संसद की सुरक्षा में 13 दिसंबर को हुई सेंध को लेकर विपक्ष लगातार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहा है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भरोसा दिया है कि अमित शाह हर बात का जवाब देंगे। विपक्ष संसद को गिरवी रखना चाहता है। गिरिराज ने गृहमंत्री के बयान की मांग कर रहे विपक्ष की तुलना टुकड़े-टुकड़े गैंग से भी की। लेकिन सुरक्षा मामलों के जानकार इस मुद्दे को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। सुरक्षा मामलों के जानकार और इंस्टीट्यूट ऑफ कांफ्लिक्ट मैनेजमेंट के अजय साहनी का कहना है कि सरकार तो मामले में अपनी शर्मिंदगी छिपाने के लिए यूएपीए जैसे कानून का दुरुपयोग करने में लगी है।
अजय साहनी कहते हैं कि पुलिस आंतरिक सुरक्षा की तैयारी को लेकर मौजूदा स्थिति चिंतित करने वाली है। सच बात तो यह है कि असल के पुलिसिया मुद्दे पर किसी का ध्यान नहीं है। किसी को दिलचस्पी भी नहीं है। पुलिस तंत्र के मूल मानदंड पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। न ही उससे बढ़ रही चुनौती को ध्यान में रखकर संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। साहनी कहते हैं कि पुलिस और सुरक्षा से जुड़े तंत्र को राजनीतिक हथियार या उपकरण की तरह इस्तेमाल करने से आने वाले समय की चुनौतियां नहीं खत्म होंगी। इससे निपटने के लिए सरकार को कुछ करना होगा। साहनी ने कहा कि मौजूदा समय में पुलिस जैसे तंत्र भी सरकार की जरूरत के हिसाब से (ऑन डि़मांड) काम कर रहे हैं।
अगर सचमुच आतंकी होते तो?
अजय साहनी कहते हैं कि संसद भवन में अगर सचमुच आतंकी घुसे होते या फिर उनके केन में कोई जहरीली गैस होती तो? साहनी का कहना है कि सुरक्षा व्यवस्था में यह चूक फिर कितनी बड़ी कीमत वसूल लेती? सोचिए जरा, तब क्या होता? साहनी कहते हैं कि सरकार और व्यवस्था में लगे लोगों को इस पर विचार करके खुद पर थोड़ी शर्म कर लेनी चाहिए। संसद भवन देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर है। संवेदनशील और विशेष स्थान है। वहां इतनी आसानी से एक सांसद से मिले पास पर धुएं का केन लेकर घुसना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। सच तो यह है कि सरकार अपनी चमक खोने से डर रही है। इसलिए तमाम सवालों को छिपाने का प्रयास हो रहा है।
विपक्ष के नेता दिखा रहे हैं आईना
लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी चुटकी के लहजे में आ गए हैं। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार से वक्तव्य देने की मांग की है। जद(यू) के ललन सिंह कहते हैं कि कदाचित इसमें कोई आरोपी मुसलमान या पास देने वाला कांग्रेस का सांसद होता तब? ललन सिंह का कहना है कि तब यही भाजपा और सत्ता पक्ष छाती पीटकर ढिंढोरा पीटते। टीएमसी के नेता डेरेक ओ ब्रायन समेत 14 नेता इस प्रकरण में सदन से निलंबित किए जा चुके हैं।
नया संसद भवन बना है तो उसमें सुरक्षा संबंधी सावधानी आखिर कौन बरतेगा?
संसद की सुरक्षा व्यवस्था में रहे पूर्व अधिकारी ने कहा कि हमारे कुछ सहयोगी ड्यूटी में लापरवाही के लिए निलंबित किए गए हैं। सीधा संदेश है कि वह इसकी चूक के लिए दोषी हैें पर यह घटना अपने आप में कई सवाल छोड़ रही है। अभी जांच चल रही है, इसलिए अभी इसपर टिप्पणी करना उचित नहीं है। यह सवाल जरूर महत्वपूर्ण है कि क्या संसद के नए भवन में सुरक्षा संबंधी सभी तैयारियां कर ली गई हैं? इसके लिए स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) पर ध्यान दिया गया और पुराने भवन से नए भवन में सत्र के आहूत होने को लेकर कोई ट्रांजिशन गैप तो नहीं रह गया?
इसी सवाल पर अजय साहनी कहते हैं कि नए संसद भवन में संरचनात्मक त्रुटि को लेकर मीडिया रिपोर्ट आ रही है। कुछ सांसद भी सवाल उठा रहे हैं। खासकर दर्शक दीर्घा की ऊंचाई को लेकर। हो सकता है कि यह ट्रांजिशनल गैप से जुड़ा मसला हो? लेकिन संसद जैसे संवेदनशील और विशेष सुरक्षा वाले स्थान पर इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए था। एसओपी के बारे में कहते हैं कि यह तो अस्थाई होनी चाहिए। जैसे हवाई अड्डे पर छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर इसे नया रूप दिया जाता है, वैसे ही संसद भवन में होना चाहिए। हालांकि अजय साहनी कहते हैं कि एक बार संसद की सुरक्षा की कलई खुल गई है तो अब सरकार कुछ दिन सतर्क रहेगी। कई प्रतिबंध लगेंगे, तमाम तैयारियां होगी, उपकरण आएंगे और सुरक्षा पर ध्यान दिया जाएगा। नए स्कैनर, डिटेक्टर भी सुरक्षा कर्मियों को मिल जाएंगे। साहनी ने कहा कि यह हमारी आदत सी हो गई है कि जब कुछ हो जाता है तो कुछ दिन के लिए जागते हैं। इसी तरह जब संसद पर आतंकी हमला हुआ था, तब जागे थे। इसलिए अगले कुछ साल संसद की सुरक्षा फिर चाक चौबंद रहने वाली है।
क्यों कहेंगे इसे यूएपीए का दुरुपयोग?
गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) का दुरुपयोग कैसे है? अजय साहनी कहते हैं कि अभी तक मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से सामने आए तथ्य यही कहते हैं कि संसद भवन की लोकसभा में दर्शक दीर्घा से कूदे सदस्य कोई आतंकवादी नहीं थे। उन्होंने न तो किसी को डराया, न धमकाया और न ही किसी को नुकसान पहुंचाया। वह शहीद भगत सिंह की विचारधारा से प्रभावित लोग थे। उन्होंने संसद जैसी अति संवेदनशील जगह पर कानून का लोकतांत्रिक तरीके से उल्लंघन किया। इसलिए यूएपीए की श्रेणी में रखना मुझे उचित नहीं लगता।
क्या है यूएपीए
देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 में लागू हुआ था। 2004, 2008, 2012 और 2019 में इसमें चार बार संशोधन हुए हैं। 2019 में हुए संशोधन ने इसे और धारदार बनाया है। इस संशोधन में संगठन के अलावा व्यक्ति को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। उसकी संपत्ति भी जब्त की जा सकती है। इसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति या संगठन को, जो देश के खिलाफ या भारत की एकता और अखंडता संप्रभुता को भंग करने का प्रयास करे, उसके विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। इस अधिनियम के तहत अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है।
सदन में कूदने वालों के खिलाफ दर्ज मुकदमा
देश की संसद में सदन के भीतर रंगीन धुआं छोडऩे और कूदने वाले तथा संसद के बाहर नारा लगाने और रंगीन धुआं छोड़ने वाले आरोपियों के रूप में पुलिस ने चार चेहरों की पहचान की है। इन आरोपियों के नाम अनमोल शिंदे, सागर शर्मा, नीलम आजाद और मनोरंजन हैं। इस षडयंत्र में ललित झा शामिल हैं और ललित झा ने अपने सहयोगी महेश के साथ पुलिस के पास आत्म समर्पण कर दिया है। इस संबंध में पुलिस ने आरोपियों पर गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 16(आतंकवादी कृत्यों के लिए दंड का प्रावधान) और धारा 18(गैरकानूनी गतिविधि की साजिश रचने आदि के लिए दंड) का प्रावधान है। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (अपराधिक साजिश), 452 (सरकारी भवन या संपत्ति में गैर कानूनी प्रवेश), 152 (दंगा भड़काने का प्रयास), 186 (लोकसेवक को सार्वजनिक कार्य में बाधा पहुंचाना),353(लोकसेवक को सार्वजनिक कार्य से रोकने के लिए अपराधिक बल का इस्तेमाल करना) के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
घटना को अंजाम देने में किसी बड़े जानकार के शामिल होने का अंदेशा
उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय के एडवोकेट अशोक सिंह का कहना है कि पुलिस और सुरक्षा बलों ने सरकार के दबाव में और खुद को बचाने के लिए यूएपीए अधिनियम के तहत इन्हें आरोपी बनाया। यह तो यूएपीए का दुरुपयोग है। अशोक सिंह कहते हैं कि यह न तो कोई देशद्रोही थे और न ही आतंकवादी थे। इसलिए यूएपीए की धारा 16 और सवाल लगाए जाने का सवाल नहीं उठता। अशोक सिंह कहते हैं कि इन धाराओं को लगाने का मकसद केवल जाते ही आरोपियों को जमानत मिलने से रोकना है। क्योंकि यूएपीए के तहत आरोपियों को स्पेशल कोर्ट में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा। दंगा भी नहीं भड़काया। इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 152 (अधिकतम सजा तीन साल, थाने से जमानत, जुर्माना)को लगाया जाना चौंकाता है। हां, भारतीय दंड संहिता 120-बी, 452 (सात साल की सजा, गैर जमानती), 186 (सजा तीन साल, जमानत का प्रावधान), 353 (दो साल की सजा, लेकिन जमानत नहीं) के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
अशोक सिंह कहते हैं कि संसद की लोकसभा में घुसने और कूदने वाले आरोपी कानूनी पहलुओं पर काफी सोच-समझकर आए थे। उन्होंने गैर कानूनी तरीके से लोकतंत्रिक प्रदर्शन का तरीका अपनाया है। बीएनपी पाठक के अनुसार संसद में इस तरह से घुसने के आरोपियों के पीछे कोई बड़ा हाथ या लोग हो सकते हैं। हालांकि अजय साहनी कहते हैं कि सभी भगत सिंह के अनुयायी हैं। इन्होंने भगत सिंह के तरीके से अपनी बात रखने की कोशिश की है।