बनना चाहते थे IAS…बेचनी पड़ी साइकिल से किताबें, रंग लाई मेहनत और लगा दी खुद की फैक्ट्री

आलोक कुमार/गोपालगंज: जिले के हथुआ प्रखंड स्थित नया बाजार गांव निवासी पुष्पेंद्र कुमार आज सफल उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं. पुष्पेंद्र ने ना सिर्फ अपनी कड़ी मेहनत और लगन की बदौलत खुद का नोटबुक फैक्ट्री लगाया है बल्कि 10 लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं.

पुष्पेंद्र की फैक्ट्री में तैयार नोटबुक बिहार समेत यूपी के विभिन्न जिलों में सप्लाई होती है. इससे सालाना करीब दस लाख की आमदनी पुष्पेंद्र को हो जा रही है. साइकिल पर नोटबुक बांधकर बेचने से की शुरुआत करने वाले पुष्पेंद्र बताते हैं कि पहले उनके परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी. पिता ट्रांसपोर्ट में टिकट काटते थे और मानदेय भी अच्छी नहीं थी.

इसी बीच पिता अस्वस्थ हो गए. दो बहन तीन भाई और मां-बाप की पूरी जिम्मेदारी कंधों पर आ गई. पुष्पेंद्र ने बताया कि कि आईएसएस बनकर समाज की सेवा करना चाहते थे, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था और परिवारिक स्थिति की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए.

शुरुआत में साइकिल पर बेचना पड़ा था नोटबुक
पुष्पेंद्र ने बताया कि शुरुआत में नोटबुक को साइकिल में बांधकर दुकानों में सप्लाई करते थे. जिससे धीरे-धीरे कुछ आमदनी आना शुरू हो गया. इस बीच एक मित्र ने खुद की फैक्ट्री लगाने की सलाह दी. लेकिन पैसे की तंगी आड़े आ रहा था, जो चिंता का विषय बन गया था. हालांकि हार नहीं मानी और दो लाख कर्ज लेकर व्यवसाय शुरू किया. पहले छोटा मशीन लगाया और फिर देखते हीं देखते नोटबुक का यह व्यवसाय चल निकला. इसमें पिता और परिवार का का भी पूरा सहयोग मिला.

पुष्पेंद्र ने बताया कि अपनी कमाई से भाई व दो बहनों के अलावे खुद की शादी धूमधाम से की. भाई को पढ़ा-लिखाकर आवास सहायक की नौकरी दिलाई. खुद का घर बनाया और आज चैन से जिंदगी जी रहे हैं. पुष्पेंद्र ने बताया कि 2012 से ही या व्यवसाय कर रहे हैं. सिर्फ दो मशीन से शुरू किया था. व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए लोन भी लेना पड़ा. जब व्यवसाय बाद तो लोगों की जरूरत पड़ने लगी. अब 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

कोरोना काल में परेशानियों का करना पड़ा था सामना
पुष्पेंद्र ने बताया की फैक्ट्री में निर्मित नोटबुक बिहार के साथ उत्तर प्रदेश और झारखंड के विभिन्न शहरों तक पहुंच रहा है. यह व्यवसाय अभी ठीक-ठाक चल रहा है. कोरोना काल में थोड़ी परेशानी हुई थी, क्योंकि सारे स्कूल बंद हो गए थे और मार्केट बंद हो गया था. जिसके चलते नोटबुक का सेल नहीं हो पा रहा था. कारीगर को रखकर खाने-पीने का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया था. इसके अलावा अन्य प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. उन्होंने बताया कि यहां मार्च और अप्रैल महीने में नोटबुक के लिए काफी भीड़ लगती है. रोजाना 5 से लेकर 10 हजार तक नोटबुक का प्रोडक्शन होता है.

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