Ayodhya: You Must Be Hearing The Word Pran Pratistha A Lot, Let Us Know What It Means? – Amar Ujala Hindi News Live

Ayodhya: You must be hearing the word Pran Pratistha a lot, let us know what it means?

Ayodhya Ram Mandir Pran Pratishtha
– फोटो : Amar Ujala

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राम जन्मभूमि परिसर में निर्माणाधीन राममंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को अब कुछ दिन ही शेष हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त का क्षण 84 सेकेंड का है, जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकेंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकेंड तक होगा। नए मंदिर में मूर्ति स्थापना पर प्राण प्रतिष्ठा किया जाना आवश्यक होता है। बिना इसके मूर्ति पत्थर की आकृति मात्र ही रहती है।

किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। इस अनुष्ठान के लिए शुभ मुहूर्त का होना जरूरी है। शुभ मुहूर्त में की गई प्राण प्रतिष्ठा ही फलकारी होती है और कहा जाता है कि देव साक्षात उस मूर्ति में निवास करते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए देवी या देवता की अलौकिक शक्तियों का आह्वान किया जाता है जिससे कि वो मूर्ति में आकर प्रतिष्ठित यानी विराजमान हो जाते हैं। इसके बाद वो मूर्ति जीवंत भगवान के रूप में मंदिर में स्थापित होती है।

ये है प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया

प्राण प्रतिष्ठा के लिए सबसे पहले देवी-देवताओं की प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराया जाता है। इसके पश्चात, मुलायम वस्त्र से मूर्ति को पोछने के बाद देवी-देवता को नए वस्त्र धारण कराए जाते हैं। इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित किया जाता है और चंदन का लेप लगाया जाता है। इसी समय मूर्ति का विशेष शृंगार किया जाता है और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है और अंत में आरती कर लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करने से ईश्वर की पूजा करने से लोगों को भय से मुक्ति मिलती है। व्यक्तिगत जीवन से बाधाओं को दूर करने का मौका मिलता है। प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है।।

इस मंत्र से होती है प्राण प्रतिष्ठा

मानो जूतिर्जुषतामज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरितष्टं यज्ञ गुम समिम दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ।। अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च अस्यै, देवत्य मर्चायै माम् हेति च कश्चन।। ऊं श्रीमन्महागणाधिपतये नम: सुप्रतिष्ठितो भव, प्रसन्नो भव, वरदा भव।

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