नेता कहने के लिए होते हैं और जनता बेचारी खामोशी से सुनने के लिए! नेता कहता है- मेरी आवाज सुनो, प्यार का राग सुनो! वह समझाता है- जागो सोनेवालो सुनो मेरी कहानी! संसद सदस्य ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए स्पीकर का ध्यान आकर्षित कर अपनी बात सुनाना चाहता है। प्राचीन काल में पढ़ाई श्रुति और स्मृति के माध्यम से होती थी।
गुरू कहता था और शिष्य ध्यान से सुनकर कंठस्थ कर लेता था। वेद और उपनिषद इसी तरह पढ़ाए जाते रहे। सुनने सुनाने की बात को लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ( Ajit Pawar) ने बारामती की सभा में अपने समर्थकों से कहा कि पहले आप उनकी सुनते थे, अब मेरी सुनें।
उनका इशारा था कि आपने इतने वर्षों तक शरद पवार की सुनी, अब मेरी बात सुनिए। वैसे यह कॉमन सेंस की बात है। मोहम्मद रफी के गीत सुननेवाले कहा जा सकता है कि जमाना बदल गया, अब अरिजीत सिंह का गाना सुनो! अजीत चाहते हैं कि उनकी आवाज लोगों के कानों तक पहुंचे।
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सुनने-सुनाने को लेकर कितने ही फिल्मी गीत हैं। फिल्म ‘रंगीला’ में आमिर खान और उर्मिला मातोंडकर का गीत है- सुन, सुना, आती क्या खंडाला! गुरूदत्त ने मिस्टर एंड मिसेज 55 फिल्म में गाया था- सुन-सुन-सुन सुन जालिमा, प्यार हमको तुमसे हो गया। एक भक्ति गीत है- सुन ले पुकार, आई तेरे द्वार अंसुअन की धार लेके सांवरे! फिल्म ‘तेरे घर के सामने’ में देवआनंद गाता है- दिल का भंवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो रे! कांग्रेस शासन में धर्मनिरपेक्षता की ट्यून सुनाई देती थी लेकिन अब वही जनता नमो-नमो का जाप सुनती है।
पुरानी फिल्म ‘बारादरी’ के हीरो अजीत थे, अब बारामती के असली हीरो अजीत पवार बनना चाहते हैं। वे बेचैन हैं कि लोग अब सिर्फ उनकी सुनें। अजीत की कोई बात रोचक या दिलचस्प हो तो कोई भी सुनना चाहेगा।
अमीन सयानी के लहजे में वह बात थी कि लोग गीतमाला चाव से सुनते थे। सुनने को लेकर एक शेर है! बड़े शौक से सुन रहा था जमाना, तुम्हंी सो गए दास्तां कहते-कहते!’’