Ayodhya Ram Mandir Inauguration Ramlala The Revival Of Indian Culture Will Take Place Only Through Ram Temple – Amar Ujala Hindi News Live

Ayodhya Ram Mandir Inauguration Ramlala The Revival of Indian culture will take place only through Ram Temple

रवि पाराशर का आलेख
– फोटो : Amar Ujala

विस्तार


– रवि पाराशर

अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर के रूप में सनातन संस्कृति के मुकुट में एक और चमकदार अध्याय जुड़ गया है। भगवान राम का मंदिर राष्ट्र निर्माण की राह में मील का पत्थर साबित होगा। आज जब सनातन समाज की युवा पीढ़ी अपसंस्कृति की शिकार हो रही है, तब राम मंदिर उसे सही रास्ते पर लाने का भव्य आध्यात्मिक प्रतीक बनेगा। हिंदू संस्कृति पर प्राचीन काल से ही हमलों के षड्यंत्र रचे जाते रहे हैं, लेकिन अब समय आ गया है, जब हम भव्य राम मंदिर के माध्यम से ऐसे सभी षड्यंत्रों को विफल करने के लिए कमर कस लें।

पहले सनातन समाज अपने सभी तीज-त्यौहार बड़े उत्साह से मनाता था। ग्रामीण जीवन में तो आज भी कुछ उत्साह दिखाई देता है, लेकिन शहरीकरण की मानसिकता अब त्योहारों के प्रति उदासीन होती जा रही है। अब होली, दशहरा, दीपावली और रक्षाबंधन जैसे कुछ त्योहार ही मनाए जाते हैं। सनातन परंपराओं को मानने वाले समाज के लोगों में अपने उत्सवों के प्रति ऊर्जा नए सिरे से जागृत हो, हम अपने पावन पर्वों को फिर से पूरी धार्मिकता के साथ मनाएं, इसके लिए राम मंदिर के माध्यम से चेतना का विकास नए सिरे से करना होगा।

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भी सनातन समाज के लोग बहुत से संस्कारों से विमुख हो रहे हैं। हम अपनी पुरातन परंपराओं की ओर फिर से लौटें, इसके लिए आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति और संस्कारों के प्रति झुकाव नए सिरे से जागृत किया जाए। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के माध्यम से पूरे सनातन समाज को एक सूत्र में फिर से पिरोया जा सकता है।

सनातन परंपरा में हिंदुओं की पूरी आयु को चार आश्रमों में बांटा गया था। 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य आश्रम के दौरान जंगलों में बनाए गए गुरुकुलों में शिक्षा ग्रहण करनी होती थी। ब्रह्मचारी शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही सारे धार्मिक कर्मकांड सीखते थे, उनमें पारंगत होते थे। 25 से 50 वर्ष की आयु तक गृहस्थ आश्रम में वैवाहिक बंधन में बंधकर समाज जीवन को आगे बढ़ाते थे। गुरुकुलों और आश्रमों में सीखे गए ज्ञान और परंपराओं का निर्वाह करते थे।

फिर 50 से 75 वर्ष तक वानप्रस्थ आश्रम का दौर होता था। घर-गृहस्थी का दायित्व पूरा करने के बाद उसका मोह त्याग कर वानप्रस्थी व्यक्ति समाज की भलाई के लिए काम करते थे। इसके बाद 75 वर्ष की आयु में वे युवा पीढ़ी को संस्कार देने वापस जंगलों में बने गुरुकुलों और आश्रमों में चले जाते थे। कुल मिलाकर व्यक्ति आधा जीवन वनों में व्यतीत करता था, इसलिए सनातन परंपरा में जीवनदायी प्रकृति की पूजा का विशेष विधान किया गया है। हम अन्न की पूजा करते हैं, सूर्य, चंद्रमा, ब्रह्मांड को पूजते हैं, हवा और जल का आभार नित्य जताते हैं, वनस्पतियों की वंदना करते हैं, पशु-पक्षियों का समादर करते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी सनातनी संस्कार भूलती जा रही है। राम मंदिर उसे संस्कारवान बनाने का माध्यम बनेगा।

आज सौ वर्ष का जीवन नहीं है, तो इसका मुख्य कारण है पर्यावरण के प्रति हमारा बुरा बर्ताव। सनातन परंपरा पर्यावरण को अत्यधिक महत्व देती है, लेकिन आज हमने पवित्र नदियों का क्या हाल कर दिया है, तालाबों पर अवैध क़ब्जे हो गए हैं, प्रदूषण के कारण हवा जानलेवा हो गई है, जंगल काटे जा रहे हैं। ऐसे में सनातन समाज के पुनर्जागरण की बहुत आवश्यकता है। राम मंदिर इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। अगर हम किसी एक कारण से सनातन समाज की मूल प्रवृत्ति की ओर लौट आएं, तो सारे सनातन कर्तव्यों की ओर लौट पाएंगे। इसके लिए राम मंदिर से बड़ा कारण और कोई नहीं हो सकता।

समाज आज बहुत सी कुरीतियों से घिर गया है। अपनी जड़ों से कट गया है। संस्कृत भाषा को तो हम भूल ही गए हैं, साथ ही हिंदी बोलने में भी हीनता का बोध होता है। आस्थावान भारतीय आज आत्म-विस्मृति की स्थिति तक पहुंच गया है। दुनिया भर को ज्ञान देने वाले पूर्वजों का स्मरण हम नहीं करते। हमारा योग और यौगिक क्रियाएं दुनिया भर ने अपनाई हैं, लेकिन हर भारतीय इससे जुड़ा है, यह दावे के साथ हम नहीं कह सकते।

आज इस बात की बहुत आवश्यकता है कि हम आत्म-विस्मृति के दुष्चक्र से बाहर निकलें। भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने की दिशा में सकारात्मक पहल करें। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी सनातनी परंपराओं से दोबारा बहुत गहराई से जुड़ें। अपने आप को पहचानें। राम मंदिर इसके लिए केंद्र बिंदु सिद्ध हो सकता है। कुल मिलाकर भारतीयों के बहुआयामी अस्तित्वबोध, सनातन परंपराओं, संस्कारों और संस्कृति के उत्थान की दिशा में राम मंदिर सदियों तक प्रभावी भूमिका का निर्वाह करेगा, ऐसा विश्वास सभी को करना चाहिए।

बहुत बार हम भूल जाते हैं कि हमारे भीतर कितनी शक्ति है। ऐसा इसलिए होता है कि हम अपनी ऊर्जा पर बहुत से कारणों से विस्मृति की पर्तें चढ़ा लेते हैं। जैसे हम अगर नित्य स्नान न करें, तो शरीर पर गंदगी की पर्तें जम जाती हैं, उसी तरह अंदर की जागृत ऊर्जा का स्मरण हमें निरंतर करना चाहिए। लेकिन आज हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में राम मंदिर की प्रतिकृति हर सनातनी घर में रखने की आवश्यकता है। हर भारतीय के मन मंदिर में अयोध्या के राम लला राष्ट्र मंदिर की छवि बहुत गहरे तक पूरी संवेदनशीलता के साथ अंकित होनी चाहिए। जिस तरह स्वतंत्रता की लड़ाई में रोटी और कमल सर्वस्व स्वाहा कर देश की स्वाधीनता भावना के जीवंत प्रतीक बन गए थे, उसी तरह राम मंदिर सर्वस्व पाकर सब कुछ राम की आस्था में समर्पित कर देने की भावना का प्रतीक बनेगा, ऐसी शुभकामना की जानी चाहिए।

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