विश्व की सबसे बड़ी चुनावी (Lok Sabha Elections 2024) प्रक्रिया आरंभ हो गई है, लेकिन 18 व 19 वर्ष के करोड़ों युवा अपनी वोट गिनवाने के इच्छुक ही नहीं हैं। साल 2024 के आम चुनाव में इस आयु वर्ग के 40 प्रतिशत से भी कम युवाओं ने खुद का पंजीकरण कराया है यानी 60 प्रतिशत से अधिक युवाओं की चुनावों में कोई दिलचस्पी ही नहीं है। यह चिंताजनक है, इसलिए क्योंकि युवा देश का भविष्य हैं और चुनाव देश का भविष्य तय करते हैं। इसका कोई समाधान तो निकाला जाना ही चाहिए, एक काम यह हो सकता है कि चुनाव आयोग आधार डाटाबेस की मदद से 18 वर्ष व उसके ऊपर के सभी भारतीय नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल कर ले और राष्ट्रपति के अध्यादेश से सभी के लिए मतदान का प्रयोग कानूनन अनिवार्य कर दिया जाए। ऐसा नियम कई देशों में है और यह करने से लोगों में चुनावों के प्रति सजगता आयेगी।
जब एक पखवाड़े पहले चुनाव आयोग ने मतदान की तिथियां घोषित की थीं, तो उसी समय उसने मतदाता सूची का डाटा भी अपनी वेबसाइट पर पोस्ट किया था, जिसमें 18 व 19 वर्ष के लगभग 1।8 करोड़ नये मतदाता शामिल किये गए हैं। इस आयु वर्ग की प्रोजेक्टेड जनसंख्या तकरीबन 4।9 करोड़ है, जिसका अर्थ है कि सूची में पहली-बार के मतदाता बामुश्किल 38 प्रतिशत ही हैं। राजनीति में अति सक्रिय समझे जाने वाले बिहार व उत्तर प्रदेश में तो यह प्रतिशत 25 भी नहीं है। संभव है कि मतदान का दिन आते आते इस प्रतिशत में कुछ सुधार आ जाये क्योंकि चुनाव आयोग, राजनीतिक पार्टियां व विभिन्न सिविल सोसाइटी ग्रुप्स योग्य वोटर्स के पंजीकरण का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन वह भी इतने कम समय में कितना सुधार ला सकेंगे?
युवाओं का अपना वोट पंजीकृत न कराना चिंताजनक है। चुनाव आयोग के पूर्व आयुक्त एसव्हाई कुरैशी, जिन्होंने 2000 में आयोग में मतदाता जागरूकता व शिक्षा विभाग स्थापित किया था, को यह जानकर दुःख है कि पहली-बार के मतदाताओं ने बहुत कम पंजीकरण कराया है। उनका कहना है, मतदाताओं की उदासीनता हमेशा से ही समस्या रही है।
स्थायित्व नहीं है
चुनावों के प्रति युवाओं में यह उदासीनता किन कारणों से है? एक स्पष्ट वजह तो यह है कि वह अपने पेरेंट्स की तरह ‘सेटल्ड’ नहीं हैं। जिन जगहों पर वह एडमिशन, कोचिंग, ट्रेनिंग, जॉब्स पर हैं वह पूर्णतः उनके परिवार के पते से अलग भी हो सकती है। बिहार व उत्तर प्रदेश में क्रमशः मात्र 17 प्रतिशत व 23 प्रतिशत ही पहली-बार वोट करने वाले नये मतदाता हैं। ये गरीब राज्य हैं और बड़ी संख्या में यहां से युवा दूसरे राज्यों में कमाने के लिए जाते हैं। छतीसगढ़ भी तो गरीब राज्य है, फिर वहां 18/19 वर्ष आयु वर्ग के 54 प्रतिशत नये मतदाताओं ने पंजीकरण क्यों कराया है? यह हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे काम कर रहे हों जो लोकतांत्रिक हिस्सेदारी को प्रोत्साहित कर रहे हों।
रिमोट वोटिंग को एक्टिवेट करने में देरी न सिर्फ युवाओं को मतदान से दूर कर रही है बल्कि प्रवासी बुजुर्गों को भी। ऐसा क्या हुआ कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में पहली-बार के नये मतदाता 60 प्रतिशत पंजीकृत हुए हैं, जबकि पास के ही दूसरे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में पंजीकरण मात्र 35 प्रतिशत है। तेलंगाना में प्रभावी 67 प्रतिशत हैं और पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश में इससे 17 अंक कम यानी 50 प्रतिशत पंजीकरण है।
सियासी तौर पर जागृत राज्य केरल में पंजीकरण मात्र 38 प्रतिशत है और पंजीकरण केवल 21 प्रतिशत है। ऐसा प्रतीत होता है कि 18/19 वर्ष आयु के युवा अपना वोट रजिस्टर करने से इसलिए इंकार कर रहे हैं कि वह वर्तमान राजनीति या प्रत्याशियों से असंतुष्ट हैं, शायद नाराज भी हैं। राजनीति में पैसा प्रधान हो गया है और सियासत का काफी हद तक अपराधीकरण व सांप्रदायिकरण हुआ है। जाति व धर्म आधारित राजनीति तो पहले से ही थी, अब इसमें अतिरिक्त इजाफा हुआ है। धारणा है कि राजनीति शरीफ व ईमानदार लोगों के लिए है ही नहीं।
लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनने की न्यूनतम आयु 25 साल है। आप 40-45 वर्ष आयु के प्रत्याशियों को भी उंगलियों पर गिन सकते हैं। 25-30 वर्ष के प्रत्याशी तो चिराग लेकर तलाश करने पड़ेंगे, ऐसे में युवाओं का सियासत व मतदान से मुंह मोड़ लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, खासकर जब निरंतर बढ़ती बेरोजगारी के दौर में उन पर अपना करिअर बनाने का दबाव भी हो।
जो डाटा प्रकाश में आया है, उससे लगता है कि पहली-बार के वोटर्स में पोलिंग बूथ की ओर जाने के लिए कोई खास उत्साह नहीं है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए बुरी खबर है। युवा सिर्फ़ वोट देने के लिए नहीं हैं, युवा, संसद में युवाओं का प्रतिनिधित्व चाहते हैं। राजनीतिक नेतृत्व की भी कोई अधिकतम आयु सीमा अवश्य होनी चाहिए, तभी सियासत में नयापन आ सकेगा।