Gangs of Wasseypur Writer Varun Grover Struggle Story | IIT BHU – Mumbai | IIT BHU से क्वालीफाई हैं वरुण ग्रोवर: बोले- गैंग्स ऑफ वासेपुर सीरीज के कुल 11 गाने लिखे, लाइफ का सबसे बड़ा धोखा आज भी याद है

2 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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23 फरवरी को फिल्म ऑल इंडिया रैंक रिलीज हो रही है। इस फिल्म के जरिए जाने-माने लिरिक्स राइटर और कॉमेडियन वरुण ग्रोवर डायरेक्टोरियल डेब्यू कर रहे हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में फिल्म की मेकिंग से लेकर पर्सनल लाइफ के बारे में बात की।

वरुण का कहना है कि उन्होंने इस फिल्म की कहानी 2014 में लिखी थी। मगर, उस समय इंडस्ट्री में उन्हें कोई नहीं जानता था। वो उस समय का इंतजार कर रहे थे, जब इंडस्ट्री में उनका नाम हो जाए। प्रोड्यूसर उनके काम को देख पैसा लगाने के लिए तैयार हो जांए। 2012 में उन्होंने हिट फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लिए काम किया। इस फिल्म ने उन्हें अपार सफलता दिलाई। फिर कुछ और बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बाद उन्होंने 2020 में फिल्म की शूटिंग शुरू की, लेकिन तभी कोविड आ गया। 2 साल काम को रोकना पड़ा। उन्होंने 2022 में फिल्म की शूटिंग दोबारा शुरू की।

इस बातचीत में वरुण ने बचपन के दिनों को भी उकेरा और मनोरंजन की दुनिया में मिले धोखे और संघर्ष को भी बताया।

वरुण ने फिल्म दम लगा के हईशा के ये मोह-मोह के धागे जैसे गाने लिखे हैं। उन्होंने फिल्म मसान और वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स की कहानी भी लिखी है।

वरुण ने फिल्म दम लगा के हईशा के ये मोह-मोह के धागे जैसे गाने लिखे हैं। उन्होंने फिल्म मसान और वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स की कहानी भी लिखी है।

दादा जी बोर्ड पेंटिंग का काम करते थे, उन्हीं के जरिए परिवार फिल्मों से जुड़ा
बातचीत की शुरुआत में उन्होंने बताया कि 1947 के देश विभाजन के बाद दादा जी रिफ्यूजी बन कर पूरे परिवार के साथ जगाधरी, हरियाणा में आकर बस गए थे। अधिकतर लोगों की तरह वो भी खाली हाथ आए थे और यहां पर उन्होंने साइन बोर्ड पेंटिंग का काम शुरू किया था। दादा जी यह काम दोनों ताऊ जी के साथ करते थे।

उन्होंने आगे कहा कि 1953 के आस-पास जगाधरी में एक सिनेमाहाॅल खुला। वहां लगने वाली फिल्मों का पोस्टर बनाने का काम दादा जी को मिला। फिर दोनों ताऊ जी पोस्टर बनाने के लिए देव आनंद और मधुबाला जैसे स्टार को देखने सिनेमाहाॅल जाने लगे। साथ में वो वरुण के पिता को भी ले जाने लगे और यहां से पूरे परिवार को फिल्मों का चस्का लगा।

वरुण ने कहा कि ऐसे में जब वो बड़े हुए तो पिता ने उनका परिचय आर्ट्स से करवाया। फिल्में दिखाने के साथ-साथ पिता ने कई तरह की किताबों और म्यूजिक से भी उनकी दोस्ती कराई।

लखनऊ में थे जब एक्टर बनने का फैसला किया
वरुण ने बताया कि लखनऊ वो जगह थी, जहां उन्होंने राइटर बनने का फैसला किया था। जगाधरी से लखनऊ पहुंचने तक के सफर के बारे में उन्होंने कहा कि ताऊ जी लोग तो पेंटिंग में ही रह गए लेकिन उनके पिता को दादा जी ने खूब पढ़ाया। वो आर्मी में इंजीनियर बन गए थे। इसके चलते उनका जगह-जगह ट्रांसफर होता रहता था।

