आज की खास खबर | समस्याओं और मांगों को लेकर दिल्ली फिर किसानों की गिरफ्त में

समस्याओं और मांगों को लेकर दिल्ली फिर किसानों की गिरफ्त में

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किसानों की अपनी समस्याएं और मांगें हैं जिनकी हमेशा अनदेखी की जाती है या खोखले आश्वासन देकर टाला जाता है।  इस महत्वपूर्ण तथ्य को भुला दिया जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद में किसानों का श्रम भी शामिल है।  समाज का सफेदपोश वर्ग संपन्न हो रहा लेकिन किसानों की हालत नहीं सुधर रही है।

प्रति वर्ष बड़ी तादाद में किसान (Farmers) आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं।  किसानों के आंदोलन को हमेशा राजनीति के चश्मे से न देखकर उनकी तर्कसंगत मांगों पर गौर कर उचित निर्णय किया जाना चाहिए।  लगभग 2 वर्ष पूर्व 3 कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का जबरदस्त आंदोलन हुआ था जिसमें पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों ने भाग लिया था।  इसके दबाव में केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े थे।  अब पुन: किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन शुरू किया है जिसे 17 संगठनों के समर्थन का दावा है।  आंदोलन रोकने के लिए सरकार ने पूरी ताकत लगा दी है जबकि उसे किसानों के प्रतिनिधि मंडल से चर्चा का कोई समाधान निकालने की पहल करनी चाहिए थी। 

इस बार अलग नेतृत्व

पिछले किसान आंदोलन के चर्चित नेताओं को इस बार बाहर रखा गया है।  इस समय राजेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, दर्शन पाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, बलबीरसिंह राजेवाल जैसे चेहरे नहीं हैं।  पिछली बार किसान आंदोलन में खलिस्तानियों की घुसपैठ का आरोप भी लगा था।  उस वक्त आंदोलन में 40 से ज्यादा संगठन शामिल थे लेकिन इस बार 17 संगठनों के समर्थन का दावा किया गया है।  लोकसभा चुनाव के लिए लगभग 2 माह का समय शेष रह गया है।  ऐसे समय किसान आंदोलन केंद्र सरकार पर दबाव बना रहा है कि उसकी मांगें मंजूर की जाएं। 

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विभिन्न मांगों पर जोर

किसानों को सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिए जाने का कानून बनाने की मांग की गई है। यद्यपि सरकार एमएसपी की घोषणा करती है लेकिन फिर भी किसान अपनी उपज उससे कम मूल्य पर व्यापारियों को बेचने के लिए विवश होते हैं क्योंकि सरकार सभी तरह की उपज की खरीद नहीं करती।  किसानों की मांग है कि पिछले समय जिन मांगों को पूरा करने का भरोसा दिया गया था, उन्हें तुरंत पूरा किया जाए। 

2021-22 के किसान आंदोलन में जिन किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए थे, उन्हें रद्द किया जाए।  उस आंदोलन में जिन किसानों की मौत हुई थी, उनके परिजनों को मुआवजा तथा परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए।  इसी तरह लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को केंद्र सरकार न्याय दे व एक सदस्य को नौकरी दे।  किसानों की अन्य मांगें है- कर्ज माफी दी जाए।  भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन कर किसान को सरकारी रेट से चौगुना मुआवजा दिया जाए।  सरकार किसानों व कृषि मजदूरों को पेंशन दे।  मनरेगा में 100 की बजाय 200 दिन काम दिया जाए। 

हल्दी और मिर्च जैसी फसलों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया जाए।  जल, जमीन और जंगल पर स्थानीय लोगों को अधिकार मिले।  सरकार विश्व व्यापार संगठन से समझौते को वापस ले।  सरकार ने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न देने का एलान तो कर दिया लेकिन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें अभी तक लागू नहीं कीं।  देश में छोटे किसान हमेशा नुकसान में रहते हैं। 

कभी सूखा या अतिवृष्टि से फसल बर्बाद हो जाती है तो कभी अच्छी पैदावार होने के बाद भाव इतना गिर जाता है कि उत्पादन लागत भी नहीं निकलती।  वे सड़कों पर फसल फेंकने या जानवरों को खिलाने के लिए बाध्य हो जाते है।  सरकार को सावधानी रखनी होगी कि आंदोलन हिंसक न बनने पाए और इसमें असामाजिक तत्वों की घुसपैठ न हो।  यह विडंबना है कि आजादी के 76 वर्ष बाद भी किसानों को आंदोलन करना पड़ रहा है। 

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