आर्मी ज्वाइन करने का था सपना, एक्सीडेंट में शरीर हुआ डिसेबल, इस शख्स की कहानी सुन हो जाएंगे भावुक

सुमित राजपूत/नोएडा:- मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनो में जान होती है, ये पंक्ति लखनऊ निवासी अजीत सिंह पर एकदम सटीक बैठती है. बीते 2012 में रोड ऐक्सिडेंट के चलते डॉक्टर्स ने अजीत सिंह को 100 प्रतिशत डिसेबिलिटी कैटेगिरी में घोषित कर दिया. शरीर ने तो साथ नहीं दिया, लेकिन दिल और दिमाग इनके हमेशा साथ रहा और आज युवाओं के लिए अजीत एक प्रेरणाश्रोत बन गए हैं.

अजीत का मानना है कि हमारे मानने से हार और हमारे ठान लेने से ही जीत होती है. फिलहाल अजीत सिंह एक छांव संस्था में चीफ ऑफिसर के पद पर काम कर रहे हैं, जो पूरे देश में एसिड अटैक सर्ववाइवर, डिसेबिलिटी कैटागिरी में आने वाले लोगों की मदद और उनके हक के लिए काम करती है.

सपना था इंडियन आर्मी में जाने का
अजीत सिंह ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने इलेक्ट्रिक इंजीनियर से ग्रेजुएशन किया है. एसएसबी में उनका सेलेक्शन 2011 में हो गया था. उनका सपना था कि अगले अटेम्प्ट में 21 साल की उम्र तक इंडियन आर्मी को सर्व कर लेंगे. लेकिन 14 सितंबर 2012 को एक सड़क हादसा हुआ, जिसमें उन्हें स्पाइन इंजरी हुई और सर्वाइकल फैक्चर हुआ. अजीत के शरीर का ज्यादातर अंग काम करना बंद कर दिया. युरेशन से लेकर फिंगर मूमेंट तक बाधित होने के चलते लगभग पूरा शरीर पैरालाइज हो गया. डॉक्टर्स ने उन्हें 100 प्रतिशत डिसेबिलिटी कैटेगिरी में घोषित कर दिया.

हमारा काम ही हमारा फ्यूल है
इन्होंने Local 18 को आगे बताया कि जब ये हादसा हुआ, तो मैं काफी हताश हुआ. दूसरे के जीवन की तरह वो सब चैलेंजर्स सामने भी आए और मैने गिवअप किया. लेकिन आज मुझमें ऊर्जा, साहस, मोटीवेशन देखते हैं और जो काम कर पाता हूं, वो सब हमारे आस पास रहने वाले लोग, दोस्त और पेरेंट्स से आया है. डिसेबिलिटी के बाद आपको क्या प्रयास करना चाहिए, उन सबके उत्तर हमारे पास नहीं होते हैं और फिर आस-पास नजर उठाकर देखते है, तो करने को बहुत कुछ मिलता है. मेरे मित्र आलोक दीक्षित ने मुझे छाव फाउंडेशन में काम करने का मौका दिया और आज मैं इसमें चीफ ऑफिसर के पद पर काम कर रहा हूं. जब हम किसी जिम्मेदारी का वहन कर रहे होते हैं, तो हमे एक ऊर्जा भी मिलती है, जो हमारे हमारे लिए फ्यूल का काम करती है.

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हमें अपनी सोच को बदलना जरूरी है
अजीत ने आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि मैं आइडियल दोस्तो से सम्बंध रखता हूं, जो अलग दुनिया से आए हैं. शायद ये फर्क हमारे व्यक्तित्व में होता है. हमारे मित्र हमसे तब अच्छी मित्रता निभा पाते है, जब हम पॉजिटिव होते हैं. हम बहुत दिन तक यही कहते रहे कि मैं कुछ नहीं कर सकता, तो कोई भी मित्र 10 रुपए तक नहीं देगा और जब वो ऊर्जा आपके पास के लोग, दोस्त और पेरेंट्स देख लेते हैं, तो वो खुद ही अपना हाथ आगे बढ़ाते हैं.

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