नई दिल्ली. कहा जाता है कि बच्चे की पहली टीचर उसकी मां ही होती है. चूंकि मां ही बच्चे के साथ ज्यादातर समय गुजारती है, ऐसे में बच्चों को अच्छी बातें सिखाने और अनुशासन का पाठ पढ़ाने में उसका महत्वपूर्ण योगदान होता है. खेलों के मामले में भी यह बात लागू होती है. देश में कई ऐसे मशहूर प्लेयर हैं जिनकी शुरुआती कोच या तो उनकी मां रही या फिर इनके स्पोर्ट्स करियर को ऊंचाई देने में इनका अहम योगदान रहा.नजर डालते हैं ऐसे प्लेयर्स पर, जिनको प्लेयर के तौर पर स्थापित करने में इनकी मां की खास भूमिका रही.
चेस दिग्गज आनंद की पहली कोच मां सुशीला ही थीं
भारत के पहले ग्रैंडमास्टर और पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन विश्वनाथन आनंद (Viswanathan Anand) का देश में चेस कल्चर विकसित करने में अहम योगदान रहा है. आनंद को चेस में सफलता हासिल करते देखकर देश का युवा वर्ग भी इस खेल के प्रति आकर्षित हुआ और भारत आज शतरंज का पावरहाउस बन चुका है. आनंद पहली बार वर्ष 2000 में वर्ल्ड चैंपियन बने थे. बाद में 2007, 2008, 2010 और 2012 में भी उन्होंने यह खिताब अपने नाम किया. शतरंज के दिग्गज खिलाड़ी आनंद को प्रतिष्ठित राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका है.
आनंद की मां सुशीला (Sushila) भी चेस की बेहतरीन प्लेयर थीं और वे ही बेटे की शुरुआती कोच रहीं. सुशीला ने 6 साल की उम्र में ही बेटे को शतरंज सिखा दी थी. उन्होंने बेटे को चेस में करियर बनाने के लिए भी प्रेरित किया. मां से मिले इस सहयोग के बिना आनंद शायद शतरंज के खेल में इतनी ऊंचाई नहीं छू पाते. 55 वर्ष के आनंद की मां का 79 वर्ष की उम्र में 2015 में निधन हुआ है.
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सुनील गावस्कर को बैटिंग प्रैक्टिस कराती थीं मां मीनल
छोटे कद के ‘बड़े’ खिलाड़ी सुनील गावस्कर (Sunil Gavaskar) ने भारतीय क्रिकेट को दुनियाभर में पहचान दी है. दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रारंभिक बल्लेबाज के रूप में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है. टेस्ट क्रिकेट में बड़ी पारियां खेलने के लिए मशहूर गावस्कर ने ही सबसे पहले डॉन ब्रेडमैन के 29 शतकों का रिकॉर्ड को तोड़ा था. टेस्ट क्रिकेट में 10 हजार रन के आंकड़े को सबसे पहले ‘सनी’ ने ही छुआ था.
सुनील गावस्कर ने मां मीनल के मार्गदर्शन में ही क्रिकेट की शुरुआत की थी. सुनील जब छोटे थे तो मां मीनल कई घंटों तक उनको बैटिंग की प्रैक्टिस कराती थीं. एक बार सुनील के शॉट से मां को नाक पर चोट लग गई थी और खून बहने लगा लेकिन खून पोंछकर भी मां ने बॉलिंग करना जारी रखा था. मां की ओर से कराए गए इस कड़े अभ्यास के कारण ही सुनील के शॉट्स में ‘परफेक्शन’ आया. मीनल क्रिकेट से जुड़े परिवार से संबंध रखती थीं और उनके भाई माधव मंत्री भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट खेल चुके हैं. वर्ष 2022 में ही मीनल का निधन हुआ है.
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अश्विन को क्रिकेटर बनाने में मां चित्रा की है भमिका
ऑफ स्पिनर आर.अश्विन (Ravichandran Ashwin) को क्रिकेटर बनाने में भी उनकी मां चित्रा की प्रमुख भूमिका रही है. अश्विन पहले तेज गेंदबाजी करते थे लेकिन चित्रा ने बेटे को स्पिन गेंदबाजी में हाथ आजमाने की सलाह दी थी.अश्विन के पिता ने एक इंटरव्यू में बताया था कि अश्विन लंबे रनअप से तेज गेंदबाजी करते थे जो उनकी मां को अच्छा नहीं लग रहा था. स्कूल के दिनों में क्रिकेटर अश्विन को उन्होंने खूब प्रोत्साहित किया. मां ने अश्विन को बॉलिंग के साथ-साथ बैटिंग को भी पूरी गंभीरता से लेने की नसीहत दी थी.अश्विन इस समय अनिल कुंबले के बाद टेस्ट क्रिकेट में भारत की ओर से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले बॉलर हैं.
