10वीं में छूटी पढ़ाई, 400 महीना सैलरी में रिपेयर किए रेडियो, कंप्‍यूटर से हुआ ‘लव’ तो देखते ही देखते बन गया अरबपति

हाइलाइट्स

कैलाश ने साल 1991 में 15 हजार रुपये लगाकर अपनी दुकान खोली.
कुछ समय बाद उन्‍होंने कंप्‍यूटर रिपेयर करने शुरू कर दिए.
1995 में उन्‍होंने अपना पहला प्रोडक्‍ट बाजार में उतारा.

नई दिल्‍ली. कुछ करने का जज्‍बा, कड़ी मेहनत करने का दम और भविष्य की संभावनाओं को पहचान लेने वाली नजर जिसके पास हो, उसे दुनिया में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. इसे साबित किया है एंटीवाइरस समेत अन्य कंप्यूटर सॉल्युशंस देने वाली कंपनी क्विक हील के संस्‍थापक कैलाश काटकर (Quick Heal Founder Kailash Katkar) ने. परिवार में दिक्‍कतों की वजह से 10वीं की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले कैलाश की कंपनी क्विक हील टेक्‍नोलॉजीज की वैल्‍यू आज 14 हजार करोड़ रुपये है. कभी कैलकुलेटर और रेडियो की मरम्‍मत करने वाला यह शख्‍स आज दुनियाभर के करोड़ों कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स को वाइरस से बचाता है.

महाराष्‍ट्र के रहीमतपुर गांव में जन्‍में कैलाश काटकर को पारिवारिक कारणों से 10वीं में ही अपनी पढाई छोड़नी पड़ी. स्‍कूल छोड़ने के बाद वे पुणे आ गए. यहां उन्‍होंने एक रेडियो और कैलकुलेटर रिपेयरिंग शॉप पर नौकरी करनी शुरू कर दी. कैलाश को 400 रुपये महीना पगार मिलती थी. वे जल्‍द ही रेडियो रिपेयरिंग में निपुण हो गए. साल 1991 में उन्‍होंने 15 हजार रुपये लगाकर अपनी दुकान खोल ली. घर का खर्च चलाने के साथ ही कैलाश अपने भाई संजय काटकर की पढाई का खर्च भी जैसे-तैसे उठा रहे थे. उनका छोटा भाई कंप्‍यूटर साइंस की पढ़ाई उस वक्‍त कर रहा था.

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काम के साथ पढ़ाई
अपनी दुकान खोलने के बाद वे एक दिन बैंक में गए और पहली बार उन्‍होंने वहां कंप्‍यूटर देखा. वो कंप्‍यूटर से बहुत प्रभावित हुए. उन्‍होंने काम के साथ ही कंप्‍यूटर के शार्ट टर्म कोर्स में दाखिल ले लिया. कुछ समय बाद उन्‍होंने कंप्‍यूटर ले लिया और उस पर काम करने लगे. सॉफ्टवेयर के सा‍थ ही हार्डवेयर की भी उन्‍हें अच्‍छी-खासी नॉलेज हो गई.

ऐसे आया एंटी वायरस का आईडिया
कुछ समय बाद कैलाश ने कंप्‍यूटर रिपेयरिंग का काम भी शुरू कर दिया और साल 1993 में सीएटी नाम से कंप्‍यूटर रिपेयरिंग और सर्विस नाम से अपना प्रतिष्‍ठान शुरू कर दिया. कंप्‍यूटर रिपेयरिंग करते वक्‍त उन्‍होंने देखा की रिपेयरिंग के लिए आने वाले ज्‍यादातर कंप्‍यूटर वायरस के कारण ही खराब होते हैं. इसी से उनके दिमाग की बत्‍ती जली. उन्‍हें पता चल गया कि एंटी वायरस बनाकर अगर बेचा जाए तो आगे खूब पैसा कमाया जा सकता है.

भाई के साथ मिलकर बनाया एंटी वायरस
कैलास ने कंप्‍यूटर साइंस की पढाई कर चुके अपने भाई संजय काटकर को अपनी योजना बताई. दोनों भाईयों ने मिलकर अपनी कंप्‍यूटर रिपेयरिंग शॉप में ही एक एंटी वायरस डेवलप किया. इसे रिपेयरिंग के लिए आए कंप्‍यूटरों पर ट्राई किया. नतीजे अच्‍छे रहे. 1995 में उन्‍होंने अपना पहला प्रोडक्‍ट बाजार में उतारा. इस एंटी वायरस को उन्‍होंने 700 रुपये में बेचा.

खूब चला बिजनेस
पहले एंटी वायरस को बाजार से खूब रिस्‍पॉन्‍स मिलने के बाद दोनों भाईयों ने अपना पूरा फोकस एंटी वायरस पर ही कर दिया. साल 2007 में उन्‍होंने अपनी कंपनी का नाम सीएटी कंप्‍यूटर सर्विसेज लिमिटेड से बदलकर क्विक हील टेक्‍नोलॉजीज कर दिया. आज क्विक हील कई देशों में काम कर रही है. इसके ऑफिस जापान, अमेरिका, अफ्रीका और यूएई में है. साल 2016 में कंपनी शेयर बाजार में सूचीबद्ध हुई.

Tags: Inspiring story, Quick Heal, Success Story, Successful business leaders

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