सूरत जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर एक किसान ने न केवल खुद की ज़िंदगी बदली बल्कि सैकड़ों किसानों और महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया. हम बात कर रहे हैं 45 वर्षीय विनोदभाई रामजीभाई नकुम की, जो मधुमक्खी पालन में आज एक बड़ा नाम बन चुके हैं. मधुमक्खियां सिर्फ शहद ही नहीं बनातीं, ये जैव विविधता, पर्यावरण और खेती के लिए भी बेहद जरूरी हैं. 20 मई को हर साल विश्व मधुमक्खी दिवस मनाया जाता है, और ऐसे मौके पर विनोदभाई जैसी शख्सियतों की कहानी सामने लाना ज़रूरी हो जाता है.
विनोदभाई मूल रूप से भावनगर जिले के असराणा गांव के रहने वाले हैं, लेकिन अब वे सूरत के डभोली इलाके में रहते हैं. पहले वे हीरा उद्योग से जुड़े थे, लेकिन साल 2011 में हरियाणा में एक मधुमक्खी पालन केंद्र की यात्रा ने उनकी सोच ही बदल दी. उसी पल उन्होंने तय किया कि अब वे मधुमक्खी पालन को ही अपना भविष्य बनाएंगे.
25 बक्सों से शुरू होकर आज 1100 से ज्यादा बक्सों तक सफर
शुरुआत में उन्होंने सिर्फ 25 बक्सों से काम शुरू किया, लेकिन आज उनके पास 1100 से भी ज्यादा मधुमक्खी के बक्से हैं. वे हर साल करीब 30 से 35 टन शुद्ध शहद तैयार करते हैं. उनका मानना है कि अलग-अलग फसलों से मिलने वाला शहद स्वाद में भी अलग होता है. उनके द्वारा तैयार किए गए शहद में अजमोद, सौंफ, तिल, बबूल, सरगवां, अनार और सहजन जैसी फसलों की खुशबू होती है.
विनोदभाई बताते हैं कि वे खास तौर पर इतालवी मधुमक्खियों का इस्तेमाल करते हैं जो 20 से 22 दिनों में शहद बनाती हैं. मधुमक्खियों के बक्से जमीन पर रखे जाते हैं. जब शहद तैयार हो जाता है तो उसे छानकर पैक किया जाता है और फिर शहद प्रसंस्करण केंद्र से बाजार तक पहुंचाया जाता है.
शुरू में लोगों ने उड़ाया मजाक, अब बना एफपीओ
लोकल18 से बात करते हुए विनोदभाई ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने मधुमक्खी पालन शुरू किया, तो लोगों ने उन पर विश्वास नहीं किया. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. साल 2019 में उन्होंने ‘नर्मदा-सूरत हनी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड’ नाम से एक एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन शुरू किया. आज यह संगठन 1100 से ज्यादा बक्सों के साथ हर साल करीब 35 टन शहद बनाता है और 30 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई करता है.
सरकारी मदद से महिलाओं और किसानों को बनाया आत्मनिर्भर
विनोदभाई पिछले 14 सालों से मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. उन्होंने सिर्फ खुद तक यह काम सीमित नहीं रखा, बल्कि अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया. उन्होंने डीआरडीओ के साथ एमओयू कर नवसारी, तापी और सूरत जिलों की 180 सखी मंडलों की महिलाओं को प्रशिक्षित किया. इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, बागवानी विभाग और खादी ग्रामोद्योग के सहयोग से 1500 से ज्यादा किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुके हैं.
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