शेयर किये गए पोस्ट में आप देख सकते हैं कि इनमें सूरज में मौजूद प्लेग, घब्बे और सूरज के शांत पड़े हिस्से दिखाई दे रहे हैं.

SUIT को किसने बनाया है?

SUIT को मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (MAHE), इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA), सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन स्पेस साइंस इंडियन (CESSI), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, उदयपुर सोलर ऑब्जरवेटरी, तेजपुर यूनिवर्सिटी और ISRO के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है. ये आदित्य एल 1 में लगे 7 अलग-अलग पे लोड में से एक है.

कैसे ली गई फोटो?

ऑनबोर्ड कैमरे द्वारा 5 दिसंबर को कैप्चर किए गए वीडियो में SUIT जांच के एपर्चर के खोलने और बंद होने का दृश्य देखा गया है जिससे पेलोड और थर्मल फिल्टर में सौर विकिरण के प्रवेश की सुविधा मिलती है. ISRO के पूर्व वैज्ञानिक मनीष पुरोहित ने कहा कि अगर सूर्य से आने वाले सभी विकिरण को ऑप्टिकल कैविटी में प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है तो मिरर और डिटेक्टर अत्यधिक गरम होने के कारण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. ऐसा न हो इसके लिए एक मेटल डाई इलेक्ट्रिक को लगाया गया है जो 200 नैनोमीटर से नीचे और 400 नैनोमीटर से ऊपर के अधिकांश सौर प्रवाह को रिफ्लेक्ट कर देता है. उन्होंने कहा कि इस रेंज में फ्लक्स का केवल 1 प्रतिशत SUIT के मुख्य ऑप्टिकल चैम्बर में ट्रांसमिट होता है जिससे ये खराब नहीं होता. इसी की मदद से सूरज की फुल डिस्क तस्वीरें ली गई हैं.

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