10वीं में पढ़ाई के दौरान हो गई शादी, पति ने दिया साथ, तो लगा दी फैक्ट्री, अब महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर

गौरव सिंह/भोजपुर: लहठी उद्योग में पहले दरभंगा और मुजफ्फरपुर की बिहार में अलग पहचान थी. उसी राह पर भोजपुर के कोईलवर प्रखंड स्थित मिश्रवलिया गांव में लहठी का निर्माण घरेलू उद्योग के रूप ले रहा है. अच्छी गुणवत्ता के कारण मिश्रवलिया की लहठी हर सुहागिन की कलाई की पहचान बन गई है. यहां की लहठी नई नवेली दुल्हनों को खूब भा रही है. मिश्रवलिया गांव को लहठी निर्माण में पहचान दिलाने का श्रेय यहां की गुड्डी मिश्रा को जाता है. उन्होंने ही इस व्यवसाय को शुरू कर एक मिसाल पेश करने का काम किया. महिला होते हुए भी समाज के साथ कदम ताल कर लहठी निर्माण का व्यवसाय कर रही है. गुड्डी मिश्रा को उनके पति मंजय मिश्रा भी देते हैं. ये अलग-अलग बाजारों में मार्केटिंग का कार्य देखते हैं. लहठी निर्माण के जरिए गांव की 15 से 20 महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.

गुड्डी मिश्रा को देख यहां की चार-पांच महिलाओं ने भी इसे स्वरोजगार के रूप में अपनाया है. गुड्डी बताती हैं कि छह साल पहले नाबार्ड से प्रशिक्षण लेने के बाद लहठी बनाने का कार्य शुरू किया था. इसके लिए गांव में ही एक छोटी सी फैक्ट्री लगाकर लहठी बनाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में व्यवसाय को झटका लगा, लेकिन अब सब फिर से सामान्य हो गया है. उन्होंने बताया कि लग्न में मांग बढ़ जाती है. इसके अलावा तीज और अन्य त्योहार के दिनों में लहठी की मांग तेज होती है. शादी के दौरान युवतियां अपनी पसंद के अनुसार ऑर्डर करती है और उन्हें लहठी तैयार कर 20 दिनों में उपलब्ध करा दिया जाता है. जयमाला सेट व दुल्हन सेट लहठी 2500 से 8 हजार में बिकती है. डिमांड के अनुसार लाल, कथई, पीला और हरा सहित अन्य रंग-बिरंगी लहठी भी ऑर्डर आने पर बनाते हैं.

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10वीं की पढ़ाई के बाद हो गई थी शादी
गुड्डी मिश्रा ने लोकल 18 को बताया कि उनकी शादी बेहद ही कम उम्र में हो गई थी. उस समय हमने 10वीं पास की थी. लेकिन, शादी के बाद खुद का रोजगार कर परिवार को आर्थिक सहयोग करने की इच्छा शुरू से थी. शादी के बाद पति मंजय मिश्रा ने भरपूर साथ दिया उनके वजह से पढ़ाई दोबारा शरू हुई. फिलहाल स्नातक कर रहे हैं. रोजगार शुरू करने में भी पति ने साथ दिया और कोईलवर में मौजूद आरसेटी में कई प्रशिक्षण दिलवाया. उसके बाद छोटे स्तर से अकेले लहठी बनाना शुरू किया. धीरे-धीरे इसकी डिमांड आस-पास की महिलाओं में बढ़ने लगी. अब गांव की 15 से 20 महिलाएं जुड़ी हुई है. उनको लहठी की सामग्री दे देते हैं और वो घर से बनाकर लाती है. सबसे कम एक लहठी की कीमत 150 रुपए और अधिकतम 8 हजार है. लहठी कारोबार बेहतर चल रहा है. इससे गांव के दर्जनों परिवार के आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.

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