आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए, साधन सभी जुट जाएंगे संकल्प का धन चाहिए. इन लाइनों को चरितार्थ कर दिखाया बिहार के एक शिक्षक ने. गांव के प्राइवेट स्कूल में 13 साल तक 4 हजार रुपए पगार पर टीचर की नौकरी करने वाले शिक्षक ने अपना काम छोड़कर बिजनेस शुरू किया. यहीं से उनकी जिंदगी बदल गई. ये शिक्षक हैं पश्चिम चंपारण के शत्रुघ्न पटवारी. बगहा प्रखंड के बहुअरवा गांव के रहने वाले शत्रुघ्न पटवारी शिक्षक से फैक्ट्री मालिक कैसे बने, आइए बताते हैं. शत्रुघ्न गरीब परिवार से आते हैं. घर में उनकी पत्नी, बच्चे और कुछ अन्य सदस्य हैं. ऐसे में 4 हजार रुपए में परिवार चलाना बहुत हो रहा मुश्किल था. परिवार की दुर्दशा देख एक दिन शत्रुघ्न से उसकी पत्नी रामावती देवी ने कोई दूसरा काम करने को कहा. यहीं से शुरू हुई शत्रुघ्न की फैक्ट्री मालिक बनने का सफर.
मवेशी और जमीन बेच लगा लिया पेपर प्लेट का प्लांट
शत्रुघ्न कहते हैं कि 2018 में उन्होंने जमीन और मवेशी बेच कर रुपए की व्यवस्था की. इस पैसे से उन्होंने पेपर प्लेट बनाने का मशीन बैठा लिया. सबकुछ ठीक से चलने लगा. हालांकि, एक दिन जब कच्चे माल की कमी से प्रोडक्शन प्रभावित होने लगा, तो शत्रुघ्न की पत्नी रमावती भी जीविका से जुड़ गई. वहां से उन्हें एक लाख रुपए मिल गए, तो उन्होंने प्रोडक्शन बढ़ा लिया.
एक साल तक सबकुछ ठीक चलने के बाद वर्ष 2020 में कोरोना की वजह से शत्रुघ्न का काम भी प्रभावित हो गया. हालांकि, स्थिति को देखते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति उद्यमी योजना से 10 लाख का लोन ले लिया. इसपर 50 प्रतिशत सब्सिडी भी मिली. अब न तो कच्चे माल की कमी है और न ही प्रोडक्शन का आभाव. डिमांड भी खूब है.
10 प्रोडक्ट तैयार करते हैं शत्रुघ्न
शत्रुघ्न बताते हैं कि उनकी फैक्ट्री में 5 तरह के पेपर प्लेट और 5 प्रकार के कटोरे बनाए जाते हैं. इसके अलावा वे कच्चा माल भी तैयार करते हैं. शत्रुघ्न की मानें तो अब उनकी फैक्ट्री में 7 कारीगर काम करते हैं, जो हर दिन लगभग 40 हजार प्लेट और कटोरे तैयार करते हैं. इसकी सप्लाई जिले के सभी बड़े शहरों तक की जाती है. इससे सालाना 3 लाख से ज्यादा की आमदनी हो जाती है.
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FIRST PUBLISHED : March 19, 2024, 15:37 IST