Chaitanya Mahaprabhu Jayanti 2024 Date History Significance unknown facts

Chaitanya Mahaprabhu Jayanti 2024: 25 मार्च 2024 को होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का जन्मोत्सव भी मनाया जाएगा. चैतन्य महाप्रभु का जन्म बंगाल के नवद्वीप नामक गांव (अब मायापुर) में संवत 1407 में फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के दिन हुआ था.

चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी, इस पूर्णिमा को गौरव पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं. बंगाल वैष्णव परंपरा में चैतन्य महाप्रभु को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया है. आइए जानते हैं कौन है चैतन्य महाप्रभु, इनका इतिहास और रोचक बातें.

चमत्कारी था चैतन्य महाप्रभु का जन्म (Chaitanya Mahaprabhu Birth story)

संवत 1407 फाल्गुन पूर्णिमा के दिन में श्री जगन्नाथ मिश्र और शची देवी के घर चैतन्य महाप्रभु ने 9वीं संतान के रूप में जन्म लिया. आमतौर पर 9 महीने मां के गर्भ में रहने के बाद शिशु का जन्म होता है लेकिन चैतन्य महाप्रभु का जन्म चमत्कारी और रहस्यमयी माना जाता है. चैतन्य महाप्रभु अपनी मां के गर्भ में 13 महीने रहने के बाद जन्मे थे. इनका नाम विश्वंभर रखा गया था.

जन्म के बाद ज्योतिष की भविष्यवाणी सच हुई

चैतन्य महाप्रभु के माता-पिता को पहले आठ कन्याएं हुईं लेकिन जन्म लेते ही इनकी मृत्यु हो गंईं थी. इसके बाद जब चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ तो इनकी कुंडली देखकर ज्योतिष ने भविष्यवाणी की थी कि ये बालक एक महापुरुष बनेगा, कृष्ण भक्ति में इसकी रुचि होगी. चैतन्य प्रभु ने ही वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी. मानव जाति को एक सूत्र मे पिरोने के लिए चैतन्य महाप्रभु ने हरिनाम संकीर्तन आंदोलन की भी शुरुआत की थी. हर तरफ हरिनाम का प्रचार किया.

24 साल में त्यागा परिवार

चैतन्य महाप्रभु किशोर अवस्था में आए तो उन्होंने श्रीकृष्ण को ही अपना सबकुछ मान लिया और 24 साल की उम्र में परिवार को छोड़कर सन्यासी बन गए. उन्होंने भगवान कृष्ण के संदेश का प्रचार किया. हरे कृष्ण, हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण हरे हरे का नाम लेते हुए चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण प्रेम में मग्न होकर लीलाएं और नृत्य करते थे. श्रीकृष्ण के प्रति चैतन्य महाप्रभु की भक्ति, प्रेम, भाव देखकर उनके अनेक शिष्य बन गए.

वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की नींव चैतन्य महाप्रभु ने ही रखी थी. इनकी दो पत्नियां थी, पहली पत्नी की सर्प दंश के कारण मृत्यु होने पर इन्हें वंश को आगे बढ़ाने के लिए दूसरा विवाह करना पड़ा. चैतन्य महाप्रभु ने अपने जीवन के कुछ अंतिम पल वृंदावन में व्यतीत किया था

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