सुशील सिंह/मऊ: कहते हैं प्रतिभाएं किसी परिचय की मोहताज नहीं होती.वो एक ऐसा सूरज है जो दूर से ही उजाला देता है. कुछ ऐसी ही रोशनी बिखेर रहे हैं मऊ जिले के ठकुरमनपुर गांव के वीरेंद्र कुमार यादव. एक गरीब किसान परिवार में जन्मे वीरेंद्र ने ऐसा करिश्मा कर दिखाया है कि लोग उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे.
गांव के प्राथमिक विद्यालय से पढ़े हुए वीरेंद्र का चयन मेघालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय नॉर्थ इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए हुआ है. वीरेंद्र की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा पैसे के अभाव में गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई. बचपन से ही पढ़ने में होशियार वीरेंद्र ने अंग्रेजी विषय के लिए अपना जी जान लगा दिया था, क्योंकि वो सुनते आए थे कि अंग्रेजी सबसे कठिन विषय है, और उन्होंने इसको एक चैलेंज के रूप में लिया. अपना सारा ध्यान इन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई में ही लगा दिया.
गांव के ही एक लोगों से मिली प्रेरणा
माध्यमिक स्तर की शिक्षा मऊ के केएल नोमानी विद्यालय से करने के बाद उन्होंने हायर सेकंडरी की शिक्षा तालीमुद्दीन कॉलेज मऊ से ली. गांव के ही लोगों से प्रेरणा लेकर उन्होंने वहां से ग्रेजुएशन के लिए BHU जाने का निर्णय लिया. BHUसे ही इन्होंने एमए की डिग्री लेने के बाद जेआरएफ और नेट क्वालीफाई किया और वहीं पर प्रोफेसरअनिता सिंह के मार्गदर्शन में 2021 में पीएचडी करने लगे. हमारे भारतीय हिंदू परिवारों में शादी को अनिवार्य समझा जाता है, इसलिए इनकी भी शादी करा दी गई.परंतु इन सभी बाधाओं से पार पाते हुए इनका चयन मेघालय के केंद्रीय विश्वविद्यालय में हो गया.
संघर्ष भरा रहा है अब तक का सफर
संघर्ष के दिनों को याद करते हुए वीरेंद्र ने बताया कि पैसे का जुगाड़ बमुश्किल हो पाता था, लेकिन पिता जी ने हिम्मत नहीं हारी और हम सभी भाई बहनों को पढ़ाया.मेरी सफलता का सारा श्रेय मेरे पिता, माता और छोटे भाई को जाता है, जिन्होंने हर तरह से मेरी सहायता की.
पिता ने बेटे की सफलता की बताई वजह
इनके पिता राम जीत यादव ने कहा, ‘मेरा बेटा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का था. मैंने किसी तरह पैसे का अरेंजमेंट करके सभी बच्चों को पढ़ाया. आज जब बच्चों की सफलता देखता हूं तो पुरानी सारी तकलीफें भूल जाता हूं’.
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FIRST PUBLISHED : December 20, 2023, 12:44 IST