जब पिता हिमाचल में पोस्टेड थे, तब वरुण का जन्म हुआ था। उन्होंने बचपन के शुरुआती कुछ दिन देहरादून में भी बिताए, फिर पूरे परिवार के साथ उनका लखनऊ आना हुआ। इस वक्त को 11 साल के थे। यहां की संस्कृति और तहजीब ने उन्हें राइटर बनने के लिए प्रेरित किया था।

वरुण ने अपनी आने वाली फिल्म के बारे में कहा- वो साल मेरे लिए बहुत खास था, जब मैं IIT की तैयारी कर रहा था। मैंने जो चीजें IIT की तैयारी के दौरान फेस की थीं, वो सब इस फिल्म में डालने की कोशिश की है।

वरुण ने अपनी आने वाली फिल्म के बारे में कहा- वो साल मेरे लिए बहुत खास था, जब मैं IIT की तैयारी कर रहा था। मैंने जो चीजें IIT की तैयारी के दौरान फेस की थीं, वो सब इस फिल्म में डालने की कोशिश की है।

IIT BHU से पासआउट हैं, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ राइटिंग से जुड़े
वरुण ने राइटर बनने का ख्वाब तो देख लिया था, लेकिन उन्होंने यह बात किसी को नहीं बताई थी। घरवालों का कहना था कि वो पढ़ाई में अच्छे हैं, तो उन्हें इंजीनियर की पढ़ाई कर लेनी चाहिए। परिवार का कहना मान उन्होंने IIT का एग्जाम दिया और BHU से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर ली।

हालांकि, यहां भी उनका मन राइटिंग में ही लग रहता था। तब उन्होंने पता किया कि राइटर कैसे बनते हैं? फिर उन्होंने पढ़ाई के साथ नाटक की कहानियां लिखना शुरू किया, गानों के लिरिक्स भी लिखे। इसके साथ ही वो यूनिवर्सिटी के कल्चरल डिपार्टमेंट से जुड़ गए।

वरुण ने आगे कहा कि पढ़ाई के बाद उन्होंने 1 साल तक पुणे में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की नौकरी की। हालांकि, यहां पर भी वो खुद को राइटिंग से अलग नहीं कर पाए। उन्होंने दिल्ली जाकर NSD में पता किया कि वहां पर पढ़ाई कैसे होती है। तभी उनकी मुलाकात स्टूडेंट शिल्पी दास गुप्ता से हुई, जो संशोधन नाम की एक छोटी फिल्म बना रही थीं। उन्होंने वरुण को फिल्म के हिंदी डायलॉग्स लिखने का मौका दिया। इस काम के बाद वरुण किस्मत आजमाने मायानगरी मुंबई आ गए।

परिवार ने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने के फैसले को सपोर्ट किया
वरुण के इस फैसले को पेरेंट्स ने बहुत सपोर्ट किया। वरुण ने कहा कि पापा को तो हमेशा से फिल्मों में से प्यार था, इसलिए उन्होंने तो सपोर्ट ही किया। मगर, उन्होंने यह सवाल जरूर पूछा था कि अगर इस फील्ड में सफलता नहीं मिली तो वो क्या करेंगे। इस पर वरुण का कहना था कि वो बस एक साल इस फील्ड में देंगे। अगर सब सही रहा तो ठीक है, वरना वापस वो इंजीनियरिंग फील्ड में आ जाएंगे।

63वें नेशनल अवॉर्ड सेरेमनी में वरुण को फिल्म दम लगा के हईशा के गाने के लिए बेस्ट लिरिक्स का अवॉर्ड मिला था।

63वें नेशनल अवॉर्ड सेरेमनी में वरुण को फिल्म दम लगा के हईशा के गाने के लिए बेस्ट लिरिक्स का अवॉर्ड मिला था।

दोस्त को खत लिखने से शुरू हुआ लिखने का सिलसिला
एक दोस्त को चिट्ठी लिखने से वरुण ने राइटिंग की शुरुआत की थी। दरअसल, जब वो देहरादून में थे, तब वहां पर उनके एक बहुत अच्छे दोस्त थे, जो आज एक IPS अधिकारी हैं। दोनों ने 5वीं तक साथ में पढ़ाई की थी, इसके बाद वरुण लखनऊ आ गए थे। उस समय टेलीफोन का इतना ज्यादा क्रेज तो था नहीं, ऐसे में दोनों एक दूसरे को खत लिखते थे। साल में वो एक दूसरे को लगभग 12 खत लिखा करते थे।

