अनुज गौतम / सागर:- बुंदेलखंड के सागर की एक महिला को लिखने का गजब जुनून सवार है. उन्होंने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए यूनिवर्सिटी की नौकरी तक छोड़ दी. इसके बाद वे अब तक 58 किताबें लिख चुकी हैं, जिनमें कई किताबों ने विभिन्न राज्यों के अलावा अमेरिका लंदन कनाडा मिस्र जैसे देश में भी काफी डिमांड रही है. कुछ किताबों के तो 6 से 8 संस्करण तक आ चुके हैं. उनके द्वारा लिखे गए उपन्यास ‘पिछले पन्ने की औरते’ का हिंदी के अलावा मराठी और कन्नड़ में भी प्रकाशन किया गया. वहीं पंजाबी भाषा में भी इस पर काम चल रहा है.
विदेश में यूनिवर्सिटी कर रही रिसर्च
बुंदेली लोक कथाओं की किताब पर मिस्र की कहारा यूनिवर्सिटी में शोध किया जा रहा है. कस्बाई सिमोन किताब पर देश की भी कुछ यूनिवर्सिटी ने रिसर्च की है, जिनकी किताबें भी पब्लिश हो चुकी हैं. वहीं शिखंडी उपन्यास का हिंदी के अलावा कन्नड़ और मराठी भाषा में भी प्रकाशित किया गया है.
बुंदेली को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने वाली डॉक्टर सुश्री शरद सिंह, सागर के मकरोनिया रजाखेड़ी शांति विहार कॉलोनी की रहने वाली हैं. मां विद्यावती देवी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थी और उन्होंने भी बौद्ध धर्म पर किताबें लिखी थी. बडी बहन वर्षा सिंह एमपीईबी में थी और उन्हें भी लिखने का शौक था. जब कहानी और कविताएं अखबारों में आती थी, तब मां और बड़ी बहन का नाम देखकर शरद सिंह के लिए भी लिखने के लिए प्रेरणा मिली. परिवार से सपोर्ट मिला, तो फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1988 में उनका पहला नवगीत संग्रह ‘आंसू बूंद चुय’ किताब के रूप में आया था.
बुंदेलखंड को भी अन्य भाषाओं की तरह महत्व
डॉक्टर शरद सिंह ने लोकल 18 को बताया कि वे अब तक चार उपन्यास, 8 कहानी संग्रह सहित 58 किताबें लिख चुकी हैं. जिस भी विषय पर लिखती हैं, उसमें पहले शोध करती हैं, इसके बाद ही आगे बढ़ती है. जिस तरह कन्नड़, मराठी, भोजपुरी, राजस्थानी, गुजराती और अन्य भाषा बोली अपने-अपने इलाके में प्रचलित हैं. ऐसे ही बुंदेली को भी महत्व मिलना चाहिए, ताकि यहां की संस्कृति, इतिहास और विरासतों को दुनिया जान सके.
बुंदेली साहित्य के लिए मुख्यमंत्री ने किया सम्मान
बुंदेलखंड और बुंदेली को देश-विदेश तक पहुंचने वाली डॉक्टर सुश्री शरद सिंह के लिए इतिहासकार प्रतिपाल सिंह बुंदेला सम्मान से सम्मानित किया गया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रशस्ति पत्र देकर उनका सम्मान किया. छतरपुर जिले के बसारी गांव में 24वां बुंदेली उत्सव का भव्य आयोजन किया गया था, जिसमें बुंदेली को लेकर काम करने वाली साहित्यकार को इस सम्मान से नवाजा गया.
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लेखन के लिए यूनिवर्सिटी की नौकरी छोड़ी
डॉक्टर शरद सिंह ने इतिहास से डबल एम ए किया है. सागर विश्वविद्यालय से खजुराहो मूर्तिकला की सौंदर्य पर पीएचडी की. इन्होंने 3 साल तक इमानुएल स्कूल, 3 साल जैन हाई स्कूल में टीचर के रूप में पढ़ाया. इसके बाद सागर विश्वविद्यालय के ऑडियो 20 शब्द डिपार्टमेंट में भी नौकरी के दौरान उन्हें बंधन-सा महसूस हुआ. वह लेखन काम नहीं कर पा रही थी, जिसकी वजह से उन्होंने इस नौकरी को छोड़ना ही मुनासिब समझा और फिर स्वतंत्र लेखिका के रूप में काम किया. उन्होंने हिंदी बुंदेली और इंग्लिश में किताबें लिखी हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 4, 2024, 13:44 IST