आज की खास खबर | CAA का उद्देश्य नागरिकता देना है, छीनना नहीं

CAA का उद्देश्य नागरिकता देना है, छीनना नहीं

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लोकसभा चुनावों (lok sabha election 2024) की आदर्श आचार संहिता लागू होने से ऐन पहले केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए (CAA) की अधिसूचना जारी कर इसे पूरे देश में लागू करने का निर्णय अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि सरकार की तैयारियों को देखते हुए इसके कयास काफी पहले से ही लगाए जा रहे थे।  गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) खुद कई बार कह चुके थे कि सीएए लोकसभा चुनावों से पहले ही लागू किया जाएगा, जो स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह मुद्दा भाजपा के घोषणापत्रों का अहम बिंदु भी रहा है।  नए कानून के अनुसार, अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी शरणार्थियों को बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।  उल्लेखनीय है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत भारत की नागरिकता पाने के पात्र वही होते थे, जिन्होंने इस देश में 11 साल बिताए हों। 

अवधि 6 वर्ष की गई

नए कानून में इन 3 देशों के शरणार्थियों के लिए नागरिकता हासिल करने की अवधि 11 से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।  जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद राजनीतिक रूप से यह कदम सरकार के लिए एक विराट उपलब्धि है।  हालांकि 2019 में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजनशिप (एनआरसी) के भ्रम में पूर्वोत्तर और खासकर असम में जो दृश्य बने थे, अब स्थितियां बिल्कुल उससे अलग हैं।  ऐसे में, ये आशंकाएं कि इस कानून द्वारा किसी समुदाय विशेष को अलग-थलग कर दिया जाएगा, निराधार ही दिखती हैं, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री आश्वस्त कर चुके हैं कि यह कानून देश के किसी भी नागरिक के खिलाफ नहीं है।  इस कानून का मकसद किसी की नागरिकता छीनना नहीं, बल्कि नागरिकता देना है। 

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पड़ोसी देशों के मजहबी आधार पर पीड़ित अल्पसंख्यकों को मानवीय आधार पर नागरिकता देना इसके मूल में है।  सीएए एक संवेदनशील मसला है, लेकिन सियासत के अपने ढंग होते हैं।  बेहतर यह होगा कि इसके अमल को देखा जाए।  हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखना ठीक नहीं।  आम लोगों को भी आधी-अधूरी जानकारियों के आधार पर राय बनाने से बचना चाहिए, सीएए को पूरे देश में लागू करने की घोषणा ने बेशक मोदी सरकार को एक बार फिर से बड़े फैसले लेने वाली साहसी सरकार साबित किया हो, लेकिन पूर्व अनुभवों को देखते हुए कानून-व्यवस्था बनाए रखने के मोर्चे पर सजग रहने की जरूरत है।  मौजूदा नागरिकता कानून को संशोधित कर देशहित को मजबूत किया गया है, इसीलिए नये कानून का नाम ‘नागरिकता संशोधन कानून’ है।  वोट की राजनीति को धुरी बना चुके दल अस्तित्व समाप्ति के बिंदु तक अपने लगातार घटते आधार के चलते नागरिकता संशोधन कानून के बारे में भ्रम फैलाकर देश को अराजकता के ऐसे गर्त की ओर धकेलना चाहते हैं। 

मुस्लिम को बसने के लिए दर्जनों देश

पहली और प्रमुख बात तो यह है कि 31 दिसंबर 2014 तक किसी भी जाति का व्यक्ति देश में आ गया है तो वह वैध दस्तावेज दिखाकर नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है।  किरायेदारी का सबूत, चिट्ठी- पत्री, निर्वाचन प्रमाणपत्र, आधार, बैंक पासबुक, राशनकार्ड आदि दिखाकर नागरिकता पा सकता है।  यहां जो संशोधन किया गया है, वह यह कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 के बाद भी यदि हिंदू, सिख, बुद्धिस्ट, जैन, पारसी या ईसाई व्यक्ति आया है तो उसे भी नागरिकता दी जाएगी, लेकिन इस तारीख के बाद आए मुस्लिम को इसकी पात्रता नहीं रहेगी।  मुस्लिमों को बसने के लिए तो दर्जनों देश हैं तो उसे भारत नागरिकता दें, ऐसी बाध्यता क्यों? भाजपा सरकार ने कानून की अंधी गली को पूरी तरह से बंद कर दिया है। 

अब यह प्रावधान कर दिया गया है कि ऐसे व्यक्ति देश से निकाल दिए जाएंगे यानी कोई मुस्लिम 31 दिसंबर 2014 के बाद अवैध तरीके से घुसा हो तो नागरिकता मांगने का हक ही नहीं रहेगा, उल्टे उसे वापस उसके मुल्क भेज दिया जाएगा।  चूंकि पाकिस्तान से अवैध रूप से आए मुस्लिम उत्तर प्रदेश में और बांग्लादेश से आए रोहिंग्या मुस्लिम बंगाल में बहुतायत से रह रहे हैं और कालांतर में वे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के मतदाता बन गए तो तकलीफ इन्हीं दलों को ज्यादा है। 

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