एनडीए और इंडिया दोनों ही गठबंधनों के लिए महाराष्ट्र में उम्मीदवार तय करना काफी चुनौतीपूर्ण है। राज्य की 48 लोकसभा सीटों के लिए दोनों ही अपने प्रत्याशियों का चयन अत्यंत सोच-विचार के साथ सावधानीपूर्वक कर रहे हैं। यद्यपि बीजेपी ने अपने कोटे के 20 उम्मीदवार तय कर दिए हैं लेकिन बची हुई 28 सीटें किसे दी जाएं, इसे लेकर माथापच्ची चल रही है। प्रथम चरण के मतदान के लिए 1 माह से भी कम समय शेष रह गया है फिर भी प्रत्याशी चयन में विलंब हो रहा है।
महाविकास आघाड़ी की तीनों पार्टियों की इच्छा थी कि वंचित आघाड़ी उनके साथ आ जाए। कुछ माह पूर्व वंचित आघाड़ी ने शिवसेना (उद्धव) के साथ गठबंधन के लिए अनुकूलता जताई थी लेकिन साथ ही कुछ मुद्दे उठाए व शर्ते रखीं तब मविआ नेताओं की समझ में आ गया कि वंचित आघाड़ी को संभालना कठिन होगा। फिर भी वंचित आघाड़ी के लिए 4 सीटें छोड़ने को मविआ के नेता तैयार थे। वंचित आघाड़ी ने इनमें से 2 सीटें उपयुक्त नहीं होने की दलील देकर प्रस्ताव ठुकरा दिया।
वंचित आघाड़ी का कांग्रेस से तालमेल
वैसे कहा जा रहा था कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा के समापन की जो सभा मुंबई में हुई, उसमें प्रकाश आंबेडकर उपस्थित थे इसलिए लगा कि वे सीटों को लेकर ज्यादा खींचातानी नहीं करेंगे। इस सभा के बाद प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस अध्यक्ष को पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि कांग्रेस किसी भी 7 सीटों पर चुनाव लड़े तो उसे वंचित आघाड़ी अपना पूरा समर्थन देगी। इसी पत्र में वंचित आघाड़ी ने शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की यूबीटी की आलोचना की। इसका साफ मतलब है कि वंचित आघाड़ी मविआ में शामिल होने को तैयार नहीं है। वह कांग्रेस को सहयोग देगी लेकिन शरद पवार और उद्धव की पार्टियों के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करेगी।
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चौथी सहयोगी पार्टी मनसे
दूसरी ओर बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) तथा एनसीपी (अजीत पवार) की युति को अपने साथ चौथी पार्टी शामिल करने में सफलता मिल रही है। मुंबई, पुणे, नाशिक में प्रभाव रखनेवाले राज ठाकरे की मनसे को युति में लिया जाएगा। यद्यपि राज ठाकरे को साथ लेने की पहले ही बीजेपी की तैयारी चल रही थी लेकिन बीजेपी की शर्त थी कि मनसे प्रत्याशी बीजेपी के चुनाव चिन्ह कमल पर चुनाव लड़ें। इसलिए निर्णय अटका हुआ था। अब बीजेपी ने अपनी शर्त वापस ले ली है। अब मनसे के लिए वहीं एक-दो सीटें छोड़ी जाएंगी जहां बीजेपी की पकड़ नहीं है। शिंदे गुट के पास दक्षिण मुंबई की सीट है जो मनसे को दी जा सकती है। दूसरी जगह अभी तय नहीं है। शिवसेना का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे को लगता है कि कोई ‘ठाकरे’ उनके साथ आना चाहिए। बीजेपी की भी ऐसी ही सोच है। इसलिए बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावडे ने राज ठाकरे को महायुति में शामिल करने के लिए बड़ी भूमिका निभाई।
परप्रांतीयों के विरोधी
शायद बीजेपी नेता यह सोचते हैं कि उद्धव ठाकरे से गठबंधन टूटने के बाद राज ठाकरे को अपने साथ शामिल करने से भरपाई हो जाएगी। इसमें एक दिक्कत यह आ सकती है कि राज ठाकरे की छवि हिंदी भाषियों के विरोधी नेता की है। 2008 में कल्याण में रेलवे की परीक्षा देने के लिए महाराष्ट्र के बाहर से आए छात्रों पर मनसे कार्यकर्ताओं ने हमला किया था।
उत्तर भारतीय टैक्सी चालकों व फेरीवालों की पिटाई भी की गई थी। दूसरी ओर शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राऊत ने कहा कि अगर राज ठाकरे महायुति में शामिल होते हैं तो इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। उद्धव ठाकरे ने टिप्पणी की कि बीजेपी को अहसास हो गया है कि अगर उसे महाराष्ट्र में वोट चाहिए तो यहां पीएम मोदी के नाम पर वोट नहीं मिलेगा। यही कारण है कि बाल ठाकरे की पार्टी को चुरा लिया गया तथा अब एक और ठाकरे (राज) की चोरी करने की कोशिश की। बीजेपी ने राज ठाकरे को महायुति खेमे में लेकर दिखा दिया कि महाराष्ट्र में ठाकरे बिना उसका उद्धार नहीं है।