Inter Faith Live In Relationship Can Not Be Treated As Marriage Says Allahabad High Court. – Amar Ujala Hindi News Live – इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला:अंतरधार्मिक जोड़े के लिव

Inter faith live in relationship can not be treated as marriage says Allahabad High Court.

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लखनऊ इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बृहस्पतिवार को एक अहम फैसले में कहा कि किसी अंतरधार्मिक जोड़े के लिव – इन संबंध को कोर्ट द्वारा विवाह की तरह मंजूरी नहीं दी जा सकती है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अयोध्या के अलग- अलग धर्म वाले युवती व युवक की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें युवक के खिलाफ युवती को बहला फुसलाकर भगा ले जाने के आरोपों में दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आग्रह किया गया था। यह मामला उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निरोधक अधिनियम से जुड़ा है। जिसमें कोर्ट ने युवती के आग्रह पर उसकी इच्छा के मुताबिक कानूनी प्रावधानों के तहत विवाह करने तक उसे लखनऊ के प्रयाग नारायण रोड स्थित महिला संरक्षण गृह लखनऊ भेजने का आदेश दिया। 

यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने युवती व युवक द्वारा दाखिल याचिका पर दिया। याचियों के अधिवक्ता का कहना था कि दोनों बालिग हैं और मित्र के रूप में काफी समय से एक साथ लिव – इन में रह रहे हैं। जब युवती ने युवक के साथ विवाह की इच्छा जताई तो युवती के परिजनों ने जान से मरने की धमकी दी। ऐसे में युवती मर्जी से अपना घर छोड़कर युवक के साथ लिव – इन संबंध में रहने लगी। ऐसे में युवक के खिलाफ दर्ज एफ आई आर को निरस्त करने लायक है।

उधर, याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील का कहना था कि दोनों अलग- अलग धर्म के हैं। दोनों ने उत्तर प्रदेश अवैध धर्मांतरण निरोधक अधिनियम 2021 की धारा 8 व 9 के तहत अपना धर्म परिवर्तन करने का आवेदन नहीं किया है। ऐसे में उनका लिव इन संबंध में रहना अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है और एफआईआर रद्द करने योग्य नहीं है।

मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा की दोनो याची अलग – अलग धर्म के हैं। उन्होंने कानून के मुताबिक विवाह नहीं किया और वे लिव इन संबंध में रह रहें हैं। जबकि 2021 के अधिनियम की धारा 3(1)ऐसे लिव इन संबंध की मनाहीं करती है। ऐसे में याचियों के इस तरह के संबंध में रहने को विवाह की तरह मंजूरी नहीं दी जा सकती है। इसके मद्देनजर जब तक वे कानून के अनुसार विवाह नहीं करते, एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती। हालांकि, कोर्ट ने याचियों को यह छूट भी दी कि अगर वे जान का खतरा या कोई अपराध महसूस करें तो इसके लिए कानूनी प्रावधानों के तहत अदालत में अर्जी दे सकते हैं या परिवाद दाखिल कर सकते हैं।

इसके बाद कोर्ट ने युवती के आग्रह पर उसकी इच्छा के मुताबिक कानूनी प्रावधानों के तहत विवाह करने तक उसे सुरक्षित लखनऊ के प्रयाग नारायण रोड स्थित महिला संरक्षण गृह लखनऊ भेजने का आदेश दिया। इस मामले की सुनवाई के बाद युवती के परिजनों द्वारा उसे खींचकर ले जाने और आधार कार्ड ले लेने की कोशिश की गई। बाद में युवती का आधार कार्ड उसे वापस मिल गया।

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