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हर टूर्नामेंट में प्रज्ञानानंद के साथ जाती हैं मां नागलक्ष्मी
चेस में भारत के नए सुपर स्टार 18 वर्षीय रमेशबाबू प्रज्ञानानंद (R Praggnanandhaa) की कहानी भी विश्वनाथन आनंद जैसी ही है. हालांकि प्रज्ञानानंद की मां नागलक्ष्मी (Nagalaxmi) चेस की ‘ए बी सी’ भी नहीं जानतीं लेकिन बचपन से ही अपने होनहार बेटे को विभिन्न टूर्नामेंट्स में ले जाने और वापस लाने की जिम्मेदारी निभाती रही हैं. प्रज्ञानानंद महज 10 साल की उम्र में इंटरनेशनल मास्टर और 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बनने की उपलब्धि हासिल कर चुके हैं. शतरंज के कई बड़े खिताब जीतने के साथ वे कई चेस वर्ल्ड चैंपियन को भी मात दे चुके हैं. पिछले वर्ष ही वे शतरंज वर्ल्डकप के फाइनल में पहुंचने वाले दुनिया के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने थे. प्रज्ञानानंद ने हाल ही में टाटा स्टील मास्टर्स चेस में वर्ल्ड चैंपियन डिंग लीरेन को मात दी है और लाइव रेटिंग में आनंद को पछाड़कर भारत के नंबर वन चेस प्लेयर बने हैं.
प्रज्ञानानंद के कोच एस थियागराजन बताते हैं कि नागलक्ष्मी टूर्नामेंट में आती थीं और एक कोने में बैठ जाती थीं. अपने बेटे की बाजी खत्म होने तक सिर्फ प्रार्थना करती थीं. प्रज्ञानानंद की बहन भी चेस प्लेयर है. भाई-बहन जब भी चेस टूर्नामेंट के लिए बाहर जाते तो नागलक्ष्मी उनके साथ जाती है ताकि बच्चों को घर का खाना मिल सके.
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पीवी सिंधु के करियर की खातिर मां विजया ने नौकरी छोड़ दी
बैडमिंटन की पूर्व नंबर वन और ओलंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट पीवी सिंधु (PV Sindhu) के पिता और माता दोनों स्पोर्ट्स पर्सन हैं. पिता पीवी रमन्ना (PV Ramana) और मां विजया, दोनों बॉलीबॉल खिलाड़ी रहे हैं. रमन्ना और विजया (Vijaya) का बेटी के करियर को स्थापित करने में अहम योगदान है. जहां पिता रमन्ना यह सुनिश्चित करते हैं कि बेटी को ज्यादा से ज्यादा टूर्नामेंट खेलने के लिए मिलें वही मां की जिम्मेदारी यह होती है कि सिंधु मानसिक और शारीरिक रूप से आदर्श स्थिति में रहे. सिंधु के बैडमिंटन करियर की खातिर विजया ने रेलवे की नौकरी से स्वैच्छिक रिटायरमेंट भी ले लिया.
सिंधु के मुश्किल वक्त में विजया उनके साथ मजबूती से खड़ी रही हैं. उनके समर्पण भाव को सैल्यूट करते हुए सिंधु ने वर्ष 2019 का अपना विश्व खिताब मां को समर्पित कर दिया था. भावुक सिंधु ने कहा था, ‘मेरी मां की भूमिका को आंका नहीं जा सकता अगर वह नहीं होती तो मेरा करियर इतनी ऊंचाई पर नहीं होता. ‘
मां उषा ने वेंकटेश को क्रिकेट खेलने के लिए किया प्रोत्साहित
मध्य प्रदेश के वेंकटेश अय्यर (Venkatesh Iyer) बाएं हाथ के बेहतरीन बल्लेबाज और दाएं हाथ के मध्यम गति के बॉलर हैं और भारत के लिए दो टेस्ट और 9 टी20I खेल चुके हैं. आईपीएल में कोलकाता नाइटराइडर्स के वे स्टार प्लेयर हैं और कई जोरदार पारियां खेल चुके हैं. 29 साल के वेंकटेश ऊंची स्ट्राइक रेट से बैटिंग करते हैं.पढ़ाई-लिखाई में बेहतरीन वेंकटेश ने मां उषा के कहने पर ही क्रिकेट शुरू किया था.
Espncricinfo से बातचीत में वेंकटेश ने बताया था, ‘मेरा रुझान पढ़ाई-लिखाई की ओर से था.आम साउथ इंडियन परिवारों में जहां पेरेंट्स बच्चों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहते हैं, इससे उलट मेरी मां ने मुझे क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया. ईमानदारी से कहूं तो मां के कहने पर मैंने क्रिकेट शुरू की क्योंकि उन्हें लगता था कि घर में रहकर लगभग पूरे समय पढ़ाई करने रहने के बजाय मुझे आउटडोर में जाकर खेलना भी चाहिए. ‘ क्रिकेट में करियर बनाने के लिए वेंकटेश ने CA की पढ़ाई भी छोड़ दी.वेंकटेश पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट में भी अच्छे थे, मां की प्रेरणा अपनी मेहनत के बल पर ही उन्होंने क्रिकेट में ऊंचाई हासिल की है.
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FIRST PUBLISHED : January 20, 2024, 06:39 IST