India Pakistan Agra Summit Ambassador Ajay Bisaria Musharraf Kashmir Advani – Amar Ujala Hindi News Live

India Pakistan Agra Summit Ambassador Ajay Bisaria Musharraf Kashmir Advani

लाल कृष्ण आडवाणी, परवेज मुशर्रफ और पूर्व राजदूत अजय बिसारिया (फाइल)
– फोटो : ANI

विस्तार


करीब दो दशक पहले साल 2001 में भारत दौरे पर आए पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने की कवायद हुई थी। कारगिल के युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्तों की जमी बर्फ पिघलाने के लिए आगरा शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। तल्ख हो चुके संबंधों को सामान्य बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मुशर्रफ की अगुवाई में दोनों देशों की शिखर वार्ता हुई। हालांकि, मुशर्रफ के अड़ियल रूख के कारण वार्ता बेनतीजा रही।

इतिहास में आगरा शिखर वार्ता को लेकर कई दृष्टिकोण दर्ज हैं। ताजा घटनाक्रम में वाजपेयी के सहयोगी रहे राजदूत अजय बिसारिया ने कुछ अहम बिंदु सामने रखे हैं। उन्होंने वाजपेयी, मुशर्रफ के अलावा आडवाणी से जुड़ी बातें एक किताब की शक्ल में साझा की हैं। उन्होंने बताया है कि कश्मीर पर मुशर्रफ अपने उग्र विचारों से समझौता करने को राजी नहीं थे। आतंकवाद पर नकेल करने के मुद्दे पर मुशर्रफ के इरादे कमजोर थे। उन्होंने साफ किया कि 2001 में आगरा समिट के नाकाम होने का कारण लकृष्ण आडवाणी का कट्टरपंथी दृष्टिकोण नहीं, मुशर्रफ का रवैया है।

वाजपेयी के कार्यकाल में प्रमुख सहयोगी रहे बिसारिया ने अपनी किताब में आगरा शिखर सम्मेलन के कई नाटकीय विवरणों का जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन, मुशर्रफ ने देश-दुनिया के प्रमुख समाचार पत्रों और टीवी नेटवर्क संपादकों से नाश्ते के दौरान बातचीत की। बकौल बिसारिया, मुशर्रफ ने कश्मीर पर अपनी कठोर स्थिति को ‘उजागर’ किया और आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानियों के बराबर बताया।

‘एंगर मैनेजमेंट: द ट्रबल्ड डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप बिटवीन इंडिया एंड पाकिस्तान’ शीर्षक वाली इस किताब में बिसारिया बताते हैं कि मुशर्रफ और मीडिया की बातचीत का सार्वजनिक प्रसारण हो रहा था। पर्यवेक्षकों को यह वार्ता के दौरान मध्य-शिखर रिपोर्ट जैसा लग रहा था। पाकिस्तान के कठोर विचार भारत पर थोपे जाने का एहसास हो रहा था। भारत की तरफ से तत्काल कोई ठोस और आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई। बिसारिया बताते हैं कि इस हाईप्रोफाइल आयोजन के कारण आगरा में अस्थायी प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) जैसा बन चुका था। वे और वाजपेयी के प्रधान सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे ब्रजेश मिश्रा, टेलीविजन पर मुशर्रफ की टिप्पणियों को ‘निराशा’ के साथ देख रहे थे।

बकौल पूर्व राजनयिक बिसारिया, ब्रजेश मिश्रा मेरी ओर मुड़े और कहा कि प्रधानमंत्री वाजपेयी को इस घटनाक्रम के बारे में सूचित करने की जरूरत है। मिश्रा के मुताबिक वाजपेयी बैठक कक्ष के बाहर होने वाली हर चीज से बेखबर मुशर्रफ के साथ बातचीत कर रहे थे। राजदूत बिसारिया 22 साल पहले की घटना का जिक्र कर बताते हैं कि ब्रजेश मिश्रा ने कुछ पंक्तियां लिखीं। उन्होंने तुरंत टाइप कर दिया। इसमें लिखा गया था कि मुशर्रफ की प्रेस कॉन्फ्रेंस का प्रसारण हो रहा है। इसमें उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर अपने कट्टरपंथी रुख को दोहराने के साथ-साथ आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानियों के समान करार दिया।

बिसारिया को उस कमरे में जाने की ड्यूटी मिली जहां वाजपेयी और मुशर्रफ के अलावा वार्ता से जुड़े बिंदुओं को लिखने वाले दो लोग बैठे थे। राजदूत बताते हैं कि कमरे में उनके प्रवेश से बातचीत बाधित हुई। दोनों नेताओं ने उनकी तरफ देखा। बकौल बिसारिया, ‘मुशर्रफ बात कर रहे थे और वाजपेयी जाहिर तौर पर बहुत दिलचस्पी से सुन रहे थे। मैंने बॉस को पेपर सौंप दिया और कहा कि कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं।’ उन्होंने बताया कि ‘कमरे से बाहर निकलने के बाद, वाजपेयी ने पेपर देखा और इसे मुशर्रफ को पढ़कर सुनाया। वाजपेयी ने मुशर्रफ से कहा कि उनके व्यवहार के कारण दोनों देशों की शिखर वार्ता में मदद नहीं मिल रही है।

आडवाणी की भूमिका पर यह बात आई सामने

तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका पर बिसारिया बताते हैं कि चर्चित नैरेटिव है कि आडवाणी ने कश्मीर मुद्दे पर वीटो कर दिया, क्योंकि वह इस विषय पर पाकिस्तान के साथ नरमी दिखाना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा, ‘आडवाणी मीडिया रिपोर्टिंग के तिरछेपन (slant) से भली-भांति परिचित थे। इस कारण वे इस मामले में खलनायक बन गए।’ जून 2022 में विदेश सेवा से सेवानिवृत्त हुए बिसारिया ने अपनी किताब में लिखा है कि पाकिस्तान में बाद के दिनों में आई रिपोर्ट्स से साफ हुआ कि वास्तविकता अलग थी। लगभग वही मसौदा सामने आया, जिस पर भारत और पाकिस्तान दोनों सहमत थे।

बिसारिया बताते हैं कि दोनों देशों के मसौदा वक्तव्य में तत्कालीन पाकिस्तान विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार के साथ जसवंत सिंह का भी जिक्र था। तत्कालीन रक्षा और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने वाजपेयी को इसकी जानकारी भी दी। वार्ता खत्म होने के बाद जैसे ही जसवंत कमरे से बाहर निकले, आडवाणी ने आह भरी और अंग्रेजी में कहा, कि अब वह ‘फॉल मैन’ होंगे।

शिखर वार्ता की विफलता को लेकर उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के स्तर पर संयुक्त बयान पर बातचीत, पाकिस्तान का सबसे चतुर विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा, नाकामी का एक अन्य कारण यह था कि दोनों देशों ने बहुत कम योजना के साथ सीधे शीर्ष नेतृत्व की बातचीत की पहल की। हालांकि, बिसारिया इसे पूर्ण नाकामी नहीं मानते। उन्होंने लिखा है, तमाम बातों के बावजूद, मुशर्रफ को निमंत्रण से एक मकसद जरूर पूरा हुआ। वाजपेयी पाकिस्तान के बड़बोले तानाशाह को समझने में कामयाब रहे। यह अनुभव अगले तीन वर्षों में पाकिस्तान नीति विकसित करने में काफी मददगार साबित हुई।बकौल बिसारिया, शिखर सम्मेलन सफल नहीं हुआ, लेकिन कूटनीति काम आई। इसने दोनों देशों के लिए काम किया।






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