Mauni Amavasya 2024 know magh amavasya auspicious day importance according to shastrarth

Mauni Amavasya 2024: माघ मास में गंगा तट पर कल्पवास और कुछ विशेष तिथियों के दिन गंगा स्नान आदिकालीन और शास्त्रोक्त परम्परा के अनुसार चली आ रही है. आज भी लोग इस माह की पूर्णिमा, एकादशी, चौथ और अमावस्या को पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर पाप मुक्त होने का विश्वास लेकर जाते हैं. ऐसी होती है आस्था जो धर्म का सबसे बड़ा सम्बल है. चालिए अब शास्त्रीय पक्ष पर दृष्टि डालते हैं-

मौनी अमावस्या पर त्रिवेणी स्नान का महत्व

व्रत चंद्रिका उत्सव अध्याय क्रमांक 35 के अनुसार, माघ मास की अमावस्या मौनी अमावस्या के नाम से प्रसिद्ध है. क्योंकि इस दिन मौन रहकर ही गंगा स्नान करने का विधान है. यदि मौनी अमावस्या के दिन सोमवार का दिन हो तो उसका पुण्य और भी अधिक होता है. माघ मास में त्रिवेणी स्नान का बड़ा ही माहात्म्य माना गया है. अतः बहुत से भक्त नर-नारी यहां माघ के पूरे महीने तक संगम के पास कुटिया बनाकर वास करते हैं जिसे ‘कपिल वास’ करना भी कहते हैं. संभवतः यह शब्द ‘कल्पवास’ का अपभ्रंश है.

माघ मास में कुछ लोग पूरे महीने तक व्रत करते हैं. कुछ लोग केवल फलाहार पर रहते हैं. चटाई पर सोना, तेल न लगाना, किसी प्रकार का श्रृंगार न करना तथा संयम पूर्वक रहना-इन नियमों को पालन करना अति आवश्यक होता है. माघ मास के स्नान का सबसे बड़ा पर्व यही ‘मौनी अमावस्या’ है. इस दिन यूं तो सभी शहरों में गंगा–स्नान की भीड़ होती है परन्तु इस दिन प्रयाग में प्रचण्ड जन-समुदाय इकठ्ठा होते हैं.

सन् 1930 में जो कुम्भ लगा था, उस समय इस मौनी अमावस्या के दिन लगभग 35 लाख लोगों ने संगम पर स्नान किया था. लोगों की विपुल संख्या से उस महान जन-समूह का कुछ अन्दाजा लगाया जा सकता है. उस समय गंगा माई पर जोरदार ध्वनि से आकाश गूंजने लगता है. उस दिन त्रिवेणी के संगम पर जिधर देखिये उधर सिर ही सिर दिखाई पड़ते थे. यदि राई भी फेंक दी जाये तो वह भी नीचे नहीं गिर सकती. गंगा के प्रति लोगों की असीम श्रद्धा तथा अगाध भक्ति को देखकर हृदय गद्गगद् हो जाता है. प्रयाग तो स्वयं तीर्थों का राजा है और उस पर त्रिवेणी का संगम और फिर मौनी अमावस्या का पवित्र पर्व अब क्या ही वर्णन करें. अतः ऐसे अवसर पर त्रिवेणी स्नान का अत्यधिक महत्त्व हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या बात है.

 स्वयं कालिदास ने लिखा है कि इस संगम पर जो स्नान करते हैं उन्हें सद्यः मोक्ष की प्राप्ति होती है.
“समुद्रपल्योजक सन्निपाते, पूतात्मनामश्र कृताभिषेकात् । तत्वा वषोधेन विनापि भूयः, तनुत्यजो नास्ति शरीरबन्धः॥”

समुद्र या जल के आसपास, शुद्ध आत्माओं को भगवान के नाम पर स्नान करना चाहिए. ऐसे स्नान के कारण  तत्वों के दोबारा विषैले नहीं होने पर भी शरीर त्यागने से शरीर का कोई बंधन नहीं रह जाता. इस तरह से हमारे प्राचीन काल से मौनी अमावस्या के दिन प्रयाग आदि  स्थानों में गंगा स्नान करने का विधान हैं.

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[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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