Chhatarpur News: पैरों में मजबूरी, इरादों में आग! छतरपुर के हरगोविंद की कहानी कर देगी हैरान

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छतरपुर के रहने वाले हरगोविंद की कहानी रोचक है. 2017 में अपंगता आने के बाद भी वह पढ़ाई कर रहे हैं. खास यह कि परिवार भी चलाते हैं.

हाइलाइट्स

  • हरगोविंद 2017 में अपंगता के बावजूद पढ़ाई कर रहे हैं.
  • हरगोविंद का सपना पटवारी बनना है और वे इसके लिए मेहनत कर रहे हैं.
  • हरगोविंद ई-रिक्शा चलाकर परिवार चलाते हैं और पढ़ाई भी करते हैं.

Hargovind Kushwaha Success Story. छतरपुर जिले के वार्ड क्रमांक 8 के रहने वाले हरगोविंद कुशवाहा जिन्हें साल 2017 में पैरों में अपंगता आ गई थी . इलाज के लिए बड़े-बड़े अस्पतालों में इलाज कराया. इसी बीच वह सरकारी नौकरी की तैयारी भी करते रहे. शादी भी हो गई लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी. हरगोविंद का कहना है कि उनका पटवारी बनना सपना है. जिसके लिए वह मेहनत करते रहेंगे.

हरगोविंद बताते हैं कि 15 सितंबर 2019 के दिन अचानक मेरे पैरों में दर्द हुआ. अस्पताल दिखाने पहुंचे तो पता चला कि शरीर के नीचे वाले हिस्से में अपंगता आ गई. मध्यप्रदेश के बड़े अस्पतालों के साथ ही दिल्ली एम्स में भी दिखाया. धीरे-धीरे वॉकर से चलना शुरू किया. छतरपुर आकर एक डॉक्टर के गाइडेंस में थैरेपी लेना लगा. आराम तो मिला लेकिन पैरों में अपंगता तो है ही.

पढ़ाई के लिए पत्नी करती है मोटिवेट

हरगोविंद ने आगे बताया कि इसी बीच शादी भी हो गई. हालांकि, पत्नी शिक्षित है तो उसने मुझे फुल सपोर्ट किया. घर खर्च के लिए ई-रिक्शा चलाने लगा. साथ ही पढ़ाई भी करता रहा. मेरी पढ़ाई में पत्नी बहुत साथ देती है. मेरी पढ़ाई के नोट्स भी वह खुद तैयार करती है.

हर दिन पढ़ते हैं 3 घंटे 

हरगोविंद बताते हैं कि सुबह 9 से 12 निःशुल्क कोचिंग सेंटर में जाकर पढ़ाई करता हूं. इसके बाद ई-रिक्शा चलाकर पैसे कमाता हूं. घर में सब्जी लगा रखी है तो ई-रिक्शा से ही सब्जी भी बेचता हूं. लेकिन हर दिन 3 घंटे पढ़ाई जरूर करता हूं. बता दें, हरगोविंद ने बीकॉम के साथ ही समाजशास्त्र से एमए भी किया है.

पटवारी बनना है सपना

हरगोविंद बताते हैं कि ग्रेजुएशन के दौरान दोस्त ने कहा था कि पिताजी तुम्हारे पटवारी हैं. दरअसल, मेरे पिताजी का नाम भगवान दास कुशवाहा उर्फ पटवारी तो सभी लोग पटवारी ही कहते हैं. घर में नेम प्लेट भी पटवारी की ही लगी है. यहीं से सोच लिया कि जब घर में नेम प्लेट भी पटवारी की लगी है तो फिर पटवारी ही बनना है और कुछ नहीं बनना है.

हरगोविंद बताते हैं कि मेरे दोस्त भी पटवारी हैं जिनके मार्गदर्शन में पटवारी की तैयारी करता रहता हूं. उनके साथ रहा तो पटवारी का काम भी सीख लिया. जमीन के सीमांकन से लेकर बहुत से काम सीख लिए.

पिछली बार 2 मार्क्स से रुका सेलेक्शन

हरगोविंद बताते हैं कि जब पिछली बार पटवारी की भर्ती आई थी तो मेरा 2 नंबर से पटवारी में रुक गया था. क्योंकि मुझे एक्स्ट्रा टाइम नहीं दिया गया था. लेकिन इस बार जब वैकेंसी आएगी तो 2 मार्क्स नहीं अधिक से अधिक नंबर लेकर आऊंगा.

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