वरुण ने बताया कि इस खत में उन्हें सारी जरूरी बातें लिखनी होती थीं, इसी कारण उनकी लिखने की शैली में कसावट आई।

शुरुआत में मुंबई समझ नहीं आया था
मुंबई के संघर्ष के बारे में उन्होंने बताया कि ये शहर उन्हें पहले समझ में नहीं आया था। यहां की भीड़ देख वो परेशान हो गए थे। मगर, उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए, वो यहां डटे रहेंगे। कुछ समय के संघर्ष के बाद उन्हें द ग्रेट इंडियन काॅमेडी शो में लिखने का काम मिल गया। 2 साल इस शो के सहारे मुंबई में गुजर-बसर आराम से हो गया। फिर धीरे-धीरे वरुण को लोग उनके काम से जानने लगे और रास्ता आसान होता गया।

गैंग्स ऑफ वासेपुर के दोनों पार्ट में कुल 11 गाने लिखे थे
2007 में वरुण की मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई थी। उस वक्त अनुराग फिल्म नो स्मोकिंग बना रहे थे। वरुण ने उन्हें अपनी कविताओं की किताब दिखाई थी। साथ ही फिल्म के लिए एक गाना लिखने की इच्छा भी जताई। अनुराग उनके काम से बहुत इंप्रेस हुए, लेकिन उस वक्त फिल्म का म्यूजिक लॉक हो गया था। वादे के पक्के अनुराग ने कहा था कि वो फ्यूचर में वरुण को जरूर काम देंगे।

फिर उन्होंने वरुण को 2011 में फिल्म द गर्ल इन यलो बूट्स में एक गाना लिखने का मौका दिया। इसी वक्त वो फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में भी काम करे रहे थे। वरुण इस कल्ट क्लासिक फिल्म के गाना लिखना चाहते थे। मगर, अनुराग को लगता था कि वो ठेठ देहाती भाषा में गाना लिख नहीं पाएंगे। बाद में वरुण के काम का सैंपल देखने के बाद अनुराग ने उन्हें मौका दिया।

फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर वरुण के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। उन्हें फिल्म के दोनों पार्ट के लिए 11 गाने लिखे थे।

2022 में वरुण को फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।

2022 में वरुण को फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।

जिस शो की स्क्रिप्ट लिखी, उसी से निकाल दिया गया
वरुण ने इस दौरान लाइफ के सबसे बड़े धोखे के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि द ग्रेट इंडियन काॅमेडी शो से पहले उन्हें एक शो में काम मिला था। 3-4 महीने जमकर उन्होंने शो की स्क्रिप्ट पर काम किया था। चैनल की तरफ से भी शो को मंजूरी मिल गई थी। हर दिन शो के मेकर्स और उनमें बातचीत होती थी, लेकिन कभी फीस की बात नहीं हुई थी।

एक दिन मौका देखते वरुण ने खुद ही शो के हेड से कहां कि उन्हें इस काम के बदले फीस कब मिलेगी। हेड ने भी बहुत शालीनता से कहा कि- आप इस शो के लिए कितनी फीस दे सकते हैं। वरुण को लगा कि वो मजाक रहे हैं। हेड ने फिर से यही सवाल दोहराया। फिर उन्होंने वरुण से तंज भरी आवाज में कहा- तुम इस फील्ड में नए हो। तुम्हें कोई जानता भी नहीं। मेरे साथ जुड़ना ही सौभाग्य की बात है। इतना सब तुम्हें मिल ही रहा है और तुम फीस भी मांग रहे हो।

ये सब सुन वरुण शाॅक रह गए। उन्होंने कहा कि वो इसके बदले तो फीस नहीं दे सकते। इस इनकार के बाद उन्हें शो से निकाल दिया गया। वरुण ने बताया कि यह शो बहुत बड़ा था लेकिन उन्होंने नाम लेने से इनकार कर दिया।

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