गंगा में बह गई संपत्ति, बीवी के गहने बेचकर शुरू किया कबाड़ का काम, अब 4 कंपनियों का मालिक है ये कबाड़ीवाला

सनन्दन उपाध्याय/बलिया : बचपन में मिट्टी के मकान में गुजर बसर कर रहे परिवार का पूरा आशियाना गंगा नदी के कटान में विलीन हो गया. किसी तरह इंटर तक की पढ़ाई संपन्न हुई अंत में परिवार वालों ने विवाह कर दिया. एक तो परिवार की दयनीय स्थिति ऊपर से पत्नी की जिम्मेदारी मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. अंत में इस शख्स ने पत्नी का गहना बेचकर कबाड़ी का काम शुरू किया और आज कबाड़ी से वह कामयाबी मिली है जो हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है. ये कहानी है बलिया के बहेरी निवासी मशहूर कबाड़ी वाले करीमुल्लाह खान की है.

अलमेराज ट्रेडिंग कंपनी के मालिक करीमुल्लाह खान बताते हैं कि परिवार की स्थिति काफी दयनीय थी. सब कुछ गंगा में विलीन हो गया था. मैं बचपन से ही हल चलाना, बैलगाड़ी, ठेला खींचना और कबाड़ी खरीद कर बेचने का काम शुरू किया. मैंने खूब मेहनत और परिश्रम किया और आज कबाड़ी से मेरे पास सब कुछ है.

कुछ यूं शुरू हुई कारोबारी करीमुल्लाह की कहानी
बलिया जनपद के गायघाट के रहने वाले करीमुल्लाह खान की कहानी बड़ी रोचक और हर किसी के लिए प्रेरणादायक है. बचपन में द्वाबा क्षेत्र में मिट्टी का घर होने के कारण पूरा आशियाना गंगा में विलीन होने के बाद परिस्थिति और खराब हो गई. किसी तरह पिता ने मेहनत मजदूरी कर इंटर पास करा कर 13 जून 1987 को शादी कर दिया.

मेरे लिए तो मानों कि दुख का पहाड़ टूट पड़ा. न पूरी तरह से शिक्षित था न ही कोई रोजगार था. काफी प्रयास किया लेकिन कोई रोजगार नहीं मिला अंत में मैंने शहर के बहेरी में किराए का मकान लेकर अपने सालों के साथ मिलकर कुछ ब्याज पर पैसा और कुछ अपनी औरत के गहने बेचकर पैसा लगाकर पार्टनरशिप के तौर पर कबाड़ी का काम शुरू किया.

दिन भर सड़क पर खींचना था ठेला
करीमुल्लाह खान बताते हैं कि दिन भर मैं ठेला खींच कर कबाड़ खरीदता और बेचता था यह कहने में संकोच नहीं होगा कि इस काम से मुझे हर कामयाबी मिली है. घर में हर ऐसो आराम है लेकिन मैं आज भी यह काम करता हूं और आज चार कंपनी का मालिक बन चुका हूं. मेरे भाई भी मेरे साथ आ गए तो विकास का मार्ग और खुल गया. स्थिति तो इतनी बेहद खराब पहले थी कि मैं एक बार बैंक ऑफ़ बड़ोदरा से हाई स्कूल के सर्टिफिकेट पर 70,000 का लोन लिया था.

कबाड़ से मिली कामयाबी
करीमुल्लाह खान बताते हैं कि जिस बहेड़ी में मैं किराए की मकान पर रहता था. आज वहां मेरी खुद की गाड़ी, बंगला, पैसा, रूपया, नौकर, चाकर और चार कंपनी का मालिक जैसी तमाम बड़ी-बड़ी सफलता मिली है. आज भी मैं अपने कबाड़ी खाने पर जाकर खुद काम करता हूं. मेरा मानना है कि परिश्रम में वह ताकत है कि आदमी हर विकास के ऊंचाई को छू सकता है. इसका जीता जागता उदाहरण खुद मैं हूं इसी कबाड़ी के काम में मेरी उंगली कट गई शरीर में कई जगह आज भी दाग हैं लेकिन इस बड़ी सफलता के पीछे कबाड़ी है इसलिए आज भी यह काम मेरे लिए बड़ा है.

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