बैडमिंटन खेलने के लिए तो फिर भी एक रैकेट, शटल कॉक और नेट चाहिए लेकिन, खो खो जैसा देसी खेल खेलने के लिए तो सिर्फ हौसला, हिम्मत और जोश ही चाहिए। गांव, गली, कूचे और शहरी बस्तियों के बच्चों को खेलकूद में शामिल करने के लिए बीते पांच साल से चल रहे खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया के अभियान को नई रोशनी देने के लिए राष्ट्रीय महिला टीम की कप्तान नसरीन की बायोपिक बनने जा रही है। इस बायोपिक का प्रदर्शन सिनेमाघरों के अलावा देश के तमाम सरकारी स्कूलों में भी करने की योजना बनाई जा रही है। इस पूरी योजना का खुलासा 24 दिसंबर से कटक, ओडिशा में होने जा ‘अल्टीमेट खो खो’ मुकाबलों के उद्घाटन पर होने जा रहा है।
नसरीन खान को इस साल का अर्जुन पुरस्कार मिला है। अर्जुन पुरस्कारों की सूची में नसरीन का नाम शामिल होने की सूचना खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल ने बुधवार देर शाम अपनी एक ट्वीट के जरिये दी। नसरीन को वह देश की ऐसे बेटी मानते हैं जिसने अभावों में रहने के बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी। सुधांशु कहते हैं, ‘खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया का मकसद देश के तमाम वंचित परिवारों से ऐसी और कई नसरीन तलाशना है। उन्हें इस खेल में तराशना है और उन्हें जीवन में एक ऐसे मुकाम पर पहुंचाना है जहां न सिर्फ वह अपने परिवार का बल्कि पूरे समाज का सहारा बन सकें।’
भारतीय महिला खो खो टीम की कप्तान नसरीन के नेतृत्व में भारत ने दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। खो खो को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए भी खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया लगातार कोशिशें कर रहा है। फेडरेशन अध्यक्ष सुधांशु मित्तल कहते हैं, ‘कबड्डी की तरह ही खो खो भी एक ऐसा खेल है जिसमें सिर्फ इंसानी जज्बे और जुनून की जरूरत है। इस खेल में किसी भी तरह के उपकरण की जरूरत नहीं होती। इस खेल को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है। तमाम देशों मे ये खेल बहुत बड़े पैमाने पर खेला जाने लगा है और इसे दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाने के हमारे प्रयास काफी सफल हुए हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले ‘अल्टीमेट खो खो’ की व्यूअरशिप क्रिकेट लीग के बाद सबसे ज्यादा रही है।’