सीमा कुमारी
नवभारत लाइफस्टाइल डेस्क: हर साल 12 मार्च को दुनियाभर में ‘विश्व ग्लूकोमा दिवस’ (World Glaucoma Day 2024) मनाया जाता है, ताकि इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक किया जा सके। नेत्र विशेषज्ञ के अनुसार, ग्लूकोमा या काला मोतियाबिंद (Glaucoma) एक ऐसा नेत्र रोग है, जिसके इलाज में लापरवाही बरतने पर सदैव के लिए रोशनी जा सकती है। आंखों की अन्य बीमारियों में खोई हुई रोशनी इलाज से वापस भी लाई जा सकती है, लेकिन काला मोतिया में आंखों की रोशनी का आना मुश्किल होता है।
सामान्य तौर पर 35 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह बीमारी ज्यादा पाई जाती है। अगर शुरू में ही इसकी पहचान हो जाए तो ग्लूकोमा से होने वाले अंधेपन से मरीजों को बचाया जा सकता है।
ऐसे में आइए जानें काला मोतियाबिंद (Glaucoma) क्यों होता है और क्या होते हैं लक्षण
नेत्र विशेषज्ञ की मानें तो, काला मोतिया यानी ग्लूकोमा होने का सबसे बड़ा कारण है आंखों का दबाव बढ़ना। जिस तरह रक्तचाप बढ़ने से शरीर को नुकसान होता है, उसी तरह दबाव बढ़ने से आंखों को भी नुकसान होता है। इसे समय रहते नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। दबाव के कारण आंखों के पीछे की नसें सूखने लगती हैं और उनके कार्य करने की क्षमता खत्म हो जाती है। एक बार इन नसों के नष्ट होने के बाद उसे वापस नहीं लाया जा सकता।
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क्या होते हैं इसके लक्षण
1-दबाव बढ़ने पर आंखों के चारों तरफ और सिर में दर्द महसूस होता है। रोशनी के चारों तरफ इंद्रधनुष दिखने लगता है।
2- धीरे-धीरे देखने में भी परेशानी बढ़ने लगती है। अक्सर मरीज जब डॉक्टर के पास पहुंचता है, तो पता चलता है कि नजर जा चुकी होती है।
3- यदि कभी आंखों में बहुत तेज दर्द महसूस होता है तो उसका मतलब है कि आंखों पर प्रेशर अचानक काफी बढ़ गया है।
आपको बता दें कि, मौजूदा समय में लोग काफी समय स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य तरह के गैजेट्स की स्क्रीन पर बिता देते हैं। हालांकि, यह काला मोतिया होने का सीधे तौर पर कारण नहीं है। अभी तक ऐसा प्रमाण नहीं मिला है कि स्क्रीन के अधिक इस्तेमाल से काला मोतिया बढ़ता है या नहीं। अगर परिवार में किसी को काला मोतिया पहले हो चुका है, तो जोखिम बढ़ जाता है। ऐसे लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए, साथ ही समय-समय पर जांच करा लेनी चाहिए।
मोतियाबिंद (Glaucoma) के घरेलू उपचार
- भोजन में विटामिन और पोषक तत्वों को शामिल करें।
- अक्सर लोग सुबह उठते ही काफी पानी पी लेते हैं, यह नुकसानदेह हो सकता है। इससे आंखों पर अचानक प्रेशर बढ़ जाता है।
- पानी जरूरी पिएं, लेकिन रुक-रुक कर। पर्याप्त व्यायाम और शारीरिक गतिविधियां करें।
- डायबिटीज, हाइपरटेंशन की अवश्य जांच कराते रहें, क्योंकि इन सबका आंखों पर काफी असर पड़ता है।डायबिटीज में काला मोतिया होने की आशंका अपेक्षाकृत अधिक रहती है।
- नेत्र विशेषज्ञ का मानना है कि, 40 वर्ष की उम्र के बाद हर वर्ष कम से कम एक बार आंखों की जांच जरूरी है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने के बजाय ब्रेक लेना आवश्यक है।
- स्मार्टफोन या लैपटॉप पर काम करते समय आस पास पर्याप्त रोशनी रखें, अंधेरे में काम न करें।
- हर आधे घंटे में पांच मिनट का ब्रेक लेकर दूर देखें, आंखों को थोड़ी राहत दें।
- हमारी आंखें नजदीक नहीं, दूर देखने के लिए बनी हैं। लगातार नजदीक में देखते रहने से आंखों पर जोर पड़ता है।
- आंखों को ब्लिंक करते रहें यानी पलकों को झपकाते रहें, अन्यथा आंखों में ड्राइनेस बढ़ती है।
- आंखों में ड्राइनेस बढ़ जाने पर जलन, खुजलाहट महसूस होती है।
- अगर में आंखों में तकलीफ महसूस हो रही है, तो तुरंत नेत्र चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।