गुजरात का अमरेली जिला अब सिर्फ खेती और हीरा उद्योग के लिए ही नहीं, बल्कि इंसानियत और बराबरी की मिसाल के लिए भी पहचाना जा रहा है. यहां की एक फार्मा कंपनी ने ऐसा कदम उठाया है, जिसने पूरे राज्य में चर्चा छेड़ दी है. इस कंपनी में न सिर्फ आम लोग, बल्कि किन्नर, मूक-बधिर और दिव्यांग लोग भी काम कर रहे हैं.
साल 2022 में अमरेली में एक निजी दवा कंपनी की शुरुआत हुई. इस कंपनी में अब लगभग 500 कर्मचारी काम कर रहे हैं. खास बात यह है कि इनमें से दो ट्रांसजेंडर और पांच मूक-बधिर कर्मचारी भी शामिल हैं. कंपनी के प्रमुख मिलनभाई त्रिवेदी का कहना है कि उन्होंने शुरुआत से ही यह सोच रखी कि किसी भी इंसान के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. चाहे कोई किन्नर हो या दिव्यांग, अगर उसमें काम करने की लगन है तो उसे मौके जरूर मिलेंगे.
विदेशों में भी भेजी जाती हैं दवाएं
इस फार्मा कंपनी में बनी दवाएं सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका जैसे देशों में भी भेजी जाती हैं. कंपनी अमेरिकी नियमों के अनुसार दवाओं का निर्माण करती है. विदेशी मानकों के पालन के साथ-साथ यहां सामाजिक जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई जा रही है.
मिलनभाई ने बताया कि शुरुआत में मूक-बधिर कर्मचारियों के साथ संवाद करने में कठिनाई आई थी, लेकिन इसका भी हल निकाला गया. 15 दिनों के लिए एक शिक्षक को रखा गया, जिसने संकेत भाषा के जरिए संवाद में मदद की. आज ये कर्मचारी पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं और सामान्य लोगों की तरह अपना काम कर रहे हैं.
नशा मुक्त माहौल भी कंपनी की खासियत
इस कंपनी में सिर्फ रोजगार ही नहीं, बल्कि एक अच्छा और स्वच्छ माहौल भी दिया जाता है. नशा करने वालों को नौकरी पर नहीं रखा जाता और कर्मचारियों को पान, मावा, गुटखा और धूम्रपान जैसी आदतों से दूर रहने के लिए लगातार जागरूक किया जाता है. कंपनी चाहती है कि उसका हर कर्मचारी एक बेहतर जिंदगी जिए.
फार्मा कंपनी की पूजाबेन त्रिवेदी कहती हैं कि यहां हर किसी को बराबरी का दर्जा दिया जाता है. “हम इंसानों में फर्क क्यों करें? अगर कुदरत ने किसी को थोड़ी अलग तरह से बनाया है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें समाज से अलग कर दिया जाए,” पूजाबेन कहती हैं. उनका मानना है कि सभी लोग एक परिवार की तरह कंपनी में रहते हैं और यही असली सफलता है.
किन्नर समुदाय की आवाज बनीं दयाबेन
दयाबेन, जो खुद किन्नर समुदाय से आती हैं, इस कंपनी में पिछले चार साल से काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि जब वे नौकरी के लिए गई थीं, तो उनकी पहचान जानकर कई जगहों से उन्हें मना कर दिया गया. लेकिन पूजाबेन त्रिवेदी ने उन्हें न केवल काम दिया, बल्कि सम्मान भी दिया. दयाबेन कहती हैं, “यह पहली जगह है जहां मुझे इंसान समझा गया, न कि मेरी पहचान के आधार पर परखा गया.”
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