राधिका कोडवानी/इंदौर: भारत की बेटी फाउंडेशन की सुरभि मनोचा चौधरी की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं. वह ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर जब बेटियों और महिलाओं से मिलीं, तब देखा कि उन्हें काम की जरूरत है. वो पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन कला में माहिर हैं. उसी कला से उन्हें रोजगार देने का विचार सुरभि के मन में आया. लेकिन, इसके लिए पैसे की जरूरत थी. सुरभि एक बाइक राइडर भी थीं. ऐसे में उन्होंने बिजनेस शुरू करने के लिए अपनी हार्ले डेविडसन बाइक को बेच दिया.
इसके बाद सुरभि सस्टेनेबल स्टूडियो इको का संचालन शुरू किया. बताया, अब वह इस दुकान के माध्यम से दो मकसद को पूरा कर रही हैं. पहला प्लास्टिक का इस्तेमाल कम हो, दूसरा हस्तकला की हुनरमंद महिलओं को बढ़ावा मिले. उनकी दुकान में घर की सजावटी चीजें, योगा मैट्स, हेंडबे ताड़ और खजूर के पत्ते, बांस, कंडा, लाख कई तरह की घासों से बनाए आइटम हैं. साथ ही, खादी और ऊन के कपड़े भी हैं. हस्तशिल्प के ये उत्पाद मॉडर्न फैशन, जीवनशैली और मकान के उपयोग में लिए जा सकते हैं.
सोचा था महिलाओं के लिए कुछ करूंगी
बता दें कि कोरोना के वक्त गांव की महिलाओं की मदद करने के लिए भारत की बेटी फाउंडेशन बनाने वाली सुरभि बताती हैं कि महिलाएं कितनी भी टैलेंटेड क्यों न हों, उन्हें सही जगह नहीं मिलती. मैं पहली महिला थी, जिसने इंदौर के यशवंत क्लब से चुनाव लड़ा, तभी तय कर लिया कि महिलाओं के लिए जरूर कुछ करूंगी, लेकिन लॉकडाउन लग गया. चारों तरफ प्रकृति को लेकर जागरूकता आई. मैंने भी सोचा कि क्यों न लोगों को इको फ्रेंडली लाइफस्टाइल जीने के तरीके के बारे में बताया जाए. इसके लिए मैंने अपनी हार्ले डेविडसन बेचकर बिजनेस शुरू किया, जो मैंने खुद की कमाई से खरीदी थी.
सैकड़ों को रोजगार
आज जनजातीय हस्तशिल्प के 400 कलाकारों को जोड़ा है, इसके जरिए सैकड़ों कलाकारों को पहचान और रोजगार दिया जा रहा है. यहां लकड़ी की नक्काशी, जूट से बने बैग और बेल्ट, कपड़ों पर हाथ से रंगाई और कढ़ाई-बुनाई की चीजें हैं.
प्लास्टिक के बिना भी चलती थी दुनिया
सुरभि कहती हैं कि इतनी कोशिशों के बाद भी कहीं न कहीं लोगों को प्लास्टिक से बनी चीजों की जरूरत पड़ती है. जब प्लास्टिक नहीं था, तब भी लोग घास, बैंबू और कपड़े के बैग्स, थैलियां और बहुत सारी चीजों का इस्तेमाल करते थे. इसलिए, आबोहवा भी तरोताजा रहती थी. यही कोशिश फिर से शुरू की है, ताकि हमारे शहर की आबोहवा भी ताजी रहे और लोग सेहतमंद रहें. आज उनकी शॉपर पर अलग-अलग प्रांतों की घास के आइटम मौजूद हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 18, 2024, 16:49 IST