आज की खास खबर | रोजगार देने के सरकारी दावों का पर्दाफाश

रोजगार देने के सरकारी दावों का पर्दाफाश

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मोदी सरकार (Modi Government) ने प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार (Employment) देने का दावा किया था। यदि यह वादा निभाया जाता तो देश में 10 वर्षों में 12 करोड़ युवा बेरोजगारों की फौज खड़ी नहीं होती। लोकसभा चुनाव के मुहाने पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की रिपोर्ट आई है जिसमें भारत में रोजगार की स्थिति को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। यह तथ्य बेहद चिंताजनक है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं। इसके अलावा पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या भी 2000 के मुकाबले अब दोगुनी हो चुकी है। सन 2000 में पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या 35। 2 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 65। 7 फीसदी हो गई। इसके बाद 2 वर्षों में यह तादाद और बढ़ी होगी।

कुशल श्रमिकों की भारी कमी

दिसंबर 2023 में मानव संसाधन विकास परामर्श फर्म टीमलीज सर्विसेज ने भारत में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर एक जबरदस्त विरोधाभास दर्शाने वाली रिपोर्ट पेश की थी। जिसके मुताबिक 2022-23 में देश में 15 करोड़ कुशल श्रमिकों की बेहद चिंताजनक कमी थी। 2022-23 में 15 वर्ष और उससे ज्यादा की उम्र के भारतीयों में 13। 4 फीसदी बेरोजगारी थी। अगर देश में कुल ग्रेजुएट बेरोजगारों की बात करें तो 2022-23 में इनकी तादाद 42। 3 फीसदी थी। एक तरफ जहां देश में जबर्दस्त बेरोजगारी है, वहीं दूसरी तरफ बड़े पैमाने पर कुशल श्रमिकों की भी कमी है। देश को कुशल मजदूरों की इस कमी का जबर्दस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। दो साल पहले मानव पूंजी प्रबंधन और कार्यबल प्रबंधन सेवाएं प्रदान करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनी क्रोनोस इनकार्पोरेट ने एक सर्वे किया था कि आखिर भारत में कुशल मजदूरों की कमी से अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान है?

काम लायक लोग नहीं मिलते

कांग्रेस सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे जयराम रमेश ने कई साल पहले यह कहकर सनसनी मचा दी थी कि देश के महत्वपूर्ण तकनीकी संस्थानों आईआईटी में भी महज 15 फीसदी छात्र हो योग्य और काम के लायक होते हैं। बाद में इंफोसिस के पूर्व निदेशक एन। नारायण मूर्ति को भी यह बात दोहरानी पड़ी कि हमारे यहां प्रशिक्षित कामगारों की बहुत बड़ी समस्या है। मूर्ति का मानना है कि आईआईटी जैसे संस्थानों में भी महज 15 से 20 फीसदी ग्रेजुएट काम के लायक होते हैं। इससे पता चलता है कि देश में कुशल श्रमिकों की कितनी बड़ी और भयावह समस्या है। 2 साल पहले शिक्षा प्रौद्योगिकी कंपनी स्किल सॉफ्ट ने कहा था कि देश के आईटी सेक्टर को अपनी योजनाओं और महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप प्रतिभा तलाशने में जबरदस्त संकट का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में यह समस्या इसलिए भी खौफनाक बन गई है, क्योंकि दुनिया का जो औद्योगिक परिदृश्य निर्मित हो रहा है, उसमें और ज्यादा कुशल तथा प्रशिक्षित श्रमिकों की जरूरत पड़ेगी क्योंकि यहां तो सीधे-सीधे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से मुकाबला होगा।

एआई के संचालन की चुनौती

विशेषज्ञों के मुताबिक भविष्य में उच्च प्रशिक्षित कामगारों और एआई के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होने वाली है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) अपने आपमें कुछ नहीं, जब तक इसे संचालित करने के लिए योग्य मानव श्रमबल न हो। योग्य मानव श्रम के अभाव में एआई अपने आपमें किसी तरह की उपलब्धि नहीं, बल्कि बोझ होगी। देश में अकुशल बेरोजगारों की तो बहुत बड़ी फौज है लेकिन रोजगार पाने के लिए कुशल श्रमिकों का जबरदस्त अभाव है। इस बेरोजगारी रिपोर्ट में पूरी तरह से अकुशलता की छाया है। एक स्टडी के मुताबिक इतने डिजिटल हो-हल्ले के बावजूद भी देश के ज्यादातर युवा डिजिटली निरक्षर हैं। 90 फीसदी युवा स्प्रेडसीट पर मैथमेटिकल फार्मूला नहीं डाल सकते। 60 फीसदी युवा कंटेंट फाइल को कॉपी पेस्ट नहीं कर सकते और 75 फीसदी युवा तो कंप्यूटर से फाइल को अटैच करके ई-मेल भी नहीं भेज पाते। भारत में बेरोजगारी के इस हाहाकार के पीछे हम भारतीयों का तकनीकी के मामले में बेहद अकुशल होना भी एक बड़ी समस्या है, इसलिए इस बेरोजगारी में कहीं न कहीं बेरोजगारों की भी अपनी भूमिका है।

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