बिजली के प्लग में क्यों होती है तीसरी पिन, क्या काम इसका, किसने किया आविष्कार

हाइलाइट्स

तीन पिनों दो का आकार तो बराबर और एक जैसा होता है लेकिन तीसरी पिन बड़ी और मोटी होती है
120 पहले अमेरिका में हुआ था इसका आविष्कार, फिर धीरे धीरे पूरी दुनिया ने इसे अपना लिया
ये टू पिन की तुलना में ज्यादा टिकाऊ और ज्यादा सुरक्षित प्लग और सॉकेट था

हमारे आपके घरों में जितने भी बिजली के अप्लाएंसेस होते हैं, वो सभी ज्यादातर थ्री पिन प्लग वाले होते हैं, जो थ्रीपिन शॉकेट में लगाने पर काम करना शुरू कर देता है लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि बिजली का प्रवाह जब प्लस और माइनस ऑवेश से होता है तो तीसरी पिन का आखिर क्या रोल होता है. अगर इसे खोलकर देखिए तो पता लगेगा कि इसके तीन पिनों में तीन तार जुडे़ होते हैं.

इन तीन पिनों दो का आकार तो बराबर और एक जैसा होता है लेकिन तीसरी पिन इन दो पिनों की तुलना में कुछ मोटी होती है. इस पिन को सामान्य तौर पर एक हरे रंग के तार से जोड़ दिया जाता है. इस तार को अर्थ का तार कहते हैं. क्या आप जानते हैं कि प्लग में इस तीसरी पिन का काम क्या होता है.

तीसरी पिन और हरे रंग के तार में सामान्य स्थितियों में कोई भी बिजली की धारा नहीं बहती है. इस तार का एक सिरा जिस बिजली के उपकरण का आप इस्तेमाल कर रहे होते हैं , उससे जुड़ा होता है. और हर रंग के तार वाला पिन प्लग के जरिए जिस प्वाइंट से जुड़ता है वो उसे अर्थिंग या पृथ्वी से जोड़ देता है. इसे इलैक्ट्रिक ग्राउंडिंग भी कहते हैं.

तब बिजली का झटका लगता है
कभी कभी ऐसा होता है कि विद्युत उपकरण में कोई दोष हो जाता है तब इस उपकरण में बिजली की धारा प्रवाहित होने लगती है. ऐसी स्थिति में अगर कोई उस उपकरण को छू ले तो उसे बिजली का झटका लगेगा. बिजली के झटके की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि मनुष्य के शरीर में से कितनी बिजली की धारा किस मात्रा में प्रवाहित हो रही है. अगर उसके हाथ भीगे हों तो शरीर से अधिक बिजली की धारा प्रवाहित होगी.

इसका कारण है कि गीली त्वचा सूखी त्वचा की तुलना में बिजली की सुचालक होती है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति को भयानक झटका लगेगा. इससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है.

तीसरी पिन के जरिए क्या काम
तीसरी पिन का प्रयोग या अर्थिंग एक ऐसा तरीका है जो दोषी उपकरणों से लगने वाले बिजली के झटकों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है. मेंस से चलने वाली सभी उपकरणों के लिए ये बहुत जरूरी है कि उनका धरती के साथ उचित तौर पर संबंध स्थापित करा दिया जाए, प्लग की तीसरी पिन यही काम करती है.

तो बचे रहेंगे आप
यदि बिजली की तीसरी पिन के जरिए अर्थिंग सही तरीके से हो रही हो तो बिजली उपकरण के खराब होने पर अगर उसकी बॉडी में करंट प्रवाहित भी होने लगता है तो बिजली का झटका लगेगा भी तो ज्यादा खतरनाक नहीं होगा या झटका लगेगा ही नहीं. इस तरह बिजली प्लग की तीसरी पिन आपको सबसे ज्यादा सुरक्षा देने वाली होती है.

किसने किया था थ्री पिन प्लग और सॉकेट का आविष्कार
हार्वे हबबेल ने 1904 में थ्री पिन प्लग और सॉकेट का आविष्कार किया. फिर उन्होंने इसका पैटेंट करा लिया. 1915 तक इसे सभी प्लग और सॉकेट निर्माताओं ने अपना लिया. ये इससे पहले चल रहे बिजली प्लग्स के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित थे. BIS के सख़्त नियमों के मुताबिक, सभी भारी इलेक्ट्रिक आइटम्स में, जो 5 एम्पीयर से अधिक बिजली की खपत करते हैं, उनमें तीन-पिन प्लग होना जरूरी है.

बिजली के प्लग और सॉकेट का इतिहास 1880 के दशक में शुरू हुआ था. तभी बिजली को घरों में देने की शुरुआत हुई थी. इस बिजली को सप्लाई करने के बदले उसका मूल्य वसूला जाता था. एक ब्रिटिश आविष्कारक थॉमस टेलर स्मिथ ने 1882 में एक प्लग सॉकेट का पेटेंट कराया, जो शुरुआती और ज्यादा बेहतर नहीं था. उसमें गोल धातु के सॉकेट से जुड़े दो पिन थे.

Tags: Electric, Electricity

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