क्या कश्मीर (Kashmir) के लोग शेष भारत से अलग हैं जो उनके लिए रेल यात्रा 50 फीसदी सस्ती की जा रही है? यदि उनसे आधा किराया लिया जा रहा है तो समूचे देश में भी रेलयात्रियों को ऐसी ही रियायत मिलनी चाहिए। यह प्राकृतिक न्याय व समानता का तकाजा है। जब जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देनेवाला अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया तो फिर इस तरह की खुशामदी या तुष्टीकरण की नीति क्यों अपनाई जा रही है? फिर बीजेपी की केंद्र सरकार और पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की नीतियों में कौन सा अंतर रह गया ? घाटी के लोगों का तुष्टीकरण करने के लिए अनेक दशकों से उन्हें अल्प दरों में अनाज और जीवनावश्यक वस्तुएं मुहैया कराई जाती रहीं।
वहां शिक्षा मुफ्त थी। स्कूल-कालेज में कोई फीस नहीं ली जाती थी। इसी तरह 370 लागू रहने तक कश्मीर में भारत के किसी अन्य राज्य का व्यक्ति बस नहीं सकता था तथा उद्योग-व्यापार भी शुरू नहीं कर सकता था। वह केवल पर्यटक के तौर पर वहां जा सकता था। इस तरह हथेली के फफोलों के समान कश्मीर को पूर्ववर्ती सरकारों ने रखा लेकिन इतना करने पर भी वहां अलगाववाद व आतंकवाद पनपता रहा। आए दिन हड़ताल और बंद होते रहे। तुष्टिकरण की नीति से कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
यह ठीक है कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में विकास कार्यों में तेजी लाई तथा कश्मीरियों को खुशहाल बनाने का प्रयत्न जारी रखा किंतु इसके बावजूद पिछली सरकारों की भांति व्यर्थ की रियायत क्यों दी जानी चाहिए? एक बार सब्सिडी दी तो बाद में हटाना मुश्किल हो जाता है। अनंतनाग के सदुरा स्टेशन से श्रीनगर तक का ट्रेन किराया 35 रुपए था जो अब घटाकर 15 रुपए कर दिया गया है। क्या इस वर्ष किसी समय विधानसभा चुनाव कराने का इरादा रखते हुए ऐसा किया जा रहा है? यदि रियायत देनी ही है तो सिर्फ कश्मीर में क्यों? अन्य राज्यों ने कौनसा गुनाह किया है!