
सरयू की जुबानी… अयोध्या की कहानी
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
मैं आनंदित थी। ताला खुलने से मेरे राम की पूजा-अर्चना का रास्ता साफ जो हो चुका था। ताला खोलने के खिलाफ हाशिम अंसारी की अपील हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दी थी। तभी सुना कि लखनऊ में वकील अब्दुल मन्नान के घर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पदाधिकारियों, चुनिंदा मुस्लिम नेताओं, वकीलों ने ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाकर मस्जिद के लिए लड़ाई का एलान किया है। इसके संयोजक समाजवादी नेता आजम खां तथा बड़े वकील जफरयाब जीलानी बनाए गए हैं। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने ताला खोले जाने के विरोध में काला दिवस की घोषणा की। उस दौरान कई जगह संघर्ष हुए। कमेटी के आह्वान पर 26 जनवरी, 1987 को वोट क्लब पर रैली, एक फरवरी को भारत बंद और 30 मार्च को दिल्ली में फिर रैली और संबंधित परिसर में नमाज पढ़ने के एलान ने गहरी चिंता में डाल दिया था। तभी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की आेर से रामलला के मंदिर के निर्माण के लिए श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन करने की खबर मिली।
संघ परिवार की सक्रियता व समर्थन से कांग्रेस के नेता शायद परेशान हो रहे थे। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। आगे की कहानी प्रदेश में वीरबहादुर सिंह व नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल की है। साल था 1988। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने जन्म स्थान हिंदुओं को सौंपने की मांग को लेकर छह राम जानकी रथयात्राएं निकालीं। पर, सरकार ने रथों को जब्त कर लिया। विहिप व बजरंग दल ने प्रदेश बंद, सभा और संकल्प जैसे आयोजनों से आंदोलन तेज कर दिया। धर्म संसद ने 25 नवंबर को रथों को सरकार के कब्जे से जबरन छुड़ाने की घोषणा की। अयोध्या में चारों तरफ सुरक्षा बल। पता नहीं क्या हुआ कि 23 नवंबर, 1988 की सुबह ये रथ लखनऊ स्थित विहिप मुख्यालय के पास खड़े मिले। कहा जाता है कि सरकार ने ही इन्हें चुपके से खड़ा करा दिया था। कांग्रेस सरकार कभी मुस्लिमों को, तो कभी हिंदुओं को संतुष्ट करने की सियासी चालों में खुद उलझती जा रही थी। 1989 की फरवरी की एक तारीख। प्रयागराज महाकुंभ में तीसरी धर्मसंसद की बैठक से सूचना आई कि मंदिर निर्माण के लिए 9-10 नवंबर को भूमि पूजन और सिंहद्वार का शिलान्यास होगा। गुजरात के प्रसिद्ध मंदिर निर्माण कला विशेषज्ञ सीबी सोमपुरा अयोध्या आए। संतों से विचार-विमर्श कर प्रस्तावित मंदिर का नक्शा बनाते हुए एक स्थान को शिलान्यास के लिए चिह्नित किया गया। राम जन्मभूमि न्यास ने देशभर में शिलापूजन कराकर उन शिलाओं को अयोध्या लाकर मंदिर निर्माण की योजना बनाई।
कांग्रेस सरकार दो कदम आगे चार कदम पीछे
कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश सरकार शायद घबरा गई। उसने उच्च न्यायालय से शिलापूजन पर रोक की गुहार लगाई, पर याचिका खारिज हो गई। सर्वोच्च न्यायालय ने भी याचिका खारिज कर दी। न्यास ने शिलापूजन के जरिये गांव-गांव जनजागरण किया। मुस्लिमों की बढ़़ती नाराजगी सार्वजनिक होने लगी थी। प्रदेश सरकार ने शिलान्यास रोकने के लिए हाईकोर्ट से गुहार लगाई। न्यायालय ने पहले 7 नवंबर 89 को इसे सरकार के पाले में डाल दिया, लेकिन 8 नवंबर को भूमि को विवादित बताते हुए यथास्थिति का आदेश दिया। दिल्ली में कांग्रेस के तत्कालीन प्रवक्ता आनंद शर्मा की संबंधित स्थान पर शिलान्यास न करने देने की घोषणा और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी की सिर पर फावड़ा चलने के बाद ही शिलान्यास होने देने की चेतावनी से तनाव चरम पर था। मौलाना बुखारी ने घोषणा की कि शिलान्यास रोका जाए, तो वह वार्ता के लिए तैयार हैं। इस सबके बीच महंत अवेद्यनाथ लखनऊ बुलाए गए। पर, उन्होंने शिलान्यास रोकने से इन्कार कर दिया। देर रात सरकार ने रुख बदलते हुए संबंधित जगह को अविवादित बताते हुए शिलान्यास की अनुमति दे दी। 9 नवंबर, 1989 को भूमि पूजन और उत्खनन के साथ शिलान्यास प्रक्रिया शुुरू हुई, जो अगले दिन तक चली।