36000 करोड़ का मालिक है ये सुनार, रोल्स रोयस-BMW बांटने का शौकीन, बड़े-बड़े ब्रांड्स की चमक फीकी

Success Story : कहते हैं कड़ी मेहनत से सफलता मिलती है, लेकिन एक चीज और है जिसके बारे में बात करना लोग अक्सर भूल जाते हैं. सच तो यह है कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत तो चाहिए ही, साथ ही सही फैसले लेने की समझ भी होनी चाहिए. ऐसे में देखा जाए तो सफलता का फॉर्मूला कुछ यूं बनेगा- सफलता = कड़ी मेहनत + सही फैसले. इसी फॉर्मूले पर चलकर अलुक्कस वर्गीज़ जॉय (Alukkas Varghese Joy) देश के सबसे अमीर सुनार बन चुके हैं. उनकी नेट वर्थ 100-200 करोड़ नहीं, बल्कि 36,520 करोड़ आंकी गई है.

अलुक्कस वर्गीज़ जॉय 1956 में केरल में पैदा हुए थे. उनके पिता 220 स्केयर फीट की एक ज्वैलरी की दुकान चलाते थे. उनका रिटेल स्टोर त्रिशूर (केरल) के हाई रोड पर था. परिवार टैक्सटाइल के बिजनेस में था, मगर जॉय को सोने की चमक ज्यादा चमकीली दिखी. वे खुद भी खरे सोने की तरह चमकना चाहते थे, इसलिए उन्होंने ज्वैलरी के काम में ही अपना हाथ आजमाया.

अरब देशों में खोले स्टोर
यूएई में तेल के भंडार मिल रहे थे और भारतीय लोग लगातार काम की तलाश में वहां शिफ्ट हो रहे थे. भारत की ट्रेडिशनल ज्वैलरी के डिजाइन्स की उपलब्धता तब तक कम थी, या यूं कहें कि ज्वैलरी के डिजाइन थे ही कम. साथ ही यह क्षेत्र संगठित भी नहीं था. ऐसे में जॉय ने फ्लाइट पकड़ी और यूएई की पहली ही यात्रा में अबू धाबी में पहला स्टोर खोल दिया.

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पहला स्टोर चल पड़ा तो जॉय ने एक और स्टोर 1988 में खोला, जो दुबई के गोल्ड ट्रेड ‘द गोल्ड सूक’ में था. 2001 में जॉय ने अपने ग्राहकों में लकी विनर को रोल्स रॉयस कार गिफ्ट की तो तहलका मच गया. यह खबर जंगल की आग की तरह फैली कि एक ज्वैलर ने करोड़ों की गाड़ी लकी ड्रॉ के जरिए दी है. सबकुछ ठीक चल रहा था, मगर फिर कहानी में आया एक ट्विस्ट.

अलुक्कस पांच भाई थे. 2002 में पांचों ने ज्वैलरी बिजनेस को बांट लिया. जमा जमाया काम 5 हिस्सों में बंट गया. जॉय ने तब एक मुश्किल राह चुनी. उन्होंने केरल के कोट्टयम में 5800 स्केयर फीट का हेडक्वार्टर स्टोर खोला. उसके बाद कोयंबटूर (तमिलनाडु) में एक दूसरा स्टोर खुला. जॉय अपने नए काम को नया नाम भी देना चाहते थे. 2005 में जॉयालुक्कस (Joyalukkas) की शुरुआत हुई. कंपनी के इस नाम में उनका खुद का नाम भी जुड़ा हुआ था.

गोल्ड बिजनेस में ला दी क्रांति
जॉय को बिजनेस की समझ तो थी ही. ऐसे में उन्होंने जो-जो काम किया, वह अद्भुत रहा. माना जा सकता है कि उन्होंने सोने के बिजनेस को एक स्तर तक पहुंचा दिया. जॉयालुक्कस ने कैरेटमीटर लॉन्च किया, जिसमें ग्राहक खुद देख सकते थे कि उनके गहने कितने कैरेट गोल्ड के बने हैं. उन्होंने सोने की कीमत को फिक्स किया. धीरे-धीरे उन्होंने तमिलनाडु से लेकर दिल्ली और लंदन तक 6 और स्टोर खोल दिए. वे राज्य से नेशनल पहुंचे और फिर इंटरनेशनल हो गए.

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जॉयालुक्कस ही भारत की पहली ज्वैलरी कंपनी थी, जिसे ISO 9001 और 14001 सर्टीफिकेशन मिला. 16 मार्च 2008 को जॉयालुक्कस ने चेन्नई में मौजूद देश के सबसे बड़े ज्वैलरी मॉल (प्रशांत रियल गोल्ड टॉवर) में 70,000 स्केयर फीट का स्टोर खोला. यह कंपनी का अब तक का सबसे बड़ा स्टोर था. यह दुनिया का भी सबसे बड़ा गोल्ड का शोरूम था. कंपनी ने 4000 करोड़ का रेवेन्यू पार करते हुए बिलियन-डॉलर कंपनियों की लिस्ट में अपना नाम लिखवाया.

ग्राहकों में बांटीं 10 BMW कारें
जॉय ने कदम-कदम पर सही फैसले लिए. जो भी लोकेशन चुनी, वहां बिजनेस बना. स्टाफ को रखा और ट्रेनिंग दी. क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया. 2009 में जॉय ने एक बार फिर बड़ा धमाका किया. उन्होंने लकी ड्रॉ निकाला और अपने ग्राहकों में 10 BMW लग्जरी कारें बांटीं. यह फिर से अखबारों की सुर्खियां बनी और चारों तरफ जॉयालुक्कस की चर्चा हो रही थी.

जॉयालुक्कस ने छोटे स्टोर नहीं खोले, बल्कि छोटी फ्रेंचाइजी दीं. इन्हीं फ्रेंचाइजी के सहारे उनका कद इतना बढ़ गया कि उन्होने कल्याण ज्वैलर्स (Kalyan Jewellers) और सेनको (Senco) जैसे बड़े ब्रांड्स को पीछे छोड़ दिया. जॉयालुक्कस का रिटर्न ऑन इक्विटी (RoE) 31.3 प्रतिशत था. 2021 तक, कंपनी का रेवेन्यू 8066 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और इस समय प्रॉफिट 472 करोड़ रुपये का था.

आज, जॉयालुक्कस का रेवेन्यू 14,513.42 करोड़ का है और इसका नेट प्रॉफिट 899 करोड़ रुपये है. देशभर में 160 से अधिक स्टोर हैं. 11 देशों में ब्रांड की उपस्थिति है. धीरे-धीरे करके कंपनी और भी बिजनेस में हाथ डाल रही है, जैसे कि शॉपिंग रिटेल, सिल्क लेबल और मनी एक्सचेंज. जॉय अलुक्कस की नेट वर्थ 36,520 करोड़ रुपये है और यह भारत का सबसे अमीर ज्वैलर हैं. फोर्ब्स की 50 भारतीय अरबपतियों की सूची में जॉय को जगह मिली.

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