Holika Dahan 2024 on 24 march know folk tradition and shastarth aspect of holika dahan

Holika Dahan 2024: होली और दिवाली हमारे प्रमुख त्योहारों में आते हैं. हमारी लोक परम्पराओं में कालान्तर मे बहुत सी लोक कथाएं जुड़ती चली गयी. लेकिन उनका कोई शास्त्रीय उल्लेख नहीं है. होली को अक्सर प्रहलाद और होलिका से जोड़ा जाता है और उसे जलाते हुए बेचारी सा प्रमाणित किया जाता है.

लेकिन इसका मात्र एक अल्प सा उल्लेख नारद पुराण, पूर्व भाग, चतुर्थ पाद, अध्याय 124 में यह लिखा है कि “होलिका प्रहलाद को भय देने वाली राक्षसी थी.” किसी भी शास्त्र मे होलिका दहन की अथवा होलिका के दलित होने का उल्लेख भी नहीं है. ये सब लोक कथाएं हैं जो समय–समय पर हमारी परम्पराओं से जुड़ती चली गयी.

सच्चाई यह है की होली मनाने के पीछे का कारण भविष्य पुराण मे दिया गया है जोकि इन लोक कथाओं से बिल्कुल भिन्न हैं. भविष्य पुराण उत्तर पर्व 132 के अनुसार, महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि फाल्गुन की पूर्णिमा को उत्सव क्यों मनाया जाता है और सभी जगह होली क्यों जलाई जाती है? क्या कारण है कि बालक उस दिन घर-घर मे अनाप-शनाप शोर मचाते हैं? अडाडा किसे कहते हैं,  किस देवता का पूजन किया जाता है?

अडाडा या होलिका की परम्परा क्या है?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सतयुग में रघु नाम के राजा थे. उन्होंने समस्त पृथ्वी को जीतकर राजाओं को अपने वश में करके पुत्र की भांति प्रजा का लालन-पालन किया. उनके राज्य में कभी दुर्भिक्ष नहीं हुआ और न किसी की अकाल मृत्यु हुई. अधर्म में किसी की रुचि नहीं थी. पर एक दिन नगर के लोग राजद्वार पर सहसा एकत्र होकर ‘त्राहि’, ‘त्राहि’ पुकारने लगे. राजा ने इस तरह भयभीत लोगों से कारण पूछा.

लोगों ने कहा कि ढोंढा (होलिका) नाम की एक राक्षसी प्रतिदिन हमारे बालकों को कष्ट देती है और उस पर किसी मन्त्र-तन्त्र,औषधि आदि का प्रभाव भी नहीं पड़ता, उसका किसी भी प्रकार निवारण नहीं हो पा रहा है. तब राजा ने राज्यपुरोहित महर्षि वशिष्ठ से उस राक्षसी के विषय में पूछा. उन्होंने राजा से कहा कि माली नाम का एक दैत्य है, उसी की एक पुत्री है, जिसका नाम है ढोंढा है. उसने बहुत समय तक उग्र तपस्या करके भगवान शिव जी को प्रसन्न किया. उन्होंने उस से वरदान मांगने को कहा.

इस पर ढोंढा ने यह वरदान मांगा कि देवता, दैत्य, मनुष्य आदि मुझे न मार सके तथा अस्त्र-शस्त्र आदि से भी मेरा वध न हो, साथ ही दिन में, रात्रि में, शीतकाल, उष्णकाल तथा वर्षाकाल में, भीतर अथवा बाहर कहीं भी मुझे किसी से भय न हो. इसपर भगवान शंकर ने ‘तथास्तु’ कहकर यह भी कहा कि ‘तुम्हें उन्मत्त बालकों से भय होगा.’ इस प्रकार वर देकर भगवान शिव अपने धाम को चले गये. वही ढोंढा नाम की कामरूपिणी राक्षसी नित्य बालकों को पीड़ा देती है. ‘अडाडा’ मन्त्र का उच्चारण करने पर वह ढोंढा शान्त हो जाती है. इसलिए उसको अडाडा भी कहते हैं. यही उस राक्षसी ढोंढा का चरित्र है. अब मैं उससे पीछा छुड़ाने का उपाय बता रहा हूं.

आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को सभी लोगों को निडर होकर क्रीडा करनी चाहिए और नाचना, गाना तथा हंसना चाहिए. बालक लकड़ियों से बनी हुई तलवार लेकर वीर सैनिकों की भांति हर्ष से युद्ध के लिए उत्सुक हो दौड़ते हुए निकल पड़ें और आनन्द मनाएं. सूखी लकड़ी, उपले, सूखी पत्तियां आदि अधिक-से-अधिक एक स्थान पर इकट्ठा कर उस ढेर में  मन्त्रों से अग्नि लगाकर उसमें हवन कर हंसकर ताली बजाना चाहिए. उस जलते हुए ढेर की तीन बार परिक्रमा कर बच्चे, बूढ़े सभी आनन्ददायक विनोदपूर्ण वार्तालाप करें और प्रसन्न रहें. इस प्रकार रक्षामन्त्रों से, हवन करने से, कोलाहल करने से तथा बालकों द्वारा तलवार के प्रहार के भय से उस दुष्ट राक्षसी का निवारण हो जाता है. 

वशिष्ठजी का यह वचन सुनकर राजा रघु ने सम्पूर्ण राज्य में लोगों से इसी प्रकार उत्सव करने को कहा और स्वयं भी उसमें सहयोग किया, जिससे वह राक्षसी विनष्ट हो गयी. उसी दिन से इस लोक में ढोंढा का उत्सव प्रसिद्ध हुआ और अडाडा की परम्परा चली. ब्राह्मणों द्वारा सभी दुष्टों और सभी रोगों को शान्त करने वाला होम इस दिन किया जाता है, इसलिये इसको होलिका भी कहा जाता है.

सब तिथियों का सार एवं परम आनन्द देने वाली यह फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि है. इस दिन रात को बालकों की विशेषरूप से रक्षा करनी चाहिए. गोबर से लिपे-पुते घर के आंगन में बहुत से लकड़ी के खड्ग लिए  बालक बुलाने चाहिए और घर में रक्षित बालकों को काष्ठ निर्मित खड्ग से स्पर्श कराना चाहिए. हंसना, गाना, बजाना, नाचना आदि कर के उत्सव के बाद गुड़ और बढ़िया पकवान बना कर बालकों को देने चाहिए. इस विधि से ढोंढा का दोष अवश्य शान्त हो जाता है.

युधिष्ठिर ने पूछा कि दूसरे दिन चैत्र मास से वसन्त ऋतु का आगमन होता है, उस दिन क्या करना चाहिये ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा होली के दूसरे दिन प्रतिपदा में प्रातः काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त हों, पितरों और देवताओं के लिये तर्पण-पूजन करना चाहिए और सभी दोषों की शान्ति के लिए होलिका की विभूति की वन्दना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए. घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाएं और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत करें. उसपर एक पीठ (चौकी) रखें. पीठ पर सुवर्ण सहित पल्लवों से समन्वित कलश स्थापित करें. उसी पीठपर श्वेत चन्दन भी स्थापित करना चाहिए.

सौभाग्यवती स्त्री को सुन्दर वस्त्र, आभूषण पहना कर दही, दूध, अक्षत, गन्ध, पुष्प आदि से उस खण्ड की पूजा करनी चाहिए. फिर आम के पत्तों सहित उस चन्दन का प्राशन करना चाहिए. इससे आयु की वृद्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त कामनाएं सफल होती हैं. भोजन के समय पहले दिन का पकवान थोड़ा-सा खाकर इच्छानुसार भोजन करना चाहिए. इस विधि से जो फाल्गुनोत्सव मनाते है, उसके सभी मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं. आधि- व्याधि सभी का विनाश हो जाता है और वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य से पूर्ण हो जाता है. यह परम पवित्र, विजयदायिनी पूर्णिमा सब विघ्नों को दूर करनेवाली है तथा सब तिथियों में उत्तम है.

इस प्रकार हमें यह बात समझ मे आती है कि होली का कोई भी प्रसंग “प्रहलाद ने होलिका जिंदा जलाया” से नहीं जुड़ा है. यह जन चेतना का लोकोत्स्व है. ऋतु बदलने का सुअवसर है और सामाजिक सौहार्द का परिचायक हैं.

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